रेल बजट 2013: भारतीय रेल की डर्टी पिक्चर

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नई दिल्ली [कमल कान्त वर्मा]। रेल मंत्री पवन कुमार बंसल मंगलवार को रेल बजट पेश करने वाले हैं। रेल बजट को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं लेकिन रेल मंत्री के दिए संकेतों के मुताबिक इस रेल बजट में एक बार फिर से यात्री किराए में इजाफा होने की पूरी उम्मीद है। हालांकि रेल बजट में पिछले दस वर्षो से यानी 2002 के बाद से ही भारतीय रेल के किराए में वृद्धि नहीं की गई है। भारतीय रेल कई तरह के वादे और दावों के बीच लगातार घाटे में जा रही है। बावजूद इसके कि हर वर्ष इसमें सफर करने वाले यात्रियों की तादाद में इजाफा हो रहा है, भारतीय रेल की हालत में कोई सुधार होता दिखाई नहीं दिया है। डेढ़ करोड़ से ज्यादा कर्मचारियों वाली भारतीय रेल दुनिया में सबसे ज्यादा रोजगार प्रदान कराने में दूसरे नंबर पर है।

लगातार घाटे का रोना रोने के साथ बुनियादी ढांचे की कमी रेलवे में साफतौर पर नजर आती है। अफसोस की बात यह है कि पिछले एक वर्ष के दौरान रेल मंत्री तो तीन बदल गए लेकिन नहीं बदली तो वो है भारतीय रेल की हालत। पिछले वर्ष जो वादे रेल मंत्री ने किए थे उन पर भी आज तक अमल नहीं हो सका है। ऐसे में इस बार का रेल बजट क्या जमीनी हकीकत को छू पाएगा और यात्रियों की सोच पर खरा उतर पाएगा? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो रेल में सफर करने वाले हर व्यक्ति के दिलों दिमाग में घूम रहे हैं।

भारतीय रेल पर एक नजर:-

करोड़ों कर्मियों वाली रेलवे से यूं तो लाखों लोगों की रोजी-रोटी चलती है। पूरे भारत में करीब साढ़े सात हजार से ज्यादा स्टेशन हैं तो करीब 7800 लोकोमेटिव रेलवे के पास हैं। हर रोज भारतीय रेल करीब चौदह हजार ट्रेनें विभिन्न जगहों से चलाती है। भारतीय रेल के पास चालीस हजार कोच और सवा तीन लाख से ज्यादा वैगन है। हर रोज करीब ढ़ाई करोड़ यात्री भारतीय रेल में सफर करते हैं और एक करोड़ टन की माल ढुलाई हर रोज रेल के माध्यम से ही की जाती है। भारतीय रेल के पास 18 राजधानी और करीब 26 शताब्दी ट्रेनें चलाती है।

ममता के धरे रहे वादे:-

वर्ष 2011 में जब तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने बतौर रेलमंत्री रेल बजट पेश किया था तो उन्होंने कई नई ट्रेन चलाने के वादे किए साथ ही रेल किराए न बढ़ाकर यात्रियों को राहत देने की कोशिश की। इसके अलावा उन्होंने अपने बजट में रेल सुविधाओं में बढ़ोतरी की बातें कहीं। लेकिन साल गुजर गया और हुआ कुछ नहीं। हालांकि कुछ नई ट्रेनें जरूर चलाई गई लेकिन खस्ता हाल होती पटरियों को बदलने के बारे में न तो कोई रेल बजट में प्लानिंग ही की गई न ही इन पर कोई तवज्जो ही दी गई। इसका नतीजा यह हुआ कि हर बार की तरह ही रेलवे को दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ा। हालत यह हुई कि रेल के जरिए विजन 2020 की बातें करने वाली ममता की कही सारी बातें हकीकत से कहीं दूर साबित हुई। हालांकि इस विजन के लिए चौदह लाख करोड़ रुपये जुटाने की दरकार थी।

विवादों और आरोपों में घिरा 2012 का रेल बजट:-

वर्ष 2012 में जब तृणमूल कांग्रेस के ही सांसद दिनेश त्रिवेदी ने रेल बजट पेश किया तो उस पर खुद ममता ने ही इतना बवाल काटा कि सरकार को रेल मंत्री ही बदलना पड़ गया। इसका नतीजा यह हुआ कि 2012 के रेल बजट को भी अमली जामा नहीं पहुंचाया जा सका। विवादों में घिरे इस बजट की कई सारी बातों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इस बजट में कई स्टेशनों पर यात्रियों की सुविधाओं के लिए एस्किलेटर लगाने की बात कही गई थी, लेकिन मुंबई जैसे महानगरों के स्टेशनों पर भी यह नहीं लगाए जा सके। हर बार की तरह ही यात्रियों को रेल बजट से राहत के साथ कई तरह की उम्मीदें हैं।

