-केशव राम सिंघल- अरविंद केजरीवाल ने शनिवार 6 अप्रैल 2013 को 15 दिन बाद अपना उपवास तोड़ दिया. यदि गहराई से सोचा जाए तो भ्रष्टाचार को समाप्त करने और भारतीय राजनीति में क्रांतिकारी बदलाव के लिए अरविंद केजरीवाल का कदम वाकईसराहनीय है. इस उपवास ने यह बात सामने रख दी है कि दिल्ली विधान-सभा का अगला चुनावअब बिजली-पानी के मुद्दे पर होगा. आज भारत के सभी राजनैतिक दल विशेषकर काँग्रेस और भाजपा अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के राजनीति में आने से परेशान हैं.काँग्रेस को यह एहसास होने लगा है कि जनता में काँग्रेस सरकार के प्रति भयंकर असंतोष है. भाजपा इस कोशिश में है कि वह् जनता के असंतोष का फायदा उठाकर सत्ता हासिल कर ले और उसके लिए भाजपा ने विभिन्न पैतरे भी आजमाना चालू कर दिया है. लेकिन जनता अब राजनैतिक दलों के खेल को समझने लगी है, वह् जानती है कि अरविंद केजरीवाल जैसा साधारण आदमी आम जनता और उसके दु:ख-दर्दके साथ है. बड़े पैमाने पर आम जनता भी अब अरविंद के साथ है. उपवास के दौरान जनता ने दस लाख से अधिक विरोध-पत्रों को भरा है, इससे यह बात साबित होती है.
यह कहा जाता है कि भारत में मीडिया स्वतंत्र है, पर यह भी एक कड़वा सच है कि भारत में मीडिया पर अधिक-संपन्न अमीरों का वर्चस्व ही है. और इन्हीं अधिक-संपन्न अमीरों के निर्देश पर भारतीय मीडिया ने अरविंद केजरीवाल को न्यूज-हेडलाइन्स से गायब रखने का प्रयास तो किया पर सोशल मीडिया की वजह से उन्हें अलग नहीं कर सके और अपने प्रयासों में असफल रहे.
आगामी दिल्ली विधान-सभा चुनावों में आम आदमी पार्टी तैयारी के साथ अन्य राजनैतिक दलों से मुकाबला करेगी और यह पार्टी के लिए एक राजनैतिक परीक्षण भी होगा. यह तो अब समय ही बतायेगा कि भारत की राजनीति भ्रष्टाचार-मुक्त होगी या फिर भ्रष्टाचार-मुक्त भारत एक कल्पना ही रहेगी. वैसे यह तो तय है कि आम आदमी पार्टी का असर आगामी दिल्ली विधान सभा चुनाव में दिखेगा और अब दिल्ली में काँग्रेस के लिए सत्ता पुन:पाना इतना आसान नहीं होगा.
(लेखक राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर हैं.)