नई दिल्ली, अक्टूबर, 2024- भारत के ग्रामीण इलाकों में खेती में महिलाओं की लम्बे समय से निर्णायक भूमिका रही है, फिर भी उनके योगदानों पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता है। आज अभिनव प्रशिक्षण और सहयोग कार्यक्रम के माध्यम से महिला किसान आर्थिक और सामाजिक बाधाओं को तोड़ते हुए पर्यावरण के अनुकूल विकास की दिशा में अपने समुदायों का नेतृत्व कर रही हैं। महिला किसान दिवस के अवसर पर आइये, हम उन महिला किसानों के अथक प्रयासों का सम्मान और गुणगान करें जो बाधाओं को तोड़कर खेती में बदलाव का नेतृत्व कर रही हैं। इन पाँच प्रेरणादायी महिला किसानों ने न केवल अपनी ज़िंदगी बदली है, बल्कि सकारात्मक बदलाव के जबरदस्त असर से अपने आस-पास की महिलाओं को भी सशक्त किया है। उनकी कहानियाँ साहस और समुदाय की बदलाव लाने वाली शक्ति को दिखाती हैं। इनसे उस स्थायी प्रभावों का पता चलता है जिन्हें तब हासिल किया जा सकता है जब महिलायें सफलता पाने के लिए पूरी तरह लैस हों। आनंदना, कोका-कोला इंडिया फाउंडेशन द्वारा समर्थित कोका-कोला इंडिया के #SheTheDifference कैंपेन मे यही भावना दिखाई देती है जिसमें सशक्त महिलाएं अपने समुदायों में सार्थक बदलाव का नेतृत्व कर रही हैं।
पी. रेगिना : तमिलनाडु में एक समुदाय का पुनरुत्थान -तमिलनाडु के थेनी जिले की रेगिना 62 वर्ष की उम्र में अपने समुदाय में सशक्तिकरण का आन्दोलन चला रही हैं। 12 महिलाओं से गठित “वहिन” स्वयं सहायता समूह की लीडर के रूप में उन्होंने कैरट माल्ट, बीटरूट माल्ट और आमला कैंडी जैसे वनस्पति-आधारित आर्गेनिक उत्पादों के उत्पादन के माध्यम से कई लोगों का जीवन बदल दिया है। रेगिना के नेतृत्व में यह समूह अभी सामूहिक रूप से 30,000 रुपये की मासिक आमदनी कर रहा है। इससे ना सिर्फ उनकी वित्तीय हैसियत में सुधार हुआ है, बल्कि इससे उन्हें एक-दूसरे के सपनों को पूरा करने और आपसी सहयोग करने में मदद मिली है और वे काफी अच्छी दोस्त भी बन गई हैं।
रानी एचपी : कूर्ग में एक कॉफ़ी किसान का साहस – रानी एचपी की यात्रा कोडागु में हेरावानाडू की शाही परम्परा से जुड़ी है और यह उल्लेखनीय साहस एवं बदलाव की यात्रा है। अपने पति की मृत्यु के बाद उन्होंने दो दशकों तक बंजर भूमि को कॉफ़ी के फलते-फूलते खेत में बदलने के लिए परिश्रम किया। उनके निरंतर और कठिन परिश्रम का फल मिला और आज वे अपनी कॉफ़ी की फसल से लगातार सम्मानजनक आमदनी प्राप्त कर रही हैं। रानी की सफलता और भी बड़ी हो गई जब उन्हें स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग और आनंदना से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। कोका-कोला इंडिया फाउंडेशन ने उन्हें खेती करने की स्थायी पद्धतियों के बारे में बताया जिससे उन्हें अपनी खेती की तकनीकों को बेहतर बनाने में मदद मिली। उनके नेतृत्व और सपर्पण को देखते हुए कूर्ग में इस्वर (आईएसडब्लूएआर) की पहल, माडिकेरी हाइलैंड्स फार्मर्स प्रोडूसर्स कंपनी लिमिटेड (एफपीओ) के लिये बोर्ड डायरेक्टर के पद पर नियुक्त किया गया था।
सुवर्णा : कचरे से वर्मीकम्पोस्ट बनाकर कमाई करना- महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के गोंडोली गाँव की एक दृढ़ निश्चयी लघु किसान, सुवर्णा ने अपनी मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और रासायनिक खादों पर निर्भरता कम करने के लिए वर्मीकम्पोस्टिंग को अपनाया। विशेषज्ञ प्रशिक्षकों के मार्गदर्शन में, उन्होंने एक ही क्यारी से 450 किलोग्राम वर्मीकम्पोस्ट का सफलतापूर्वक उत्पादन किया, जिससे उनकी गन्ने की फसल और सब्जी के बगीचे में काफी वृद्धि हुई। इस आसान लेकिन शक्तिशाली पद्धति ने उनके परिवार को आर्थिक और पोषण संबंधी दोनों तरह के लाभ प्रदान किए हैं, जिससे वे अपनी उपज खुद उगा और खा सकते हैं। 2022 में शुरू हुई उनकी यात्रा लगातार बढ़ती गई है, जिसने सुवर्णा को एक संपन्न किसान-उद्यमी में बदल दिया है।
प्रीति कृष्ण कुमार : खेती में सफलता की ओर एक युवा माँ की यात्रा- महज 24 की उम्र में थेनी की प्रीती कृष्ण कुमार के सामने सीमित संसाधनों के साथ मातृत्व की जिम्मेदारियों और खेती के बीच संतुलन बिठाने का प्रश्न खड़ा था। इसी समय वे बागवानी पर केन्द्रित एक महिला सशक्तिकरण प्रोग्राम में शामिल हुईं और यहाँ से उनके जीवन में एक परिवर्तनकारी मोड़ आया। लगभग तीन वर्षों तक करीब 50 प्रशिक्षण सत्रों के बाद प्रीति ने अंगूर और मिर्च की खेती आरम्भ की। उन्होंने इसके साथ-साथ मूल्य-वर्धित उत्पाद जैसे बनाना पाउडर, अंगूर क स्क्वाश और मोटे अनाजों (मिलेट) के स्नैक्स भी बनाने लगीं। इस उपक्रम से उनकी सालाना आमदनी में 53% की शानदार बढ़ोतरी हुई और आज वे 10,000 रुपये महीना कमा रही हैं। एक किसान और उद्यमी के रूप में उनकी नई आत्मनिर्भरता से उन्हें अपने परिवार के भविष्य में योगदान करने में एक उद्देश्य का अहसास हुआ है। उन्हें अपने काम पर बेहद गर्व है।
बसंती : उत्तराखंड के सेब बागानों में कर रही है विकास- उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की बसंती की कहानी आधुनिक कृषि तकनीकों और रणनीतिक सहायता की बदलाव लाने वाली शक्ति का प्रतिबिम्ब है। आनंदना, कोका-कोला इंडिया फाउंडेशन के प्रोजेक्ट उन्नति एप्पल के द्वारा उन्हें ड्रिप सिंचाई और जैविक प्रथाओं की जानकारी दी गई, जिससे उसके सेब की पैदावार में काफी सुधार हुआ। पहले आलू की खेती से हर सीजन में सिर्फ़ 20,000 रुपये कमाने वाली बसंती को अब अपने सेब के बागानों से 3 लाख रुपये तक की कमाई की उम्मीद है। इस सफलता से न केवल उसके परिवार की वित्तीय स्थिरता बढ़ी है, बल्कि खेत पर होमस्टे बनाने का उनका सपना भी पूरा हुआ है।