नई दिल्ली| सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक जीवंत लोकतंत्र में मतदाताओं के पास इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) या मतपत्रों में नॉन ऑफ द अबव (एनओटीए) विकल्प के जरिए सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के नकारात्मक मतदान का अधिकार होना जरूरी है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.सतशिवम और न्यायमूर्ति रंजन प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने कहा कि नकारात्मक मतदान के जरिए व्यवस्था में धीरे-धीरे बदलाव आएगा, क्योंकि राजनीतिक पार्टियों को उम्मीदवारों के चयन में जनता की इच्छाओं का आदर करना होगा।
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति सतशिवम ने कहा कि नकारात्मक मतदान की प्रक्रिया आवश्यक है और यह लोकतंत्र का जीवंत हिस्सा है।
न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को ईवीएम मशीन में एनओटीए के लिए अतिरिक्त बटन और मतपत्र में इस विकल्प को पेश किए जाने के निर्देश दिए। न्यायालय ने इसके साथ ही सरकार से निर्वाचन आयोग को एनओटीए विकल्प पेश करने में हर तरह की मदद देने के भी निर्देश दिए।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने 2004 में सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर कहा था कि जो मतदाता ईवीएम में सूचीबद्ध किसी को वोट नहीं देना चाहते, उन्हें नकारात्मक मतदान का अधिकार होना चाहिए।
पीयूसीएल ने ईवीएम में एनओटीए का विकल्प देने तथा मतदाताओं द्वारा चुने गए विकल्प को गुप्त रखने का निर्वाचन आयोग को निर्देश देने की न्यायालय से मांग की थी।
सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.एन.अग्रवाल और न्यायमूति जी.एस.सिंघवी की पीठ ने 23 फरवरी, 2009 को यह मामला बड़े पीठ को सौंप दिया था और न्यायालयी परीक्षण के लिए दो सवाल तैयार किए थे। पहला, क्या अपने पसंद के उम्मीदवार को चुनने का मतदाता का अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 19(1) (अ) के तहत प्रदत्त मतदाता की अभिव्यक्ति की आजादी से आवश्यक रूप से तो नहीं जुड़ा है?
न्यायालय ने दूसरे सवाल में कहा है, “हमारे विचार से अनुच्छेद 324 के अंतर्गत निर्वाचन आयोग के अधिकार पर, इस न्यायालय के पूर्व के फैसलों के आलोक में, किसी बड़ी पीठ द्वारा फिर से विचार किए जाने की आवश्यकता है, जिनमें उम्मीदवारों की संपत्ति और पृष्ठभूमि के बारे में जानने के मतदाताओं के अधिकार को उचित मान्यता दी गई है।”