*राजनीति में भ्रष्टाचार की जड़ है चुनाव खर्च*

*●ओम माथुर●*
जिस रकम में आज पार्षद और विश्वविद्यालय के अध्यक्ष या पार्षद का चुनाव नहीं जा सकता है,उससे भी कम रकम में हमारे सभी विधायकों ने नवंबर में हुए राजस्थान विधानसभा का चुनाव जीत लिया। यह खबर इस बात को साबित करती है कि चुनाव आयोग को खर्च का ब्यौरा देने में जनप्रतिनिधि कितना झूठ बोलते हैं और कितनी गलत जानकारी देते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि आज चुनाव लड़ना कितना महंगा हो गया है।

ओम माथुर
विधायक का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार अपनी जीत के लिए चुनाव आयोग के खर्च की सीमा को ठेंगा दिखाकर पानी की तरह पैसा बहाते हैं,लेकिन जब खर्च का हिसाब देते हैं,तो चुनाव आयोग द्वारा तय 40 लाख रुपए की खर्च की सीमा में ही अपना हिसाब किताब सौंप देते हैं। इसमें अनेक नेता तो इतने मितव्ययी होते हैं कि 40 लाख की सीमा तक भी नहीं पहुंचते हैं।
राजस्थान विधानसभा के चुनाव में इस बार दोनों दलों के उम्मीदवारों ने नामांकन भरने के लिए जो रैलिया निकाली,उनमें ही सैंकड़ों वाहन शामिल थे। जिनमें पेट्रोल-डीजल भराने और उसमें शामिल लोगों को खाना खिलाने में ही लाखों रुपए खर्च हो गए होंगे। उसके बाद उन्होंने 15 दिन तक प्रचार अभियान में भी जी भरकर पैसे खर्च किए। क्या मजाल फिर भी खर्च 40 लाख से ज्यादा पहुंच जाए। पूरे प्रचार अभियान में उम्मीदवारों के यहां रसोड़े चलते हैं। जिनमें रोजाना विधानसभा क्षेत्र के सैंकड़ों लोग खाना खाते हैं। इनमें से विशेष लोगों के लिए रोजाना शराब का भी इंतजाम होता है। मतदान करीब आने के दिनों में मतदाताओं को भी शराब बांटी जाती है। भले ही पुलिस और प्रशासन कितनी सर्तकता बरत कर ले, लेकिन ये हकीकत है कि शराब सुरक्षित हाथों से सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाती है। इस पर लाखों रुपए खर्च होते हैं। जाति और समुदाय विशेष के वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए उनके ठेकेदारों यानी जाति-समुदाय के नेताओं के हाथ भी मोटी रकम देकर गर्म किए जाते हैं। ऐसा नहीं है कि यह काम कोई एक ही पार्टी के नेता करते हो, सभी दलों के नेता इसमें सक्रिय रहते हैं। कई निर्दलीय और पार्टी के बागी भी खुद की जीत के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा देते हैं।
अजमेर जिले की एक विधानसभा सीट से विधायक बने एक नेता बता रहे थे कि उनके विधानसभा क्षेत्र में करीब डेढ़ सौ मतदान केंद्र थे और हर मतदान केंद्र के भीतर और बाहर कार्यकर्ताओंं के बैठने और उनकी व्यवस्थाओं के लिए उन्होंने एक केंद्र पर 20 हजार रूपए दिए थे। यानी करीब 30 लाख रुपए तो उन्होंने सिर्फ मतदान के दिन ही खर्च किए थे।
दरअसल, चुनाव में ये अंधाधुंध खर्च ही राजनीति में बढ़ते भ्रष्टाचार की जड़ है। जो विभिन्न सरकारी विभागों में बरगद की तरह फैल गई है। जब कोई नेता दो-तीन-पांच करोड़ रुपए खर्च करके विधायक बनता है, तो उसके लिए सबसे पहला लक्ष्य इस खर्च की सूद समेत वसूली और उसके बाद भविष्य सुरक्षित करने के लिए कमाना होता है,क्योंकि क्या भरोसा कि उसे अगली बार टिकट मिलेगा और मिल भी गया तो क्या वह जीतेगा? इसलिए नियुक्तियां और तबादलों में वसूली,ठेकों में कमीशनबाजी,पुलिस थानों में चहेतों की तैनाती से वसूली,सरकारी जमीनों पर कब्जे जैसी बुराइयां राजनीति में परम्परा बन गई है और इसके लिए दलालों की एक नस्ल भी राजनीति में सक्रिय रहती है। देश में भ्रष्टाचार मिटाने की बात सभी राजनीतिक नेता करते हैं। लेकिन दरअसल, वह खुद इसके फैलने के असली जिम्मेदार होता है। *9351415379*

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