अनिता भदेल ने सत्र दौरान उठाये कई सवाल

अनिता भदेल
अनिता भदेल

अजमेर। अजमेर दक्षिण की विधायिका अनिता भदेल ने विधानसभा में कई प्रश्न उठाये। विधायिका भदेल ने अजमेर के विकास के लिये कई सवाल उठाये जिससे अजमेर का विकास हो सकें।

विधायिका भदेल ने बताया कि अजमेर किस प्रकार से विकास कार्य किये जा सकते है। विधासभा सत्र के दौरान पर्ची के माध्यम से मुद्दे उठाये गये जिसमें आनासागर बाँध की एस्केप चैनल की सफाई व मरम्मत कार्य, खाद्य सुरक्षा योजना के तहत गैर-चयनित परिवारों का योजना के तहत चयन आदि कई ऐसे मुद्दे उठाये गये जिससे अजमेर का विकास होगा।
पर्ची के माध्यम से उठाये गये मुद्दे
आनासागर बाँध (अजमेर) की एस्केप-चैनल की सफाई व मरम्मत
मेरे शहर में एक बहुत खूब-सूरत झील है जिसको आनासागर झील के नाम से पुकारा जाता है और पिछले लगभग दस वर्षों से उस झील के जीर्णाेद्धार का कार्य चल रहा है। उस झील को ओवर-फ्लो होने के बाद में, जो पानी पूरे शहर में फैलता था, उस पानी को एक एस्केप चैनल के द्वारा सन 1971-72 में जब आप अजमेर से जन-प्रतिनिधि चुनकर आते थे उस समय बाढ़ आई थी और बाढ़ के बाद में उस एस्केप-चैनल का निर्माण किया गया। आज की तारीख में वह एस्केप-चैनल पूर्ण-रूप से एक नाले के रूप में तब्दील हो गई है। अजमेर शहर के लगभग 15-20 वार्डों से होकर के तथा लगभग डेढ़ लाख की आबादी के बीच में से होकर वह एस्केंप-चैनल निकलती है और उस एस्केकप-चैनल के दोनों तरफ रहने वाले लोग पूरी तरह से नाटकीय जीवन जी रहे हैं।
पहले सिर्फ आनासागर झील के पानी की निकासी के लिए वह चैनल बनाई गई थी लेकिन अगर आज उसको कोई जाकर देखें तो पूरी तरह से वह एक गंदे नाले के रूप में तब्दील हो गई। जितनी भी पुलियाएं उस एस्केेप-चैनल पर बनी हुई हैं, उन पुलियाओं के दोनों तरफ नियमित रूप से हमारा नगर-निगम का सफाई कर्मचारी, वहां कचरा डिपों में कचरा नहीं डालने के बजाए सीधे उस एस्केप चैनल में कचरा डालता है और वह कचरा डिपो करने का नाला बन गया है। जब कभी आनासागर झील ओवर-फ्लो होती है तो गेट खोलते हैं प्रशासन के द्वारा कि कहीं कोई डूब न जाए अजमेर शहर और उस गेट को खोलने के बाद जो पानी उस एस्केप-चैनल में से निकलता है, वह पानी निकलने के कारण से पूरा कीचड़, कचरा और पानी मिक्स होकर ओवर-फ्लो क्योंकि, कचरे से भर गई वह एस्केप चैनल, पानी के निकासी की जगह ही नहीं और उसके साथ ही पिछले वर्षों में आर.यू.आई.डी.पी. वालों ने उसमें सीवरेज लाइन और डाल दी। बहुत बड़े-बड़े चैम्बर डाल दिए और उस एस्केप चैनल के पानी के बहाव के रास्ते को बाधित कर दिया। उसके कारण से हर वर्ष उस एस्केप चैनल में जितने नाले गिरते हैं शहर के वह नाले गिरने के बजाए जब बारिश आती है तो उन नालों के द्वारा पानी वापस पीछे करता है और कॉलोनियां भर जाती हैं। करोड़ों रुपया प्रशासन हर वर्ष बाढ़ के बाद में इसी बात के लिए लगाता है कि हम वापस रोड को मेनटेन करें और वापस पानी के बहाव के कारण जो रोड खराब हुई है उसको वापस ठीक करें।
