पूर्णिमा से शुरु होती यह सर्दियो की रात,
अमृत बरसता है इस दिन सब पर खास।
चन्द्र और पृथ्वी इस रोज आते है समीप,
राधा व कृष्ण ने इसदिन रचाया था रास।।
इसी उजियाली शरद पूनम वाली रात मे,
अनेक रुप बनाए थे गोपाल घनश्याम ने।
सब गोपियो के संग-संग झूम रहे थे ऐसे,
हर एक के साथ एक-एक कान्हा सामने।।
कार्तिक पूर्णिमा का स्नान करता निहाल,
जिसमे प्रयाग राज और पुष्कर है महान।
इस दिन लगते है मैले, मिठाइयो के ठेले,
होते खेल-कूद नाच-गान पशुओ के मैले।।
तीर्थस्थलो का पानी हिल जाता इस दिन,
रेगिस्तान के किनारे बनी है पुष्कर झील।
पाप हर लेती है इस मे लगाई हुई डुबकी,
५२ घाट से निर्मित अर्धवृताकार ये झील।
विश्व मे एकमात्र तीर्थराज बह्माजी मंदिर,
करते ध्यान, स्नान रोग-दोष होते छूमंतर।
आते है हर वर्ष अनेक विदेशो से सैलानी,
राजस्थानी पोशाको मे घूमते वो सजकर।।
सैनिक की कलम
गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान