प्रसूता को जेएलएन से सेटेलार्इट तक लगवाए चक्कर

pedita01अजमेर। प्रदेश में युं तो सरकार बेहतर चिकित्सा व्यवस्था का दावा करती है लेकिन इन दावो में सच्चार्इ कितनी बेरहम है इसका प्रमाण रविवार को उस समय देखने को मिला जब अस्पताल प्रशासन की निष्ठुरता के चलते एक गर्भवती का प्रसव अस्पताल के बाहर ही हो गया। महिला के परिजनों का आरोप है की अस्पताल में मौजूद चिकित्साकर्मियो ने उसे भर्ती करने के बजाय अस्पताल से बाहर निकाल दियां।
धरती पर यदि किसी को भगवान का दर्जा दिया जाता है तो वह केवल ड‚क्टर्स को ही दिया जाता है। लेकिन बदलते वä में धरती का यह भगवान भी निष्ठुर हो चुका है। यदि ऐसा नहीं होता तो शायद अजमेर के सेटेलार्इट अस्पताल की दहलीज पर दम तोड़ने वाली एक मासूम कन्या कुछ महीनो के बाद ना केवल जन्म लेती बलिक एक दिलखुश जिन्दगी भी गुजारती। धरती पर आँख खोलने से पहले ही मौत के आगोश में समाने वाली मासूम की मौत का आरोप उसके परिजन सेटेलार्इट अस्पताल प्रबन्धन पर लगा रहे है। परिजनों की माने तो माया 5 माह की गर्भवती थी और आज जब उस कि तबियत बिगडी तो उसे संभाग के सब से बडे़ जवाहर लाल नेहरु अस्पताल ले गए लेकिन वहा से इन्हें सेटेलार्इट अस्पताल भेज दिया गया। होना तो यह चाहिए था की यहा माया का इलाज होता लेकिन ऐसा हुआ नहीं। माया के पति जगन के अनुसार उन्हें यहा से जनाना अस्पताल जाने की बात कह कर चलता कर दिया गया।
बार्इट जगन पीडिता का पति
इस के बाद जो हुआ वह अस्पताल प्रशासन की निष्ठुरता का प्रमाण था। दर्द से तडपती माया का समय पूर्व प्रसव अस्पताल के बाहर ही हेा गया। पांच माह का गर्भ एक कन्या थी जिसकी सांसे धरती पर आँख खोलने से पहले ही थम गर्इ। दर्द दूर करने वाले अस्पताल ने एक माँ को जिन्दगी भर का दर्द दे दिया जिस की दवा शायद अब किसी के पास नहीं।
अस्पताल के बाहर प्रसव और नवजात की मौत की खबर फैली तो लोगो का आक्रोशित होना स्वभाविक ही था। अस्पताल प्रशासन से नाराज लोगो ने अस्पताल के बाहर तालाबंदी कर दी और अस्पताल प्रशासन के खिलाफ जम कर नारेबाजी भी की। सुचना मिली तो पुलिस भी मौके पर पहुची। यह अलग बात है की पुलिस की भूमिका माया को न्याय दिलवाने के स्थान पर लोगो के आक्रोश को शांत करने की थी।
मामला क्यों की दलित समाज की एक गरीब महिला से जुडा हुआ है इसलिए जनता की मांग और आक्रोश के बावजूद कोर्इ वरिष्ठ अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। इस पुरे मामले में अस्पताल प्रशासन से भी बात करने की कोशिश की गर्इ लेकिन कोर्इ उपलब्ध नहीं हुआ।

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