*अंधेरे में चुनावी तीर, ना विजन, ना एजेंडा*

मतदाताओं को लुभावने वादों से लुभाने के जतन
-भाजपा और कांग्रेस के पास ना विजन, ना एजेंडा
-ना भाजपा की कोई उपलब्धि, ना कांग्रेस की

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉लोकसभा चुनाव की बयार में मतदाताओं को लुभावने वादों और लच्छेदार बातों-भाषणों से लुभाने की कोशिश की जा रही है। वादों और दावों की चाशनी में झूठ इतनी चतुराई से पेश किया जा रहा है कि कहने की क्या। यदि झूठ बोलने और मतदाताओं को लुभावने वादों से लुभा कर अपने पक्ष में वोट डलवाने का कोई पुरस्कार हो, तो भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को जरूर दिया जाना चाहिए। इन सबके बीच मतदाता भी मजबूर है। एक तरफ उसके सामने लोकतांत्रिक अधिकार का उपयोग करने यानी वोट डालकर सरकार चुनने की विवशता है, तो दूसरी ओर संविधान में भरोसा। कमोबेश अधिकांश मतदाता यही सोचते हैं कि उन्हें वोट जरूर डालना चाहिए और यह बात बहुत-कुछ हद तक सही भी है। लेकिन एक सवाल जेहन में जरूर उठना चाहिए कि हम भाजपा को वोट दें, तो क्यों दें और कांग्रेस को वोट दें तो क्यों। जब इस सवाल का जवाब खोजते हैं तो कुछ का कहना होता है कि हमें ऐसे व्यक्ति या उम्मीदवार को अपना जनप्रतिनिधि चुनना चाहिए, जो हर स्थिति-परिस्थिति में अपने क्षेत्र की जनता के साथ खड़ा रहे, उनकी समस्याओं के समाधान के लिए हर मोर्चे पर लड़ने को तैयार करे, शासन-प्रशासन से भिड़ने की जरूरत पड़े, तो बेबाक होकर भिड़े। कुछ का कहना है कि इन सब बातों के लिए स्थानीय निकाय और विधानसभा के चुनाव होते हैं, लोकसभा के चुनाव स्थानीय मुद्दों को लेकर नहीं, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के ज्वलंत मुद्दों को लेकर लड़े जाते हैं। ऐसे में उम्मीदवार नहीं, उसकी पार्टी देखनी चाहिए और जो पार्टी देश की अस्मिता, एकता और अखंडता को बनाए रखने में सक्षम हो, उसे वोट देना चाहिए। खैर, चाहे जो हो, किंतु, इन सबके बीच यह बात जरूर है कि लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाला बंदा यदि अपने क्षेत्र के विकास, रोजगार, उद्योग-धंधों की बात नहीं करेगा, तो कौन करेगा। अफसोस तो इस बात का है कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के अलावा स्थानीय मुद्दों, विकास और रोजगार पर तो कोई बात कर ही नहीं रहे हैं।

प्रेम आनंदकर
भाजपा और कांग्रेस द्वारा किए जा रहे चुनाव प्रचार में अब तक एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि दोनों दल जनता के सामने ठोस मुद्दों पर बात कर रहे हों। भाजपा और कांग्रेस के पास ना विजन, ना एजेंडा है। दोनों में से एक पास भी विकास के विजन और एजेंडे का खाका नहीं है। यदि है भी तो, केवल हवा-हवाई बातें हैं, जो कभी पूरी नहीं होने वाली हैं। मतदाताओं को केवल वादों की मृगमरीचिका दिखाई जा रही है। केवल रेलवे कारखानों को छोड़ दें, तो अजमेर जिले में या यूं कहें अजमेर संसदीय क्षेत्र में एक भी ऐसा बड़ा उद्योग नहीं है, जिसमें हजार-पांच सौ लोगों को रोजगार मिला हुआ हो। अजमेर में रेलवे के कारखानों की स्थिति भी किसी से छिपी हुई नहीं है। धीरे-धीरे इन कारखानों में काम सिमटता जा रहा है और कर्मचारियों की संख्या घटती जा रही है। इन कारखानों का अस्तित्व बचाए रखने के लिए पिछले करीब दो दशक से कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। अब बात करते हैं उपलब्धि की। ना भाजपा की कोई उपलब्धि, ना कांग्रेस की। पिछले साल नवंबर तक राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रही। कांग्रेस की सरकार रहते अजमेर को कोई बड़ी उपलब्धि नहीं मिली। केंद्र में पिछले दस साल से भाजपा की सरकार है, अजमेर से भाजपा के ही सांसद रहे हैं। एक भी बड़ी उपलब्धि भाजपा के खाते में नहीं है। अजमेर पहले भी पानी के लिए तरस रहा था और आज भी तरस रहा है। आनासागर की दुर्दशा पहले भी हो रही थी और अब भी हो रही है। रेलवे के कारखानों की स्थिति पहले भी गिरती जा रही थी और आज भी गिर रही है। कोई बड़ा उद्योग या कारखाना पहले भी नहीं लग पाया और अब भी नहीं लग पा रहा है। राजस्थान के अन्य जिलों व संभाग मुख्यालयों में दो-दो, तीन-तीन, चार-चार विश्वविद्यालय हैं, जबकि किसी समय शिक्षा की राजधानी कहे जाने वाले अजमेर में महज एक विश्वविद्यालय है। अन्य जिलों में एम्स, टेक्निकल इंस्टीट्यूट की भरमार है, अजमेर में केवल दो इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। क्या इन बातों-सवालों का भाजपा और कांग्रेस के नेताओं-उम्मीदवारों के पास कोई जवाब है। यदि जबाव है तो जनता के सामने रखे जाने चाहिएl

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