काइरो। मिस्त्र में न्यायपालिका और सत्तारूढ़ दल मुस्लिम ब्रदरहुड के बीच शह और मात का खेल जारी है। इस बार बाजी न्यायपालिका के हाथ लगी है। सर्वोच्च अदालत ने रविवार को सरकार को तगड़े झटके दिए। सुप्रीम कोर्ट ने एतिहासिक फैसला सुनाते हुए उस कानून को अवैध करार दे दिया, जिसके तहत संसद का ऊपरी सदन शूरा काउंसिल चुना गया था। इसके अलावा सर्वोच्च अदालत ने उस कानून को भी अवैध बताया है जिसके तहत संविधान बनाने वाली संस्था का गठन हुआ था।
इन फैसलों से देश में नया संवैधानिक संकट शुरू हो गया है। न केवल शूरा काउंसिल बल्कि संविधान भी अवैध हो जाएगा। देश के पास न तो संसद होगी न ही संविधान। मामले की सुनवाई करने वाले जज मेहर अल बेहेरी ने आदेश सुनाते हुए कहा गया है कि मुस्लिम ब्रदरहुड के बहुमत वाली शूरा काउंसिल भंग कर नई संसद चुनी जाए। हालांकि, राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को इतनी राहत दी गई है कि अगले चुनाव तक शूरा काउंसिल काम करती रहेगी।
चुनाव के लिए अभी कोई तारीख तय नहीं की गई है। चुनाव बाद जैसे ही निचला सदन अस्तित्व में आएगा शूरा काउंसिल अपने आप भंग हो जाएगी। मुर्सी ने पहले बताया था कि चुनाव अक्टूबर में हो सकते हैं। अदालत ने इमरजेंसी कानून को भी असंवैधानिक करार दिया है। इसके तहत मुर्सी को अपार ताकतें हासिल हो जाती हैं। मिस्त्र में न्यायिक सुधारों पर सरकारी नीतियों के चलते ब्रदरहुड और न्यायपालिका आमने-सामने है।
इस्लामी विचारधारा वाले राजनीतिाों को लगता है कि पूर्व राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के समय के अधिकारियों को हटाए जाने की जरूरत है। इनमें जज भी शामिल हैं। इसलिए जजों को लगता है कि यह उनके खिलाफ साजिश है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कानून अवैध था, जिसके तहत संविधान बनाने के लिए गठित समिति के सदस्य चुने गए थे। संविधान के मसौदे पर दिसंबर में जनमत संग्रह कराया गया था। इस निर्णय के बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है।
हालांकि, कुछ कानूनी विशेषाों ने बताया कि संविधान को चुनौती नहीं दी जा सकती। इसे जनमत संग्रह के जरिये मंजूरी मिली थी। पिछले साल इसी अदालत ने निचले सदन के चुनाव को अवैध करार दिया था। इसके बाद निचला सदन भंग हो गया था। शूरा काउंसिल के खिलाफ याचिका संसद के एक निर्दलीय सदस्य ने लगाई थी। नए संविधान के तहत शूरा काउंसिल के पास निचला सदन चुने जाने तक सारे संवैधानिक अधिकार हैं।
मुस्लिम ब्रदरहुड के विरोधियों ने ऐसी कई याचिकाएं दाखिल की हुई हैं। ब्रदरहुड और उनके विरोधियों के बीच तनातनी के चलते 2011 में जनक्त्रांति के दौरान मुबारक को हटाए जाने के बाद भी देश विभिन्न समस्याओं में जूझ रहा है।