नारी सम्मान वन्दन और देवी मां की आराधना का पर्व नवरात्रि

dr. j k garg
नव और रात्र शब्दों से मिलकर बना है नवरात्रि । नव का अर्थ है नौ है वहीं रात्र शब्द में पुनः दो शब्द शामिल हैं “रा” का अर्थ है रात और “त्रि” का अर्थ है जीवन के तीन पहलू यानी शरीर मन और आत्मा। निसंदेह जीवन में हर एक को तीन प्रकार की मुश्किल समस्याओं का सामना करना ही पड़ता है वों भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक होती है। इन सभी समस्याओं से जो छुटकारा दिलवाने वाली “रात्रि” ही होती है । रात्रि या रात मनुष्यों को दुख से मुक्ति दिलाकर उनके जीवन में यश सुख सुविधा खुशहाली लाती है। सच्चाई तो यही है आदमी को आराम सिर्फ रात्री में ही मिलता है । रात की गोद में हम सभी अपने सारे सुख दुःख को भूल कर नींद का आनन्द लेते है |शक्ति स्वरूप माता की आराधना के नवरात्रि के नो दिन माने गए हैं | जहाँ चैत्र नवरात्रि के दौरान कठिन साधना और कठिन व्रत का महत्व है वहीं दुसरी तरफ शारदीय नवरात्रि के नो दिन के दौरान सात्विक साधना, नृत्य, उत्सव आदि का आयोजन किया जाता है |

चूंकि आश्विन मास में शरद ऋतु का प्रारंभ हो जाता है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है | शारदीय नवरात्रि के दौरान बंगाल में शक्ति की आराधना स्वरूप दुर्गा पूजा पर्व मनाया जाता है वहीं गुजरात में गरबा आदि का आयोजन किया जाता है |चैत्र नवरात्रि का महत्व महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में अधिक है | मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि की साधना आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाती है और आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाली है | वहीं शारदीय नवरात्रि सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने वाली मानी जाती है | नवरात्रि माँ के अलग अलग रूपों को निहारने और उत्सव मनाने का पर्व है। मान्यताओं के अनुसार देवी दुर्गा ने अश्विन के महीने में महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध किया इसलिए इन नौ दिनों को शक्ति की आराधना के लिए समर्पित कर दिया गया है | कहा जाता है क शारदीय नवरात्रि धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है | धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्हीं नौ दिनों में मां दुर्गा धरती पर आती है और धरती को उनका मायका कहा जाता है | उनके आने की खुशी में इन दिनों को दुर्गा उत्सव के तौर पर देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है |

चैत्र नवरात्रि के अंत में राम नवमी आती है | धार्मिक मान्यता के है कि प्रभु श्रीराम का जन्म रामनवमी के दिन ही हुआ था. जबकि शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन महानवमी के रूप में मनाया जाता है | शारदीय नवरात्रि के के अगले दिन विजयादशमी पर्व होता है | विजयदशमी के दिन माता दुर्गा ने महिषासुर का मर्दन किया था और प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया था | हमारी चेतना के अंदर सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण व्याप्त हैं । प्रकृति के साथ इसी चेतना के उत्सव को नवरात्रि कहते है। इन 9 दिनों में पहले तीन दिन तमोगुणी प्रकृति की आराधना करते हैं, दूसरे तीन दिन रजोगुणी और आखिरी तीन दिन सतोगुणी प्रकृति की आराधना का महत्व है । नवरात्रि के इस पावन त्योहार पर देश के उत्तर भारत के कई स्थानों पर कन्या पूजन किया जाता है। इस पूजा में नौ छोटी लड़कियों की पूजा की जाती है। लोग इसलिए उनकी पूजा करते है क्यूंकि उन्हें वे देवी माँ का रूप समझते है। नौ छोटी लड़कियों को हलवा, पूरी, मिठाई इत्यादि खिलाया जाता है।पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के ही विभिन्न नौ स्वरूपों को नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। नवरात्रों में हम पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरूपों की पूजा -आराधना करते हैं वहीं अगले तीन दिन में लक्ष्मी माता के तीन रूपों की आराधना करते है वहीं आखिरी के तीन दिन में माता सरस्वती के तीन स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती हैं

