*बरसात का मौसम आता है तो टरटराने वाले अनेक जीव पैदा हो जातें हैं*
*चुनावी मौसम में भी कुछ ऐसा ही होता है ।खादी के कुर्ता पायजामा पहनने वाले जीव हर ओर नजर आने लगते हैं।*
*पांच वर्षों तक जिनका अपने क्षेत्र के विकास कोई मतलब नहीं था ।वे लोग क्षेत्र के विकास का ठेका लेने के लिए (बोलियां लगाने) लोक लुभावन वादे करने लगते हैं।*
कुछ ऐसा ही पत्रकारिता क्षेत्र में हों रहा है चुनावी मौसम में अनेक पत्रकार,ब्लागर उभर आते हैं । जिनमें अपने अपने दाताओं पक्ष में माहौल बनाने का काम करते हैं । रोचक बात यह है कि उनके द्वारा किए चुनावी सर्वे दमदार दावेदारों के प्रति पूर्वाग्रह रख उन लोगों को जीतने की स्थिति में बता दिया है जो टिकट की दौड़ में ही नहीं है।
एक क्षेत्र नहीं बल्कि लगभग पूरे देश में यही हालत है बड़े बड़े मीडिया घरानों पर भी ऐसे आरोप लगते रहे हैं।
पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है ।
*देश की आजादी यानि 1947 के पहले पत्रकारिता एक मिशन था देश की आजादी के लिए। पत्रकारिता के माध्यम से देश की जनता को आजादी के आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जाता था।*
*आजादी के बाद मीडिया का मिशन होना चाहिए देश को विकास पथ पर आगे बढ़ाने के लिए जनता में अपने कर्त्तव्यों, नैतिकता ईमानदारी जैसे सामाजिक मूल्यों का विकास कर देश को नई ऊंचाईयों की ओर ले जाने का।*
, *दुःख की बात है कि अब यह मिशन बन गया है धन कमाने का* ।
*किसी को ऊपर उठाने का किसी को नीचे गिराने का।*
*ईश्वर ऐसे लोगों को सद्बुद्धि प्रदान करें।*
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*हीरालाल नाहर पत्रकार*
*9929686902*