*कानूनी प्रावधानों को ताक में रखकर अवैध गिरफ्तारी करने वाले सी आई भीकाराम के खिलाफ हो कार्यवाही-डॉ.मनोज आहूजा*

नोटेरी अधिनियम की धारा 13 के अनुसार किसी भी नोटेरी पब्लिक के खिलाफ तब तक कार्यवाही नहीं की जा सकती जब तक कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा परिवाद ना दे दिया हो।इस सम्बन्ध में-
*केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई भी अदालत केंद्र सरकार या राज्य सरकार (उस संबंध में एक सामान्य या विशेष आदेश) द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी द्वारा लिखित में दी गई शिकायत के अलावा अधिनियम के तहत नोटरी पब्लिक द्वारा अपने कार्यों को करते समय किए गए किसी भी अपराध पर संज्ञान नहीं ले सकती है।*
न्यायमूर्ति एमआर अनीथा ने नोटरी अधिवक्ता के खिलाफ दायर चार्जशीट को खारिज करते हुए इस बात पर गौर किया कि उस पर आरोप लगाया गया है कि उसने एक व्यक्ति को फर्जी पॉवर ऑफ अटार्नी बनाने में मदद की थी ताकि वह उसे ओरिजनल की तरह पेश कर सकें। कोर्ट ने कहा कि नोटरी अधिनियम की धारा 13 के तहत बार या रोक अनिवार्य है और यदि नोटरी को ऐसी कोई सुरक्षा न दी जाए तो उनके लिए अपने कार्य को नोटरी के रूप में करना मुश्किल होगा।
वकील ने यह कहते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि अपराध का पंजीकरण और उसके खिलाफ न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेना,नोटरी अधिनियम, 1952 की धारा 13 से टकराव पैदा कर रहा है या उसके विपरीत है। नोटरी अधिनियम की धारा 13 (1) के तहत यह रोक लगाई गई है कि कोई भी अदालत केंद्र सरकार या राज्य सरकार (उस संबंध में एक सामान्य या विशेष आदेश) द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी द्वारा लिखित में दी गई शिकायत के अलावा अधिनियम के तहत नोटरी पब्लिक द्वारा अपने कार्यों को करते समय किए गए किसी भी अपराध पर संज्ञान नहीं ले सकती है।
*अदालत ने कहा कि-* जब भी नोटरी के आधिकारिक कृत्य का एक प्रश्न निर्धारण के लिए आता है, तो आपराधिक न्यायालय का यह कर्तव्य बनता है कि वह यह देखें कि क्या उस पर लगाए गए आरोप सीधे उसके आधिकारिक कर्तव्य या उस प्रदर्शन से संबंधित हैं जो उसे अधिनियम की धारा 8 के तहत करने होते हैं? अदालत को अपने न्यायिक दिमाग को लागू करना होगा और यह देखना होगा कि शिकायत का विषय नोटरी का आधिकारिक कार्य है या उसके आधिकारिक प्रदर्शन से परे का कार्य है। नोटरी के अनधिकृत कृत्यों के बारे में भी बताया गया है,जैसे किसी व्यक्ति की हत्या या किसी को चोट पहुंचाने के लिए हमला करना या गंभीर रूप से चोट पहुंचाना आदि। इसलिए अगर नोटरी पर लगाए गए सभी आरोप अनधिकृत कृत्यों से संबंधित हैं या उसके आधिकारिक कार्य से नहीं जुड़े हैं तो निश्चित रूप से धारा 13 (1) के तहत मंजूरी प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।
नोटरी के खिलाफ लगाए गए आरोपों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने आगे कहा कि एक नोटरी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वह अपने नोटरीअल रजिस्टर में एक दस्तावेज को सूचित करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति के बारे में जाने या उसके बारे में पता लगाए।
*कोर्ट ने कहा कि-*
