जानिए क्या है सूचना का अधिकार

right ro informationनई दिल्ली। राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार के तहत लाने का ऐतिहासिक निर्णय सुनाने के बाद अब राजनीतिक दल इस बात के लिए बाध्य होंगे कि किसी भी व्यक्ति द्वारा पूछी गई जानकारी को मुहैया करवाएं। लेकिन यह जानना भी बेहद जरूरी है कि आखिर सूचना का अधिकार है क्या और आखिर कैसे हम इसका सफलतम उपयोग कर सकते हैं।

भारत सरकार ने किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण के कार्यकरण में पारदर्शिता और जबावदेही को बढ़ाने के लिए वर्ष 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया।

सूचना के अधिकार में तहत आम व्यक्ति किसी भी कार्यालय से किसी भी तरह की सूचना को प्राप्त कर सकता है। लेकिन इसमें सुरक्षा से संबंधित जानकारी देने का प्रावधान नहीं रखा गया है। अधिकारी देश की रक्षा से जुड़ी बातों को सार्वजनिक न करने की बात कही गई है।

इसमें कार्य की जांच के दस्तावेज या अभिलेख, या सरकारी फाइल में लिखी गई किसी तरह की कोई भी टिप्पणी, उद्धरणों या प्रमाणित प्रतियों और सामग्री के प्रमाणित नमूनों और इलैक्ट्रॉनिक रूप में भंडारित की गई जानकारी पाने का अधिकार है।

कोई भी नागरिक निर्धारित शुल्को सहित हिंदी या अंग्रेजी में लिखित रूप से आवेदन करके सूचना हेतु अनुरोध कर सकता है। सभी सार्वजनिक प्राधिकरण में विभिन्न स्तरों पर एक केन्द्रीय सहायक जन सूचना अधिकारी पूछी गई जानकारी को देने के लिए सुनिश्चित किया गया है। सभी प्रशासनिक कार्यालय में केंद्रीय जन सूचना अधिकारी के पास जनता को आवश्यक सूचना प्रदान करने की व्यवस्था करने का अधिकार है। इसके लिए संबंधित अधिकारी को तीस दिन के अंदर पूछी गई जानकारी का जवाब मुहैया कराना जरूरी है, अन्यथा वह दंड का भागीदार बन जाता है।

पढ़ें: अब राजनीतिक दलों पर क्या होगा आरटीआई का असर?

नई दिल्ली। केंद्रीय सूचना आयोग ने राजनीति में पारदर्शिता के लिए राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने का निर्देश दिया है। आयोग ने फैसला दिया है कि देश के छह मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल कांग्रेस, भाजपा, बसपा, भाकपा, माकपा और राकांपा सूचना अधिकार कानून के दायरे में आते हैं। उन्हें आरटीआइ कानून के तहत सार्वजनिक संस्थाएं माना जाएगा।

राजनीतिक दल इसलिए हैं सार्वजनिक संस्था

1-चुनाव आयोग रजिस्ट्रेशन के जरिये राजनीतिक दलों का गठन करता है।

2-केंद्र सरकार से [रियायती दर पर जमीन, बंगला आवंटित होना, आयकर में छूट, चुनाव के दौरान आकाशवाणी और दूरदर्शन पर फ्री एयर टाइम] प्रत्यक्ष और परोक्ष वित्तीय मदद मिलती है।

3-राजनीतिक दल जनता का काम करते हैं।

आरटीआई के तहत अब आम आदमी राजनीतिक दलों से उनका हिसाब किताब मांग सकेगा। आपको बता दें कि अधिकतर राजनीतिक दलों के पैसे का महज 20 फीसद ही चंदे के जरिये आता है, जिसका वो चुनाव आयोग के सामने खुलासा करते हैं। बाकी की रकम कहां से आती है, इसका कोई हिसाब नहीं है।

आयोग के इस फैसले के बाद राजनीतिक दलों को बताना होगा कि उन्हें चंदा कौन दे रहा है। चंदे की रकम कितनी है। ये भी बताना होगा कि चंदे में मिली रकम का कहां और कैसे इस्तेमाल किया गया? सियासी दलों को अपने सारे खचरें का ब्यौरा देना होगा। आप पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल और सीपीआई ने इस फैसले का स्वागत किया है। हालांकि अन्य राजनीतिक दल भी खुलकर विरोध तो नहीं कर रहे हैं लेकिन आयोग का यह फैसला इन्हें पच नहीं रहा है।

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