हर साल वही बारिश, वही हाल, और वही सवाल – क्या कभी मिलेगा जवाब?”
“विकास की बारिश कहाँ है?”
बादल बरसे, पानी गिरा — और सड़कों ने जवाब दे दिया,
गली-गली में दरिया बहा, हर घर ने दर्द जिया।
किससे कहें अब, किसे पुकारें इस हाल में?
जब जिम्मेदार ही खो जाते हैं सवाल में।
कई सरकार आई-गई, लेकिन समस्या जस की तस है,
हर साल यही किस्सा — और नतीजा शून्य बस है।
कभी नाली अधूरी, कभी रोड खुदी पड़ी,
काग़ज़ों में उड़ान भरे सपने, हकीकत में गीली गली।
कहते हैं — करोड़ों का बजट है तैयार,
फिर क्यों बारिश में बह जाती है हर दीवार?
किसने रोका था आपको तैयारी करने से?
या फिर उम्मीदें भी डूब गई हैं बरसात के बहाव में?
झील के बाहर भी झील, शहर बना जलमहल,
जनता पूछे — “कब हटेगा ये झूठ का दलदल?”
बस एक बार जवाब चाहिए ईमानदारी से,
कागज़ नहीं, बदलाव चाहिए जिम्मेदारी से।
अब ना नारे, ना भाषण, ना आंकड़ों की बात,
बस काम चाहिए, वो भी समय पर — साफ़-साफ़।
राजीव शर्मा
पत्रकार
पत्रकार