जगतपिता ब्रह्रामंदिर के महन्त का निधन

mehantअजमेर। विश्व के एकमात्र जगतपिता ब्रह्रामंदिर के मंहत लहरपुरी का लम्बी बिमारी के बाद रविवार को निधन हो गया। उनके निधन की खबर जैसे ही फैली मंदिर में संतो का जमावडा लगने लगा। एक ओर जहां संत समुदाय में शोक की लहर थी वहीं दूसरी ओर उतराधिकारी को लेकर विरोधाभास भी था। उनके शव को निजी अस्पताल से सीधा ब्रह्राामंदिर लाया गया। परम्पराओ के अनुसार गाजे बाजे के साथ मंहत लहरपुरी की बैकुण्ठी निकाली गर्इ। इसके बाद सन्यासी समाज की परम्पराओ के अनुसार मंदिर परिसर के बाहर मंहत लहरपुरी को समाधि दी गर्इ। समाधि के बाद पुरे मंदिर परिसर के शुद्धिकरण के बाद मंदिर को श्रद्धालुओ के लिए खोल दिया गया। मंहत लहरपुरी निर्माणी अखाडे से थे। आपका पैत्रृक गांव जोधपुर जिले की लुणी तहसील का मौकलासणी था। आपने लगभग 36 सालो तक मंहत की गददी संभाली। आप संन्यासी परम्पराओ का निर्वहन करते हुए पुरे जीवन अविवाहित रहे। आपने 15 साल की आयु में ही सन्यास ग्रहण कर लिया। आपसे पहले परमेशावरानन्दपुरी, विभुतपुरी और प्रकाशानन्दपुरी मंहत रहे चुके है। चुकीं परम्पराओ के अनुसार गददी सुनी नहीं रह सकती इसलिए महंत लहरपुरी की इच्छानुसार और संत समुदाय की सहमति से पाटवी चैले सोमपुरी को मंहत की जिम्मेदारी दी गर्इ। हालांकि इसको लेकर संत समुदाय दो भागो मे बंटा हुआ था। एक समुदाय मंहत लहरपुरी के शरीर को हरिद्वार लेजाना चाहता था जबकि दुसरा समुदाय पुष्कर में ही समाधि दिलाना चाहता था। विवादो के बीच पुष्कर पुलिस ने भी मोर्चा संभाल लिया। पुलिस की सजगता से विवाद आगे नही बढ़ा और शांतिपूर्ण तरीके से सभी कार्य सम्पन्न हुए। इस दौरान आनन्द कुटीर के मंहत सुबोधानन्द गिरी, महानिर्माणी आश्रम के कृष्णदयाल गिरी, ब्रह्रापुरी अदैव्त आश्रम की मंहत सेवागिरी, पचकुण्ड के मंहत धनश्यामगिरी, कपालेश्वर महादेव के सेवानन्दगिरी सहित अनेक संत मौजूद रहे। प्रशासन की ओर से गिरदावर, ओमप्रकाश और पटवारी पप्पू सिंह पूरे मामले पर नजर बनाए हुए थे।

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