परंतु जो समस्या है, उसकी जड़ की तरफ नहीं जाते कि समस्या कहां से शुरू हो रही है तो मेरा इस सदन के माध्यम से माननीय मंत्री महोदय से निवेदन है कि उस एस्केप चैनल की नियमित सफाई हो। क्यों्कि, वर्ष में एक बार ठेके पद्धति के द्वारा वहां पर सफाई की जाती है और वह भी मैनुअल सफाई नहीं होती। जे.सी.बी. वहां पर उतर जाती है। जगह-जगह से उस एस्केप चैनल को तोड़ा हुआ है। उसका पूरा प्लेटफार्म, पता भी नहीं है कि नीचे प्लेटफार्म है कि नहीं है और पूरी मिट्टी ही मिट्टी निकाल कर, ढेरों मिट्टी वहां पर हर वर्ष निकलती है, ठेकों के बाद में जब तक ठेका होता है तब तक बारिश शुरू हो जाती है। शुरू-शुरू के 10-15 दिन तो ठेके का काम ठीक चलता है वह थोड़ी सी गंदगी निकाल देता है। उसके बाद में बारिश आ गयी तो उससे पूछते है कि आपने साफ कर दिया? वह कहता है बारिश आ गई, कैसे साफ करें? फिर आधा अधूरा काम करने के बाद भी ठेकेदार को पूरा पेमेंट होता है। हर वर्ष लाखों रुपए उस एस्केप-चैनल की सफाई में लगने के बावजूद भी वह एस्केप चैनल आज तक साफ नहीं हुई है और पूरी तरह से महामारियां, बीमारियां उस एस्केप चैनल के कारण से फैल रही है। आप कभी खुदा-न-खास्तआ उस एस्केप चैनल के सहारे सहारे की कॉलोनियों से निकल जाएं तो आप स्वयं नहीं निकल सकते उस एस्केप चैनल के सहारे से। इतनी गंदी वह एस्केप चैनल है। वहां पर हजारों लोग रहते हैं, वे कैसे रहते होंगे? कैसे अपना जीवन-यापन करते हैं? रोज आंदोलन, रोज धरना, रोज प्रदर्शन लेकिन कोई जूं नहीं रेंगती है नगर निगम के ऊपर की वह टाइम से उसकी सफाई करवाए।
मेरा निवेदन है कि उसकी मेंटिनेंस समय-समय पर होती रहे। अभी मेंटिनेंस का काम चल रहा है। थोड़ी-थोड़ी मेंटिनेंस का काम चल रहा है परंतु जो ठेकेदार काम कर रहा है वह इतनी लापरवाही से काम कर रहा है कि आने वाली बारिश के समय ही उसकी दीवार गिरने वाली है क्योंाकि उसकी नींव में पूरी तरह से अच्छी कनक्रीट नहीं डाली गई है तो मेरा निवेदन है कि नगर सुधार न्यास के माध्यम से वह काम चल रहा है।
दूसरा मेरा निवेदन है कि एक उसका प्लेपटफार्म हम कभी न कभी बनाने का काम करें। पहले उसमें नीचे प्लेवटफार्म बना हुआ था और सफाई कर्मचारी सफाई करके कचरा बाहर निकाल देते थे। लेकिन अब तो पूरा नाला गंदगी से अटा पडा हुआ है। उसका प्ले टफार्म नहीं है। हमेशा जे.सी.बी. से सफाई होती है और जे.सी.बी. नीचे से खड्डा-खड्डा खोदती जाती है, मिट्टी निकालती जाती है और कभी लेवल उसमें नहीं हो पता क्योंकि जहां पर जे.सी.बी. उतरी वहां पर तो गहरा खड्डा और जहां पर जे.