दोस्तो, नमस्कार। कुछ कथा वाचक व संत श्रोताओं का विष्वास जीतने के लिए एक अनूठी तरकीब का इस्तेमाल किया करते हैं। इसकी जानकारी मुझे अरसे पहले मेरी मां के माध्यम से हुई। वे आध्यात्मिक प्रवत्ति की थीं। अमूमन संतों के प्रवचन व कथा सुनने जाती थीं। एक बार कथा सुन कर आने पर उन्होंने बताया कि आज अमुक संत ने कहा कि यदि आपको मेरी बातों पर यकीन न हो तो घर जा कर देखना। गीता की जिस पुस्तक का आप पठन किया करती हैं, उसमें कहीं न कहीं बाल मिल जाएगा। उन्होंने पुस्तक को खंगाला तो एक जगह बाल मिल गया। मैं भी चकित रह गया। बाद में उन्होंने बताया कि उनके साथ कथा सुनने गईं अन्य महिलाओं को भी उनकी पुस्तकों में बाल मिला है। तब तो मैं सन्न रह गया। कि क्या कोई संत इस प्रकार घरों में रखी हुई गीता पुस्तकों में बाल भेज सकते हैं। हो सकता है कि ऐसा करना किन्हीं संतों की सामर्थ्य में हो, मैं उसे सिरे से तो नहीं नकारता, मगर मेरी भेद बुद्धि इस पर सहसा विष्वास नहीं करती। मुझे लगता है कि जो महिलाएं नियमित गीता का पाठ करती हैं, उनका बाल पुस्तक में गिरने की प्रबल संभावना हो सकती है। जैसे कई बार रोटी व सब्जी में बाल गिर जाता है। अच्छा, एक दिलचस्प बात और। वो यह कि कथा सुनने के बाद जिस महिला को पुस्तक में बाल नहीं मिलता, वह यही मानती है कि वह भाग्यवान नहीं है। उसे लगता है कि जब इतनी सारी महिलाओं को बाल मिले हैं, और अकेले उसको ही बाल क्यों नहीं मिला, तो कोई तो वजह होगी ही। यानि कि वह संत की बात पर षंका नहीं करती। और इसके पीछे है आस्था। आस्था तर्क को नहीं मानती। श्रद्धा उसे ऐसा करने से रोकती है।
