इस्लाम में इसलिए है सूअर के मांस का निषेध

ऐतेजाद अहमद खान
ऐतेजाद अहमद खान

-ऐतेजाद अहमद खान- इस्लाम में अगर किसी चीज़ की मनाही है तो जरुरी नहीं की हम ये बात अभी समझ आ जाये की ऐसा क्यों. इस्लाम के उदय की 1400 साल में हालात कितने भी बदले हो पर कुरान में कही समय के बहाव (time will reveal many aspects from Quran and Islam) के साथ ही पता चलती हैं क्या सत्य है क्या गलत इसका ज्वलंत उदहारण है स्वाइन फ्लू.
स्वाइन फ्लू फेलने के केवल और केवल एक ही कारण है सूअर. और भारत सरकार सूअर पालन पर अनुदान दे रही है जिसका प्रभाव आप देख ले की केवल 2 माह में राजस्थान में ही 150 लोग बलि चढ़ गए.  (मजबूरी है इसलिए इस शब्द का प्रयोग कर रहे है वरना सूअर शब्द की जगह बद जानवर का शब्द है)
शूकर इन्फ्लूएंजा, जिसे एच1एन1 या स्वाइन फ्लू भी कहते हैं, विभिन्न शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणुओं मे से किसी एक के द्वारा फैलाया गया संक्रमण है। शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणु (SIV-एस.आई.वी), इन्फ्लूएंजा कुल के विषाणुओं का वह कोई भी उपभेद है, जो कि सूअरों की स्थानिकमारी के लिए उत्तरदायी है।[2] 2009 तक ज्ञात एस.आई.वी उपभेदों में इन्फ्लूएंजा सी और इन्फ्लूएंजा ए के उपप्रकार एच1एन1 (H1N1), एच1एन2 (H1N2), एच3एन1 (H3N1), एच3एन2 (H3N2) और एच2एन3 (H2N3) शामिल हैं। इस प्रकार का इन्फ्लूएंजा मनुष्यों और पक्षियों पर भी प्रभाव डालता है।
शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणु का दुनिया भर के सुअरो मे पाया जाना आम है। इस विषाणु का सूअरों से मनुष्य मे संचरण आम नहीं है और हमेशा ही यह विषाणु मानव इन्फ्लूएंजा का कारण नहीं बनता, अक्सर रक्त में इसके विरुद्ध सिर्फ प्रतिपिंडों (एंटीबॉडी) का उत्पादन ही होता है। यदि इसका संचरण, मानव इन्फ्लूएंजा का कारण बनता है, तब इसे ज़ूनोटिक शूकर इन्फ्लूएंजा कहा जाता है। जो व्यक्ति नियमित रूप से सूअरों के सम्पर्क में रहते है उन्हें इस फ्लू के संक्रमण का जोखिम अधिक होता है।
इस लेख को पड़ कर आपको पता चल जाएगा की क्यों इस्लाम के सूअर का मांस निषेध है.
इस्लाम में सुअर का मांस क़ुर्आन के स्पष्ट प्रमाण के द्वारा हराम (निषिद्ध) किया गया है, और वह अल्लाह तआला का यह कथन है : “तुम पर मुर्दा, (बहा हुआ) खून और सुअर का मांस हराम है।” (सूरतुल बक़रा : 173)
किसी भी परिस्थिति में मुसलमान के लिए उसको खाना वैध नहीं है सिवाय इसके कि उसे ऐसी ज़रूरत पेश आ जाये जिस में उसका जीवन उसे खाने पर ही निर्भर करता हो, उदाहरण के तौर पर उसे ऐसी सख्त भूख लगी हो कि उसे अपनी जान जाने का भय हो, और उसके अतिरिक्त कोई दूसरा भोजन न हो, तो शरीयत के नियम : “आवश्यकतायें, अवैध चीज़ों को वैध बना देती हैं।” के अंतर्गत उसके लिए यह वैध होगा।
शरीयत के ग्रंथों में सुअर के मांस के हराम किए जाने के किसी विशिष्ट कारण का उल्लेख नहीं किया गया है, इस के बारे में केवल अल्लाह तआला का यह कथन है कि : “यह निश्चित रूप से गंदा -अशुद्ध और अपवित्र- है।”
“रिज्स” (अर्थात् अपवित्र) का शब्द उस चीज़ पर बोला जाता है जो शरीयत में तथा शुद्ध मानव प्रकृति वाले लोगों की निगाह में घृणित, घिनावनी और अशुद्ध हो। और मात्र यही कारण उस के हराम होने के लिए पर्याप्त है। इसी तरह एक सामान्य कारण भी वर्णित हुआ है, और वह खाने और पीने इत्यादि में हराम चीज़ों की निषिद्धता के बारे में वर्णित कारण है, और वह पोर्क के निषेद्ध की हिक्मत की ओर संकेत करता है, वह सामान्य कारण अल्लाह तआला का यह फरमान है :
“और वह (अर्थात् पैग़म्बर) पाक (शुद्ध) चीज़ों को हलाल (वैध) बताते हैं और नापाक (अशुद्ध) चीज़ों को हराम (अवैध) बताते हैं।” (सूरतुल आराफ : 157)
इस आयत का सामान्य अर्थ सुअर के मांस के निषिद्ध होने के कारण को भी सम्मिलत है, और इस से ज्ञात होता है कि पोर्क इस्लामी शरीयत के दृष्टिकोण में अशुद्ध और अपवित्र चीज़ों में से गिना जाता है।
इस स्थान पर “अपवित्र चीज़ों” (खबाइस) से अभिप्राय वह सब कुछ़ है जो मानव के स्वास्थ्य, धन और नैतिकता के लिए हानिकारक हो, अत: हर व चीज़ जिस का मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं में से किसी एक पर भी नकारात्मक परिणाम और दुष्टप्रभाव हो वह अपवित्र (खबाइस) के अतंर्गत आता है।
वैज्ञानिक और चिकित्सा अनुसंधानों ने भी यह सिद् किया है कि सुअर, अन्य सभी जानवरों के बीच मानव शरीर के लिए हानिकारक रोगाणुओं का एक भण्डार है, इन हानिकारक तत्वों और रोगों का विस्तार लंबा है, संछिप्त रूप से वे इस प्रकार हैं :
परजीवी रोग, जीवाणु रोग, वायरल रोग, बैक्टीरियल बीमारियां, और अन्य।
ये और अन्य हानिकारक प्रभाव इस बात का प्रमाण हैं कि बुद्धिमान शास्त्रकार ने सुअर का मांस खाना किसी व्यापक हिक्मत के लिए ही हराम ठहराया है, और वह मानव के जान (स्वास्थ्य) की रक्षा है, जो कि इस्लामी शरीयत के द्वारा संरक्षित पाँच बुनियादी ज़रूरतों में से एक है।

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