*सरकार जी, लंच में अफसरों के घर जाने पर भी रोक लगाइए*

-सरकारी वाहन से लंच करने घर जाते हैं
-डेढ़ बजे जाते हैं और तीन बजे बाद लौटते हैं
-क्या पूरे समय कार्यालय में रहने और कहीं नहीं घूमने की पाबंदी केवल छोटे कर्मचारियों के लिए ही है
-सरकार की हिदायत बहुत अच्छी है, लेकिन सबसे पहले ’’हाथियों’’ पर लगाम लगाई जाए
-अफसरों का कुछ नहीं बिगड़ता, बेचारे छोटे कर्मचारियों पर गाज गिर जाती है
-सरकारी अधिकारी-कर्मचारी इधर-उधर घूमते पाए गए तो खैर नहीं
-सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को पूरी निष्ठा के साथ करना होगा काम

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉कुछ दिन पहले जयपुर से यह खबर आई कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सरकारी विभागों में जीरो टॉलरेंस नीति के साथ कर्मचारियों को भी चुस्त दुरुस्त रखने की कवायद भी कर रहे हैं। इसके चलते अब सरकारी विभागों में कार्यरत अधिकारी और कर्मचारी को पूरी निष्ठा के साथ काम करना होगा। कोई भी अधिकारी या कर्मचारी अपनी कुर्सी को छोड़कर कही नहीं जाएगा। यदि ऐसा पाया गया तो उसे नोटिस दिया जाएगा। इसको लेकर प्रशासनिक सुधार विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने आदेश जारी कर दिए हैं। अमूमन देखने में आता है कि विभिन्न विभागों में कार्यरत अधिकारी और कर्मचारी अपनी कुर्सी छोड़कर इधर-उधर चले जाते हैं। इस दौरान कई कर्मचारी तो उपस्थिति लगाने के बाद ही वापस घर चले जाते हैं। ऐसे लापरवाह और आलसी कर्मचारियों पर नकेल कसने के लिए प्रशासनिक सुधार विभाग ने अब तैयारी कर ली है। यदि कोई अधिकारी और कर्मचारी ऐसा करता पाया गया तो, उसे गंभीरता से लिया जाएगा और उसे नोटिस भी थमाया जाएगा। सरकारी कार्यालय के समय सुबह 9.30 बजे से शाम 6 बजे तक कोई भी अधिकारी और कर्मचारी अपना ऑफिस छोड़कर नहीं जाएगा। केवल उसे दोपहर डेढ़ से 2 बजे तक होने वाले लंच के लिए ही जाने की छूट होगी। कोई अधिकारी और कर्मचारी अपनी कुर्सी छोड़कर नहीं जाएगा। लेकिन किसी कारणवश अगर उसको बाहर जाना है तो, उसका आवागमन पंजिका में कारण दर्ज करना होगा। विभिन्न सरकारी कार्यालय में बायोमेट्रिक मशीन से उपस्थिति दर्ज करना अनिवार्य कर दिया गया है। यदि किसी विभाग में बायोमेट्रिक मशीन नहीं पाई गई तो, उसके लिए संस्था प्रभारी अधिकारी जिम्मेदार होगा।

प्रेम आनंदकर
निश्चित रूप से सरकार का यह कदम सराहनीय है, लेकिन सरकार जी, उन अफसरों पर भी लगाम कसिए, जो लंच समय में सरकारी वाहन से भोजन करने के लिए घर जाते हैं। यह बिल्कुल भी मुमकिन नहीं है कि कोई अधिकारी महज आधा घंटे में लंच करके लौट आए। अनेक अधिकारियों के घर तो ऑफिस से इतनी ज्यादा दूर हैं कि उन्हें जाने में ही आधा घंटा लग जाता है। ऐसे में सरकारी वाहन का दुरूपयोग होता है और पेट्रोल-डीजल भी जलता है। नियमों के अनुसार किसी भी अधिकारी को सरकारी वाहन केवल सुबह घर से ऑफिस आने और शाम को ऑफिस से घर लौटने या किसी सरकारी काम से जाने-आने के लिए मिलता है। लेकिन अधिकांश अफसर सरकारी वाहन का दुरूपयोग करते हैं। एक या डेढ़ बजे लंच पर जाते हैं, तो फिर तीन बजे बाद, कोई साढ़े तीन बजे, तो कोई चार बजे तक ऑफिस लौटते हैं। अब आप ही बताइए, क्या ऐसे ऑफिस चलते हैं। क्या समय की पाबंदी केवल छोटे कर्मचारियों के लिए ही है। बेचारे अधिकांश छोटे कर्मचारी तो लंच बॉक्स साथ लेकर आते हैं और ऑफिस परिसर में ही इधर-उधर बैठकर भोजन करते हैं। इसलिए अफसरों को भी पाबंद कीजिए कि वे लंच समय में घर नहीं जाएंगे, बल्कि सुबह आते वक्त अपने साथ लंच बॉक्स लाएंगे और ऑफिस में ही भोजन करेंगे। सरकार जी, एक बात और, जब सरकारी अधिकारियों को सरकारी वाहन सरकारी कामकाज के लिए मिलता है, तो वे इनमें सुबह-शाम अपने निजी काम से क्यों घूमते हैं। माना कि आला प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों को तो कई बार सरकारी कामकाज से देर शाम या देर रात आना-जाना होता है, लेकिन नगर निगम, परिषद, नगर पालिका, यूआईटी, विकास प्राधिकरण व अन्य विभागों के अफसरों का तो देर शाम या देर रात कहीं आना-जाना भी नहीं होता है, फिर भी वे सरकारी वाहन का जमकर दोहन करते हैं। कई अधिकारियों को तो शाम के वक्त सरकारी वाहन में अपने परिवार के साथ बाजार या किसी शॉपिंग मॉल में खरीददारी करते आए दिन देखा जाता है। अरे भाई, आप सरकारी अधिकारी हैं, तो इसका मतलब यह थोड़े ही है कि सरकारी वाहन का चौबीसों घंटे उपयोग करेंगे। हां, सरकारी काम है, तो आप बेशक वाहन का उपयोग कीजिए, लेकिन सरकार को अब ऐसे अधिकारियों पर भी कार्यवाही करनी चाहिए। सरकारी अधिकारी दो से तीन घंटे का लंच करते हैं, किंतु उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती है। यदि कोई छोटा कर्मचारी दस या पन्द्रह मिनट भी देरी से अपनी सीट पर पहुंचे, तो उससे दस सवाल पूछ लिए जाते हैं। यही सवाल अफसरों को क्यों नहीं पूछे जाते हैं। आखिर अफसरों को कब तक बचाया जाता रहेगा।

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