खादी के सफेद कमीज पजामा पहनने से ही टिकट के दावेदार नहीं हो सकते

क्षेत्र के विकास के लिए अपने प्रयासों के बारे में भी बताना जरूरी।*

चुनाव के मौसम में अनेक लोग सफेद कमीज पजामा पहनकर स्वयं भू नेता बने नज़र आते हैं। तथा विधायक बनने का सपना देखते हैं। आम बोलचाल में ऐसे लोगों को बरसाती मेंढक भी कहा जाता है।
पांच वर्षों तक जिनका अपने क्षेत्र के विकास कोई मतलब नहीं था ।वे लोग विकास का ठेका लेने के लिए लोक लुभावन वादे करने लगते हैं।
यह अलग बात है कि *विकास क्षेत्र का होगा या खुद का ?* यह भविष्य के गर्भ में है।
*प्रवासी चैनई व्यवसायी की अपने क्षेत्र के विकास के लिए इच्छा थी उनके द्वारा करोड़ों की लागत से ब्यावर बस स्टैंड को हवाई अड्डे की तरह आधुनिक सुविधाओं वाला बनाने* की घोषणा की खबर अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी।

लेकिन बाद में क्या हुआ ?

अखबारों के अनुसार रोडवेज अधिकारियों ने उन्हें अनुमति देने के लिए अपने कमीशन मांग की जिसके चलते विकास की योजना रद्द हो गई।
अब चुनावों के समय ब्यावर के विकास के ठेकेदार बनने,क्षमा करें!
वादे करने वालों की कमी नहीं है ऐसे नेताओं से यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि *भामाशाह द्वारा ब्यावर बस स्टैंड के विकास की योजना के दौरान उनका क्या सहयोग रहा?*
निस्वार्थ सेवा भाव से भामाशाहों ने कोरोना काल में अस्पतालों में मशीनें दी जो रखरखाव के अभाव में कुछ समय बाद ही कबाड़ की स्थिति में हों गई थी।

*केवल मंच पर साफे माला पहनने से ही टिकट के दावेदार नहीं हो सकतें ।*
*विगत वर्षों में अपने क्षेत्र के विकास के लिए कब कब कितनी बार प्रयास किया* ।आम जनता और कार्यकर्ताओं को चाहिए कि टिकट के दावेदारों से इस बारे में जानकारी ले। इसके बाद ही किसी दावेदार को अपने समर्थन में बारे में निर्णय करें।

हीरालाल नाहर पत्रकार

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