
वो तो अब बंट चुका है,
कोई धर्म के नाम पर
तो कोई जात-पात के नाम पर,
कोई भविष्य निर्माण कर्ता बनकर
तो कोई इंसानी ईश्वर बनकर।
इंसान में अब कहां इंसानियत रही
वह तो अब सम्पूर्ण बदल चुका है,
एक-दूसरों से दूरियां बनाकर
अपने अहंकार में रहकर,
आपसी भेदभाव दिखाकर
अपनी शान-शौकत दिखाकर।
आज के भागदौड़ जीवन में
कुछ साबित करने की होड़ में,
किसीने इंसानियत भुला दिया है
तो किसीने इंसानियत छीन लिया है,
कोई इंसान के रूप में हैवान बना है
तो कोई अब तक इंसान बना ही नहीं है।
कब लौटेगा इंसान की इंसानियत
यही आश लगाए हुए हैं हम सब,
कब कम होगी इंसान की दूरियां
इसी सोच में डूबे हैं हम सब,
कब इंसान, इंसान बन पाएगा
यही इंतजार कर रहे हैं हम सब।
शिकायत है मुझे उन लोगों से
जिसने इंसान को बदलकर रख दिया है
जो इंसान के दुश्मन बने हुए है।
गुज़ारिश है मेरी उन्हीं लोगों से
इंसान की इंसानियत वापस कर दो
इंसान को मात्र इंसान ही बनकर रहने दो।
गोपाल नेवार, गणेश,
सलुवा खड़गपुर, पश्चिम मेदिनीपुर,
पश्चिम बंगाल। 9832170390.