माना जाता है कि अजमेर का वजूद दरगाह, पुष्कर और कुछ राज्य स्तरीय दफ्तरों के साथ रेलवे की वजह से है। इनके सिवाय अजमेर कुछ भी नहीं। उसमें भी यहां की अर्थव्यवस्था का एक केन्द्र यदि रेलवे को कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। रेलवे में काम कर रहे तकरीबन दस हजार कर्मचारियों का करीब सत्तर करोड़ रुपए का सालाना वेतन यहां की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है। जाहिर तौर पर बाजार पर इसका असर दिखाई देता है। इतना ही नहीं रेलवे के कबाड़ ने भी यहां की आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया है। कई लोगों ने रेलवे के कबाड़ को खरीदने के धंधे को अपनाया और आज वे करोड़पति हैं। वही पैसा अन्य व्यवसायों में खर्च होने के कारण यहां की आर्थिक प्रगति का हिस्सा बना है। देश की राजनीतिक राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुुंबई को जोडऩे वाली यहां की रेलवे लाइन जाहिर तौर पर यहां के व्यापार की रीढ़ की हड्डी है।
सब जानते हैं कि अजमेर में रेलवे का सफर काफी पुराना है। आजादी से पहले राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र रहे अजमेर में अंग्रेजों ने रेलवे के विकास पर विशेष ध्यान दिया। अजमेर में रेलवे का इतिहास कितना पुराना है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अजमेर सबसे पहले आगरा से रेल मार्ग से सन् 1875 में जोड़ा गया और सन् 1876 में ही बॉम्बे बड़ौदा एंड सेंट्रल इंडियन रेलवे कंपनी ने यहां मीटरगेज सिस्टम के लोकोमोटिव वर्कशॉप की स्थापना कर दी थी। इसको वर्कशॉप पश्चिम रेलवे का प्रमुख व उत्तर पश्चिम रेलवे का सबसे बड़ा कारखाना होने का गौरव हासिल है। भारतीय रेलवे के करीब एक सौ साठ साल के इतिहास में सन् 1885 को स्वर्णाक्षरों में लिखा गया, जब यहां देश का पहला लोकोमोटिव (इंजन) बनाया गया। अब यह नई दिल्ली में नेशनल रेल म्यूजियम में अजमेर का नाम रोशन कर रहा है। इसी वर्कशॉप से पहले व दूसरे विश्व युद्ध में कलपुर्जे व युद्ध सामग्री अफ्रीका व ऐशियाई देशों में भेजी गई। यह वर्कशॉप बाद में वक्त की रफ्तार के साथ बदला और 1979 में यहां पहला डीजल इंजन रखरखाव के लिए अजमेर आया। भाप के आखिरी इंजन सन् 1985 में दुरुस्त कर भेजा गया। इसी प्रकार मई 1997 में पहला ब्रॉडगेज वैगन यहां दुरुस्त कर भेजा गया और अप्रैल 2000 में पहली मीटरगेज ड्यूमेटिक ट्रैक मशीन व जून 2001 में ब्रॉडगेज यूनिमेट ट्रेक मशीन की मरम्मत की गई।
केरिज व लोको कारखाने के ढ़लाईखाने भारतीय रेल की शान रहे हैं। उसे लोकोमोटिव सेंट्रल वर्कशॉप ऑफ दी राजपूताना-मालवा रेलवे, अजमेर कहा जाता था। केरिज कारखाने में स्टील ढ़ालने का विशाल ढ़लाईखाना भिलाई के इस्पात कारखाने के समकक्ष माना जाता था। केरिज का ढ़लाईखाना तो वर्षों पहले बंद हो गया, लोको का बे्रक ब्लॉक्स बनाने वाला ढ़लाई कारखाना भी सिमटता चला गया। हालांकि यहां स्थापित रेलवे मंडल कार्यालय जोन मुख्यालय बनने की सर्वाधिक पात्रता रखता था, परंतु राजनीतिक कारणों से इसे वह दर्जा हासिल नहीं हो पाया और जोन मुख्यालय जयपुर में स्थपित हो गया।
अजमेर एट ए ग्लांस से साभार