सुधरेगी स्टेशनों की हालत:-

भारतीय रेल की हालत में सुधार का वादा करने वाली सरकार स्टेशनों के रखरखाव में हर बार विफल होती आई है। रेल बजट में हर बार व‌र्ल्ड क्लास स्टेशनों की बात तो कही गई लेकिन ऐसा हुआ कभी नहीं। यह घोषणा सिर्फ संसद में मेजों को थपथपाने के ही काम आई। और जगहों की तो बात ही छोड़ दें देश की राजधानी दिल्ली में ही मौजूदा चार स्टेशनों की हालत बेहद खराब है। रखरखाव के नाम पर यहां बेतहाशा गंदगी का अंबार है। जगह-जगह खुले में शौच करते इंसान यहां पर दिखाई देने आम बात है। इनसे अब शायद किसी को गुरेज नहीं रहा है। केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने एक बार तो यहां तक कहा था कि भारतीय रेल की पटरियां दुनिया का सबसे बड़ा खुला शौचालय है।

यह एक भद्दा मजाक नहीं बल्कि भारतीय रेल की जीती जागती तस्वीर है जो उसकी हकीकत को बयां करती है। रेल स्टेशनों की सफाई के लिए लाखों रुपये खर्च कर मशीनें मंगवाई गर्ई थी, लेकिन यह कहीं दिखाई नहीं देती हैं। वहीं राजधानी के स्टेशनों पर टूटे प्लेटफार्म इस बात का सबूत हैं रेल बजट में किए गए वादे और दावे किस कदर खोखले हैं।

यात्रियों को मिलेगी बढ़ते किराए से राहत:-

लालू प्रसाद यादव और ममता बनर्जी द्वारा पेश किए गए रेल बजट में जहां यात्री किराए में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई थी वहीं 2012 के रेल बजट में इसमें इजाफा कर दिया गया। इतना ही नहीं 2013 के रेल बजट पेश होने से पहले ही रेल मंत्री ने किराए में न सिर्फ वृद्धि कर दी बल्कि यह भी संकेत दिए कि आने वाले रेल बजट में भी किराया बढ़ सकता है। लिहाजा आम आदमी की यात्रा का जरिया बनी भारतीय रेल और रेल बजट से आम आदमी को किराया न बढ़ने की उम्मीद जरूर है।

भारतीय रेल बनेगी साफ सुथरा जरिया:-

गंदगी के ढेर पर चल रही भारतीय रेल से सुधार की आस हर कोई लगाए हुए है। फिलहाल तो रेल के अंदर और बाहर का नजारा एक समान है। जहां प्लेटफार्म पर गंदगी फैली हुई दिखाई देती है तो वहीं रेल के अंदर शौचालय से निकलती बदबू उसके पास की बर्थ पर सफर करने वाली की राह को और मुश्किल बना देती है।

रेल में दिखाई देगी सुरक्षा:-

भारतीय रेल के अंदर लगातार बढ़ रहे अपराधों के मद्देनजर उम्मीद है कि इस बार के रेल बजट में इसकी सुरक्षा पर न सिर्फ कोरे वायदे किए जाएंगे बल्कि इनको हकीकत में तब्दील किया जाएगा। अभी तक तो महिलाओं को इस बात की हमेशा चिंता हमेशा रही है कि रेल में महिलाओं की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। आए दिन छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आती है। इसके बाद भी महिला कोच में कोई सुरक्षाकर्मी नहीं होता है। भारतीय रेल की सुरक्षा का जिम्मा रेलवे सुरक्षा बल के जिम्मे है। फिलहाल इस बल के तहत करीब 65 हजार कर्मी हैं। इसके अलावा जिस राज्य में से ट्रेन गुजरती है उसकी पुलिस भी ट्रेन के अंदर चैकिंग का काम संभालती है।

उगाही करने वालों पर लगेगी लगाम:-

रेलवे की खिड़की पर लगने वाली यात्रियों की लंबी कतारें और टिकट न मिलने की परेशानी से लगभग हर यात्री जूझता आया है। लेकिन बिचौलिए हर वक्त हर जगह का टिकट बेचते और सीट कंफर्म कराने का दम भरते हैं। इसके अलावा रेल के अंदर भी उगाही करने वालों की कोई कमी नहीं है। भारतीय रेल में घाटे की एक बड़ी वजह यह भी रही है, जिसकी वजह से रेलवे को सीधेतौर पर मिलने वाला पैसा बिचौलियों की जेब में पहुंच जाता है।

बदलेंगी खराब पटरियां:-

देश में कुल 1 लाख 14 हजार 500 किलोमीटर रेल ट्रैक मौजूद है। इसमें से करीब 19 हजार किलोमीटर ट्रैक को वर्ष 2012 के रेल बजट में बदलने की बात तत्कालीन रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने की थी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इसका नतीजा रहा कि खराब पटरियों पर आज भी ट्रेन पहले की ही तरह दौड़ रही हैं। इस रेल बजट में त्रिवेदी ने 4500 किमी ट्रैक का विद्युतीकरण होने पर भी जोर दिया था।

रुकेंगे रेल हादसे:-

जनवरी 2012 से जनवरी 2013 के बीच अभी तक करीब डेढ़ दर्जन रेल हादसों में करीब पांच सौ से अधिक लोगों की जानें गई हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह हादसे कब और कैसे रुकेंगे। हर साल होने वाले इन हादसों से रेलवे को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ता है।

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