नई दिल्ली। शुक्रवार का दिन खगोलविदों के लिए बेहद अहम था। जहां कल 2012 डीएम 14 नामक उल्का पिंड पृथ्वी के बेहद करीब से सकुशल निकल गया। वहीं, एक दूसरे उल्का पिंड के सेंट्रल रूस में गिरने से वहां करीब बारह सौ लोग घायल हो गए। इनमें दो सौ के करीब बच्चे शामिल हैं। सभी घायलों का इलाज किया जा रहा है। जिस वक्त यह रूस की धरती से टकराया उस वक्त इससे निकलने वाली उर्जा तेज चमकते सूरज की ही तरह थी।
रूस के आंतरिक मंत्रालय ने इस उल्का पिंड से नुकसान का आकलन और सफाई के लिए बीस हजार लोगों की टीम लगाई है। यह उल्का तीस किमी. प्रति सेकेंड की रफ्तार से धरती पर गिरा था। इसकी वजह से उराल पर्वतमाला में एक बड़ा गड्ढा भी हो गया है। कल जब सेंट्रल रूस में यह उल्का आग का गोला बनकर गिरा तो सभी का ध्यान 2012 डीए 14 की तरफ गया जो धरती के बेहद करीब से होकर गुजरने वाला था। कई लोगों को यह गलतफहमी भी हुई कि रूस के उराल में गिरा उल्का वही है जो पृथ्वी के करीब से गुजरने वाला था। लेकिन नासा ने इन दोनों में कोई भी संबंध होने से साफ इन्कार किया है।
नासा के मुताबिक उराल में गिरने वाला उल्का करीब 18 मीटर चौड़ा था और यह वजन में करीब सात से दस हजार टन का रहा होगा। धरती पर गिरते हुए इसमें से निकलने वाली उर्जा को नासा ने पांच सौ किलो टन तक का बताया है। इस उल्का को पहले अलास्का के ऊपर देखा गया था। नासा के मुताबिक करीब सौ वर्षो में इस तरह की घटना होती है जब कोई उल्का धरती के वायुमंडल में प्रवेश कर आग के गोले का रूप धर लेती है और तबाही मचाती है।
रूस में इस उल्का के गिरने से जहां कई मकान और फैक्ट्रियां धराशायी हो गई वहीं करीब पंद्रह सौ लोग भी जख्मी हो गए। इसको धरती पर गिरते कई लोगों ने अपनी आंखों से देखा था। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक यह नजारा बेहद विचित्र था, उन्होंने एक आग के गोले को धरती पर गिरते देखा और एक बहुत तेज आवाज से वह कांप उठे थे।
वहीं कल ही धरती के करीब से गुजरते फुटबाल के आधे मैदान के बराबर उल्कापिंड ने कुछ देर के लिए वैज्ञानिकों की धड़कनें तेज कर दी थीं। इसकी वजह यह थी कि इस उल्कापिंड की जद में अंतरिक्ष में मौजूद कुछ उपग्रह आ सकते थे। आशंका जताई जा रही थी कि यदि यह उनसे टकरा गया तो काफी नुकसान हो सकता है। ऐसा पहली बार हुआ था जब कोई इतना बड़ा उल्कापिंड धरती के इतने करीब से होकर सकुशल निकल गया हो। यह उल्कापिंड धरती से करीब 17,150 मील की दूरी से होकर गुजरा।
नासा के मुताबिक 2012 डीए 14 उल्कापिंड 7.8 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से इंडोनेशिया के ऊपर से होकर सूरज की ओर चला गया। वैज्ञानिकों के मुताबिक उल्का पिंडों के बारे में जानने का यह समय सबसे अच्छा होता है।