पुष्कर की कहावत इस बार भी चरितार्थ नहीं हुई

कार्तिक एकादषी से धार्मिक पुश्कर मेला आरंभ हो गया, मगर पिछले कुछ सालों की तरह इस बार भी, वह कहावत चरितार्थ नहीं हुई कि पुश्कर सरोवर का पाली हिलने पर कडाके की ठंड षुरू हो जाती है। ज्ञातव्य है कि श्रद्धालुओं के कार्तिक स्नान से पुश्कर के पानी में हलचल होती है, और इसी के साथ सर्दी भी तेज हो जाया करती है। कडाके की सर्दी। ठिठुराने वाली। यह सिलसिला कई साल जारी रहा और कहावत बन गई। लेकिन पिछले कुछ सालों से ऋतु चक्र में बदलाव के कारण पुश्कर का पानी हिलने पर भी ठंड नहीं बढ रही। इसकी एक वजह यह भी मानी जाती है कि नाग पहाड पर अब पहले जैसा जंगल नहीं रहा। वृक्षों की कटाई से पर्यावरण संतुलन बिगड गया है, जिससे यहां का तापमान बढ गया है। नागौर में पसरा रेगिस्तान अजमेर की सीमाओं को छूने लगा है।
जहां तक कहावत का सवाल है तो सर्दी बढने के पीछे कुछ जानकार वैज्ञानिक पहलू मानते हैं। उनके अनुसार पुष्कर का पानी अपने खनिज गुणों के कारण ठंडक को लंबे समय तक बनाए रखता है, और जब हवा में ठंडक बढ़ती है या झील में हलचल होती है, तो इसके पानी की शीतलता और बढ़ जाती है, जिससे वातावरण में ठंडक बढती है। लेकिन अब वायुमंडल का तापमान अधिक है, इसलिए ठंड का असर नहीं दिखाई दे रहा। मात्र गुलाबी ठंड है, वो भी रात में।

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