हाल ही अचंभित करने वाली एक घटना से सामना हुआ। हुआ यूं कि मेरी बडी बहन ब्यावर से अजमेर मेरे घर आई। बातचीत के दौरान कुछ भावुक पलों में यकायक उनके चेहरे पर दिवंगत माताश्री का चेहरा दिखाई देने लगा। ऐसा लग रहा था कि बहिन नहीं, बल्कि माताश्री बात कर रही हैं। विषेश बात ये कि उस वक्त माताश्री का कोई जिक्र भी नहीं हो रहा था। मुझे लगा कि कहीं कोई भ्रम तो नहीं है, कोई इल्यूजन तो नहीं हो रहा। आंखें मीच कर फिर देखा तो फिर वही माताश्री का हूबहू चेहरा। ऐसा कुछ पलों तक रहा। खैर, रात्री विश्राम कर अगले दिन वे अहमदाबाद में अपने उपचाररत पुत्र से मिलने गई। पुत्र की कुषलक्षेम पूछी। रात्री में पुत्र के ससुराल में रूकीं। अचानक उनकी तबियत खराब हुई। बुखार सा था। गोली लेकर सो गई, और फिर उठी ही नहीं। हुआ क्या, कुछ पता ही नहीं लगा। अजमेर से तो बिलकुल स्वस्थ गई थीं। परिजन में आमराय थी कि कदाचित पुत्र की अस्वस्थता देख कर अवसाद में आ गई होंगी। और तो कोई वजह समझ में नहीं आई। मगर मेरे लिए बडा सवाल ये था कि दो दिन पहले उनके चेहरे पर मेरी दिवंगत माताश्री का चेहरा क्यों नजर आया था? क्या माताश्री के दर्षन और बहिन के इहलोक को छोडने के बीच कोई अंतर्संबंध है? क्या माताश्री की आत्मा बहिन की आयु पूर्ण होने पर अपने साथ लेने आई थी? प्रकृति बहुत रहस्यपूर्ण है। कहीं उसने कोई संकेत तो नहीं दिया था, जिसे मैं नहीं समझ पाया? हालांकि तार्किक रूप से आज भी मेरा यह मानना है कि वह एक संयोग या भ्रम मात्र था, मगर बार बार इसमें कोई रहस्य प्रतीत होता है। विद्वान बेतहर बता सकते हैं, मेरी बुद्धि तो नेति नेति कह कर हाथ खडे कर रही है।
