क्या निर्भया को इंसाफ मिल गया?

damini-2013-01-1716 दिसम्बर 2012 को जो चलती बस में हुआ वह दुहराने की जरुरत नही है क्युकी वह साडी दुनिया के सामने है । और जब तक वे गुनाह कर के इस दुनिया में जीवित रहते है एक नासूर की तरह वह जख्म लोगो के सामने जीवित रहेगा । एक ने आत्महत्या कर ली चार को फांसी हो गयी जो नाबलिका अपराधी जो इस घटना का सूत्रघार था जिसने निर्भया को बस में दीदी- दीदी कर के बिठाया था और उसने दोषियों के साथ मिल कर इस जघ्न घटना को अंजाम दिया बल्कि उसे अन्त तक पहुचाया । जिस न्यायालय ने भी अपने फैसले में (रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर) माना है ।
जिसे मात्र तीन साल की सजा हुई है (भारतीय कानून के अनुसार) और वह बाल सुधार गृह में पलंग पर बैठ कर फल खाते हुए टी .वी. देख कर सजा काट रहा है सवाल ये उठता है की क्या यहाँ सजा उसके लिए काफी है निर्भया जैसी इस घटना को मारी महिलाये आज स्वर्ग में बैठ कर यह देखती होगी तो उनके मन में एक टीस सी उठती होगी की क्या इस घटना के बाद कानून को नहीं बदला जाना चाहिए था ।
क्योंकि भारत के लोकतंत्र में ऐसे कई मौक़ो पर कानून को बदला को बदला गया है ।
16 दिसम्बर की घटना ने भारत के लोगो का खून खौला दिया था और उसने भारतीय लोकतंत्र को हिलाने की एक नाकाम कोशिश की थी जो सफल नहीं हो पाई ।
और निर्भया को पूरा इंसाफ नही मिल पाया अब सवाल चार आरोपीयो का है । जिन्हे फांसी की सजा सुनाई गई है क्या उन के गर्दनो तक आसानी से फांसी का फंदा पहुच सकेगा । क्योंकि आज भी भारत के विभिन्न जेलों में आज भी कुल 475 फांसी के आरोपी कई सालो से फांसी की सजा होने के बाद बिरयानी खा कर आराम फरमा रहे है। माननीय राष्ट्र-पति की फांसी अपील ठुकराने के बाद भी आरोपीयो को भारत के लचीले कानून का लाभ मिल रहा है और आज भी 16 दिसम्बर जैसी अपराधो की संख्या बढती जा रही है क्योंकि अपराधी बेखोफ है । कानून तो भारत में बनते रहते है पर उसे अंजाम तक इस लोकतान्त्रिक की सड़ी गली व्य़वस्थाओ के कारण उनके सामने कानून भी दम तोड़ रहा है देश में कई किस्म की समस्या जन्म ले रहे है अलगाववाद आतंकवाद  नक्सलवाद इसी दम तोड़ते कानून की देन है । निर्भया के प्रकरण के पहले भी एक बार जनता का रोष उपजा था । जिसमे दिल्ली के दो बच्चो गीता और संजय चोपड़ा के अपहरण और हत्या के बाद देखाई दिया था । सन 1978 को फिरोती पाने के लिए दिल्ली के कुख्यात अपराधी रंगा विल्ला ने उसे अनाजम दिया था । उसके बाद सन 1982 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया था और गीता  और संजय को पूरा इंसाफ मिल गया था ।
अमेरिका विदेशी विभाग ने निर्भया को मरणोपरांत 2013 के इंटरनेशनल वोमेन ऑफ़ करेज अवार्ड से सम्मानित किया गया निर्भया तो चली गई पर भारतीयों को जो नींद में सो रहे थे उन्हें हिलाकर उठा गई ।
अब देखना है की क्या भारत के नाबलिका कानून भारतीय दंड सहिता (आई .पी.सी.) की 13 बड़ी धाराओं में अपराधो में अपराध सावित होने पर मात्र तीन साल का प्रावधान है । तो क्या इसका फायदा आतंकवादी अलगाववादी और नक्सलवादी नाबालिको को अपराध के दलदल में डाल कर उसका फायदा नही उठाये गये ।
लेखिका – कु शुभंगनी पाठक (कानून की छात्रा)
जिला सचिव अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण संसद. जिला दमोह (मध्य प्रदेश)
 जिला सचिव दमोह प्रेस क्लब जिला दमोह (म.प्र.)
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