नवरात्रि के इस उत्सव पर कई प्रकार की पौराणिक मान्यता । मान्यता के अनुसार इन नो दिनों में श्रीराम ने सीता माता को रावण की कैद से छुड़वाने के लिए देवी दुर्गा की आराधना की थी। उन्होंने 108 कमलो की पूजा नौ दिनों तक की थी। जिसके पश्चात देवी दुर्गा उनके इस पूजा से प्रसन्न हो कर उन्हें विजयी होने का आशीर्वाद दिया था। उसके पश्चात राम ने अंहकारी रावण का वध किया था। इसी संदर्भ में यह भी जानना जरूरी है कि धार्मिक ग्रन्थों में दुर्गा सप्तशती के अन्तर्गत देव दानव युद्ध का विस्तृत वर्णन किया गया है जिसमें बताया गया है कि देवी भगवती और मां पार्वती ने किस प्रकार से देवताओं के साम्राज्य को स्थापित करने हेतु तीनों लोकों में उत्पात मचाने वाले बलशाली दानवों से लोहा लिया था, इसी वजह से आज सम्पूर्ण देश में हजारों की संख्याओं में दुर्गा यानी नवदुर्गाओं के मन्दिर स्थित हैं। पहला नवरात्र बालिकाओं को, दूसरा नवरात्र युवतियों तथा तीसरा नवरात्रा महिलाओं के चरणों में समर्पित है |सच्चाई तो यही है आदमी को आराम सिर्फ रात्री में ही मिलता है । रात की गोद में हम सभी अपने सारे सुख दुःख को भूल कर नींद का आनन्द लेते है | भारत में सदैव से नारी को देवी तुल्य मान कर सम्मान देने की गौरवमयी परंपरा चली आ रही है | नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री माँ की पूजा की जाती है। उनकी आराधना करने से लोगो को एक किस्म की ऊर्जा मिलती है। इस ऊर्जा का उपयोग भक्त अपने मन की अशांति को दूर करने के लिए करते है। नवरात्रा की प्रथम “देवीशैलपुत्री” के जरिये हमारे ऋषि-मुनि जहाँ हम लोगों को पहाड़ों के प्राक्रतिक स्वरूप एवं पर्यावरण को सुरक्षित बनाये रखने का संदेश देते हैं | नारी सम्मान वन्दन और देवी मां की आराधना का पर्व नवरात्रि 5नवरात्रि के दूसरे दिन देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना की जाती है। इसका उद्देश्य है कि हम इस दुनिया में अपना लक्ष्य प्राप्त कर सके और अपनी पहचान बना सके। वहीं दुसरी तरफ “देवी ब्रह्मचारिणी” के माध्यम से हम सभी को जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करते रहने के साथ साथ नवीन ज्ञान प्राप्ति करते हए नये नये शोध कार्य करते रहने का संदेश देती है |नवरात्रि के तीसरे दिन भक्त देवी दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा करते है। चंद्रघंटा इसलिए नाम दिया गया है, क्यूंकि माँ का स्वरुप चाँद के जैसे चमकता है। इनकी पूजा करने से मन में उत्पन्न सारे नकारात्मक और गलत विचार दूर हो जाते है। ईर्ष्या, घृणा जैसे विचारों से हमें मुकाबला करने की शक्ति मिलती है। महिलाएं शुरू से ही सहृदयता, सौहार्द, स्नेह और ममता की प्रतिमूर्ति रही है, “देवी चन्द्रघंटा” हम सभी को नारी की सुन्दरता के साथ साथ चन्द्रमा से मिलने वाली शीतलता,शालीनता,सहनशीलता,सहजता, सकारात्मकता एवं शांति का बोध करवाती है | नवरात्रि के चौथे दिन लोग दुर्गा माँ के कूष्माण्डा स्वरूप की पूजा करते है। इनकी पूजा करने से हम उन्नति की राह पर चलते है और इनका आशीर्वाद हमारे सोचने समझने की शक्ति को बेहतर तरीके से विकसित करता है।“देवी कूष्मांडा” भी हम सभी को संसार में माता -बहनों के अस्तित्व का बोध कराती है इसीलिये देवी कूष्मांडा को नारी सम्मान तथा सृष्टि रचना में उन्हें अक्षुण्ण बनाये रखने वाली देवी के रूप में जाना जाता है | नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता माता की पूजा की जाती है। उनको कार्तिकेय माता भी कहा गया है। इनके पूजा करने से भक्तों के अंदरूनी व्यवहारिक ज्ञान को विकसित करने के लिए उनका आशीर्वाद मिलता है। नवरात्रि के छठे दिन देवी दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है। माँ कात्यायनी की आराधना करने से मनुष्य के अंदर के नकारात्मक विचार दूर हो जाते है। माँ के दिए हुए आशीर्वाद से हम सही मार्ग पर चल सकते है। नवरात्रि के सातवें दिन पर देवी दुर्गा के कालरात्रि के स्वरूप की पूजा करते है। देवी कालरात्रि की पूजा करने से लोगो को अपने जीवन में यश, सम्मान और कीर्ति प्राप्त होता है। नवरात्रि के आठवें दिन देवी दुर्गा के महागौरी के स्वरूप की आराधना की जाती है। माँ महागौरी को सफेद रंग की देवी के रूप में पूजा जाता है। इनकी आराधना करने से मनुष्य की सारी मन की इच्छा पूरी हो जाती है। शांति का संदेश वाहक सफेद रंग से सुशोभित माता “महागोरी सभी सिद्धियों को संतुष्ट करने वाली हैं |नवरात्रि के नौवे दिन देवी दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की आराधना लोगों द्वारा की जाती है। इनकी पूजा करने से हमें ताकत मिलती है कि हम मुश्किल कार्य को सफलतापूर्वक कर सके। उन अधूरे कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करना
नवदुर्गा के नो स्वरूप महिलाओं के पूरे जीवन चक्र का प्रतिबिम्ब ही है यानी “शैलपुत्री” जन्म ग्रहण करती हुई कन्या का स्वरूप है, “ब्रह्मचारिणी” नारी का कौमार्य अवस्था प्राप्त होने तक का रूप है, वहीं नारी शादी से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने की वजह से “चंद्रघंटा” के समान है | जब महिला शिशु को जन्म देने के लिये गर्भवती बनती है तो वह “कूष्मांडा” का स्वरूप है वहीं नारी शिशु को जन्म दे देती है तो वह “स्कन्दमाता” बन जाती | संयम व साधना को धारण करने वाली नारी”कात्यायनी” का स्वरूप हो जाती है | सती सावित्री के समान अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से नारी”कालरात्रि” जैसी बन जाती है | जीवन पर्यन्त अपने परिवार को संसार मानकर उसका उत्थान और उन्नयन करने वाली नारी “महागौरी” हो जाती है और अंत में नारी अपने सभी दायित्वों का निर्वहन करने के बाद धरती को छोड़कर स्वर्गारोहण करने से पहले संसार मे अपनी संतान को सिद्धि और सम्पदा का आशीर्वाद देने वाली “सिद्धिदात्री” बन जाती है |
डा. जे. के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कॉलेज शिक्षा जयपुर

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