tejwani girdharआपको ख्याल में होगा कि पिछले दिनों नए ब्लैकमेल कांड को लेकर कितना हल्ला मचा था। पुराने से भी अधिक खतरनाक बताया जा रहा था। विरोध प्रदर्षन तक हुए। षहर की आबोहवा खराब होने की आषंका होने लगी। कितने दिन हो गए, कोई फोलोअप नहीं नजर आया। उसके आगे की चेन का भी अता पता नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि पिछले ब्लैकमेल कांड की रोषनी में मामले को अनावष्यक बढा चढा का प्रोजेक्ट कर दिया गया? क्या प्रोजेक्षन का कोई प्रयोजन था? मीडिया टायल भी कुछ अधिक ही हुआ। बेषक किसी गंभीर व ज्वलंत मसले पर पूरा फोकस किया जाना चाहिए, जिम्मेदार नागरिक के नाते सजग होना ही चाहिए, मगर इतना भी नहीं कि क्रिकेट की बॉल फुटबाल की तरह नजर आने लगे। कैसा विरोधाभास है, कैसी विडंबना है, या तो हम जल्द ही उबलने लगते हैं, या फिर मसला बर्फ के नीचे हाइबरनेषन में चला जाता है। इसी को षॉर्ट मेमोरी कहा जाता है।