ब्याज दरों को लेकर रिजर्व बैंक (आरबीआइ) अपने पत्ते मंगलवार को ही खोलेगा। सोमवार की शाम अर्थंव्यवस्था पर रिपोर्ट जारी करते हुए केंद्रीय बैंक ने चालू खाते में घाटे की खतरनाक स्थिति को लेकर चेताया है। वहीं, महंगाई के पूरी तरह से काबू में नहीं आने पर अपनी चिंता भी जताई है। इसके बावजूद आरबीआइ ने ब्याज दरों में कटौती की संभावना से पूरी तरह से इन्कार भी नहीं किया है।
रिजर्व बैंक मंगलवार को चालू वित्त वर्ष की मौद्रिक नीति की आखिरी तिमाही समीक्षा पेश करने वाला है। सरकार के नुमाइंदों से लेकर उद्योग जगत के दिग्गज तक आरबीआइ गवर्नर डी सुब्बाराव से सार्वजनिक तौर पर आग्रह कर चुके हैं कि इस बार ब्याज दरों में कटौती की जाए। तभी अर्थव्यवस्था की सुस्त पड़ती रफ्तार को तेज किया जा सकेगा। देश के सभी प्रमुख उद्योग चैंबरों व बैंकरों ने आरबीआइ से कहा है कि वह रेपो रेट (वह ब्याज दर जिस पर आरबीआइ बैंकों को कम अवधि के कर्ज देता है) में कम से कम 0.25 फीसद की कटौती अवश्य करे। इससे होम और ऑटो लोन वगैरह की दरों में कटौती होगी।
आरबीआइ ने कहा है, ‘अर्थव्यवस्था के समक्ष महंगाई, चालू खाते के घाटे और राजकोषीय घाटे की स्थिति को देखते हुए मौद्रिक उपायों की बहुत कम गुंजाइश है। लेकिन सरकार जिस तरह से हाल के दिनों में घोषित आर्थिक सुधारों को लागू करेगी, मौद्रिक उपायों की संभावना बनेगी।’ इससे पहले गवर्नर ने भी दिसंबर, 2012 में यह संभावना जताई थी कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो जनवरी में ब्याज दरों में कटौती का फैसला किया जा सकता है।
जानकारों का कहना है कि कुछ चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद आरबीआइ पर इस बार ब्याज दरों में कटौती का काफी ज्यादा दबाव है। सितंबर, 2012 में जब आरबीआइ गवर्नर ने ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की थी, तब वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने काफी तल्ख टिप्पणी की थी कि अगर आर्थिक विकास दर को सुधारने की जिम्मेदारी अकेले सरकार की है तो वह अकेले ही इस काम को करेगी। उसके बाद से केंद्र सरकार की तरफ से आर्थिक सुधार के कई कदम उठाए गए हैं। यही वजह है कि लोग यह अनुमान लगा रहे हैं कि महंगाई को लेकर बेहद संतोषप्रद स्थिति न होने के बावजूद रेपो दर में एक चौथाई फीसद की कटौती की जा सकती है।