सावन सावन हो गई, सावन की भरमार ,
पिउ आवन की खबर ले आया मेघ मल्हार !
रिमझिम बरस बरस कर सावन की ये बूंदे ,
तन में आग लगाये, जिया पे कर के वार !
नेह-प्रीति में डूब, बावरे हो गये दिन-रैन ,
निर्मल रस से भरी बहती सावन की रसधार !
बैरन बन के क्यों चली आज हवा निर्मोही ,
रूठे पिउ मानत नहीं, हारी मैं करके मनुहार !
जिस जिया में जिया बसे, उनसे कासे बैर ,
मैं मनमोहिनी, वो मेरे जीवन का आधार !
-आशा गुप्ता ‘आशु’