संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि अगर हम आत्मा का ऊर्ध्वगमन चाहते हैं तो हमें क्रोध नामक पाप का त्याग कर देना चाहिए।आपने कूकर बम,एटम बम, परमाणु बम आदि के बारे में सुना होगा यह बस ज्यादा से ज्यादा एक भव बिगाड़ते होंगे ,मगर क्रोध रूपी बम तो भवों को भी बिगाड़ देता है । क्रोध हमारा स्वभाव नहीं बल्कि यह तो विभाव है, विकृति है। स्वभाव तो वह होता है जो हमेशा टीका रहे। क्रोध अगर स्वभाव होता तो यह अरिहंत और सिद्ध परमात्मा में भी होता। अत:यह स्वभाव नहीं है।
हमें क्रोध क्यों आता है उसके भी कारण है पहला कारण है जब हमारी अपेक्षा की उपेक्षा होती है तब हमें क्रोध आता है । आपने अपने लड़के को काम की कहा ,और पड़ोसी के लड़के को भी कहा।मगर पड़ोसी के लड़के और आपके लड़के दोनों ने काम नहीं किया, तो आपको पड़ोसी के लड़के पर गुस्सा नहीं आएगा पर आपके लड़के पर आपको गुस्सा आएगा ।क्योंकि आपको उससे अपेक्षा पाल रखी है ।अगर आप अपेक्षा नहीं रखते हैं तो आपको दुख भी नहीं होता है। यानि सारे दुखों की जड़ हमारी अपनी अपेक्षा है।
क्रोध आने का दूसरा कारण है अहंकार। व्यक्ति के अहंकार को जब चोट पहुंचती है तब उसको गुस्सा आता है। घर में, परिवार में, संघ व समाज में आज लड़ाई का सबसे बड़ा कारण अहंकार है। मेरी बात नहीं मानी गई,मेरी बात नहीं रही ।आज हमने कहां-कहां अहंकार नहीं पाला है ।छोटा भी अगर कोई अच्छी बात कह दे तो आप कहेंगे कि यह मुझे समझाने वाला कौन है। आज आपके पास सब कुछ होते हुए भी आप बेचैन है ,तो उसका कारण आपका अहंकार है।
क्रोध आने का तीसरा कारण है कि जब व्यक्ति का मनचाहा नहीं होता ,तब उसको क्रोध आता है ।कितनी ही बार व्यक्ति राजनीति करता है मगर मेरी नहीं रही तो उसकी भी नहीं रहनी चाहिए ।आपको लगता है कि जैसा मैं चाहूं वैसा हो जाना चाहिए। गुरु चाहते हैं कि शिष्य मेरे अनुसार होना चाहिए और शिष्य चाहता है गुरुजी मेरे अनुसार होने चाहिए ।सासू जी बहू को अपने अनुसार और बहू सासू जी को अपने अनुसार चाहती है ।मनचाहा ही हमारी सारी समस्याओं की जड़ है।
कोई भी हड़ताल या विद्रोह भी कब होता है जब मनचाहा नहीं होता है,तब।
उसी के साथ जिस वस्तु व्यक्ति पर राग होता है और वो नहीं मिलता है ।तब भी क्रोध आ जाता है।यहां तक की जिस स्थान पर आप बैठते हैं आपकी सीट पर कोई दूसरा व्यक्ति आकर बैठ जाए तो भी क्रोध आ जाता है।
तो आप ध्यान रखो कि जब भी क्रोध आ जाए तो आप उसका कारण खोजने का प्रयास करें कि किस कारण से मुझे यह क्रोध आया है।उस पर चिंतन मनन करने का प्रयास करें ।इन कारणों से बचते हुए अपने आप को इस कषाय के दुष्परिणामों से बचने का प्रयास करें।
श्रीमती शिल्पा जी खटोड़ ने आज 27 उपवास की तपस्या के प्रत्याखान ग्रहण किए।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया
पदम चंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*