*एक नोटरी के लिए यह काफी असंभव कार्य है कि वह सत्यापन के लिए उसके समक्ष पेश किए गए दस्तावेज की वास्तविकता को जाने। एक नोटरी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वह अपने नोटरीअल रजिस्टर में एक दस्तावेज को सूचित करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति के बारे में जाने या उसके बारे में पता लगाए।* आम तौर पर उसे उन व्यक्तियों द्वारा पार्टियों से मिलवाया जाता है जो उसके परिचित व्यक्ति होते हैं। अगर इस तरह की सुरक्षा नोटरी को नहीं दी जाती है,तो उसके लिए नोटरी के रूप में काम करना बहुत मुश्किल होगा और बड़े पैमाने पर जनता के सदस्यों को हर कदम पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। इसी कारण से धारा 13 को विधानमंडल द्वारा सुरक्षा कवच के रूप में लागू किया गया है।
इसलिए ऊपर चर्चा की गई कानून की निर्धारित स्थिति के मद्देनजर,यह निष्कर्ष निकालने में संदेह करने के लिए कोई जगह नहीं होगी कि धारा 13 (1) के तहत प्रदान की गई बार या वर्जन अनिवार्य है और कोई भी अदालत केंद्र सरकार या राज्य सरकार (उस संबंध में एक सामान्य या विशेष आदेश) द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी द्वारा लिखित में दी गई शिकायत के अलावा अधिनियम के तहत नोटरी पब्लिक द्वारा अपने कार्यों को करते समय किए गए किसी भी अपराध पर संज्ञान नहीं ले सकती है।यह नियम बनाने वाले प्राधिकरण द्वारा उन कार्यों को देखते हुए नोटरी पब्लिक को दी गई सुरक्षा है जिसे नोटरी पब्लिक को करना पड़ता है।धारा 8 किसी भी दस्तावेज के निष्पादन को सत्यापित, प्रमाणित, सर्टिफाई या अटेस्ट करने के लिए एक नोटरी पब्लिक को अधिकृत करती है।उस स्तर पर,वह दस्तावेज की वास्तविकता या उन परिणाम के बारे में नहीं जानता होता है जो दस्तावेज के निष्पादन के बाद सामने आ सकते हैं।
यदि नोटरी को ऐसी कोई सुरक्षा नहीं दी जाती है,तो उसके लिए अपने उन कार्यों को निष्पादित करना मुश्किल होगा,जो नोटरी के रूप में किए जाने चाहिए। इसलिए जब भी एक नोटरी पब्लिक के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जाता है, तो अदालत को अधिनियम के तहत दिए गए सुरक्षा से बेखबर नहीं होना चाहिए और शिकायत की प्रकृति और औपचारिकताओं की पुष्टि किए बिना सीधे ही संज्ञान नहीं लेना चाहिए।
केसः वी.पी.ज्योलसना बनाम केरल
उक्त न्यायिक निर्णय में दिए गए प्रावधानों के साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41(1) की पालना करने के सम्बन्ध में भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अरनेश कुमार सहित कई निर्णय पारित किये हैं।इन सबका उल्लंघन करने वाला व्यक्ति अपने उच्च अधिकारीयों की कृपा दृष्टि से आज भी अवैध कार्यों को किये जा रहा है और कानून के रक्षक न्याय के लिए संविधान में प्रदत्त दिशा निर्देशों के दायरे में शांति पूर्ण आंदोलन कर रहा है उस आंदोलन को कुचला जा रहा है।मैं प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय भजन लाल जी शर्मा व अजमेर के संरक्षक माननीय वासुदेव देवनानी विधानसभा अध्यक्ष जी से निवेदन कर रहा हूं।आप कृपया इस मामले में तुरंत उचित कानूनी कार्यवाही करें अन्यथा वकीलों और पुलिस की ये लड़ाई प्रदेश की शांति व्यवस्था को भंग कर सकती है जो कतई उचित नहीं है।यहां मैं ये भी निवेदन करना चाहूंगा कि इस पूरे मामले में आईजी अजमेर की भूमिका संदिग्ध है जिसकी जाँच करवाया जाकर भी उचित कार्यवाही की जाना अत्यंत आवश्यक है।
*सादर-डॉ.मनोज आहूजा एडवोकेट, अध्यक्ष बार एसोसिएशन केकड़ी*