सी.बी. नहीं जा पायी वहां का लेवल ऊँचा रहता है तो पानी का फ्लो भी नहीं पहुंच पाता। क्योंकि, आनासागर से निकलने वाला पानी खानपुरा के तालाब में जाकर गिरता है और खानपुरा के आधे किलोमीटर में ही वह एस्केंप-चैनल का लेवल इतना ऊपर-नीचे हो जाता है कि पानी निकासी तो संम्भव ही नहीं है। वह पानी वापस नालों के द्वारा छोटे-छोटे नालों के द्वारा वापस कॉलोनियों में चला जाता है।
इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि आप कुछ काम करें या नहीं करें परंतु अजमेर शहर की उस बीमारी को खतम करने का काम यदि कर देंगे तो एक साथ एक-डेढ़ लाख लोगों को उससे बहुत राहत मिलने वाली है।
इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि आप कुछ काम करें या नहीं करें परंतु अजमेर शहर की उस बीमारी को खत्म करने का काम यदि कर देंगे तो एक साथ एक-डेढ़ लाख लोगों को उससे बहुत राहत मिलने वाली है।
एक दूसरी बात मैं और कहना चाहती हूं कि नगर-निगम के जितने सुलभ शौचालय बने हुए हैं। अभी हम तो बहुत हाई टेक्नोचलॉजी के ऊपर जा रहे हैं लेकिन जितने सुलभ शौचालय है उनमें सोक पिट टैंक की कोई व्यवस्था नहीं है। वह डाइरेक्ट गंदगी नाले के अंदर जा रही है पाइप के द्वारा। तो आज के जमाने में तो कम से कम, हम हर बार कहते हैं नगर-निगम वालों को कि आप अपने सोक पिट टैंक बना लो सार्वजनिक शौचालयों में और सोक पिट टैंक को समय-समय में साफ भी करो। सोक पिट टैंक कई जगह पर बने हुए हैं लेकिन सफाई के अभाव में वे चॉक हो गए और फिर गदंगी ऊपर से फ्लो होकर सीधे नाले में जाती है।
मैं एक निवेदन और करना चाहूंगी कि जितने हमारे सफाई कर्मचारी हैं, वह सीधे ही कचरे को नाले के अंदर डालते हैं। उन पर किसी न किसी तरह से रोक होनी चाहिये। उनको किसी न किसी तरह से जागरूकता देनी चाहिये कि आप गंदगी की सफाई नहीं कर रहे हैं, बल्कि आप गंदगी को स्थानान्तरित कर रहे हैं। आपने गंदगी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित कर दिया, आपने उसका समाधाना नहीं किया है। इसलिये स्थानान्तरण नहीं होकर गंदगी की सफाई हो। वहां से गंदगी उठे। वहां से लिफ्टिंग हो। कचरा लिफ्ट हो। नगर निगम के पास बहुत सारे कचरा डिपो हैं। लेकिन गाड़ी उठाने वाले सिर्फ एक हैं। 50 वार्डों में यदि एक-एक कंटेनर भी रखे हुए हैं तो पचास गुणा पचास, कितने कंटेनर होते हैं। पूरे दिन उनको गाड़ी उठाती है, फिर भी वह कंटेनर नहीं उठते और फिर लोग गंदगी को कचरा डिपो में नहीं डालने देते, क्योंकि उनके सामने गंदगी रहती है। इस प्रकार से मेरा निवेदन है कि छोटी-छोटी की समस्याएं हैं, उन छोटी-छोटी समस्या ओं को बिना बजट के, बिना ज्यादा पैसा लगाये हम लोगों को राहत दे सकते हैं, समाधान कर सकते हैं। आज की तारीख में कचरा डिपो के लिये लोग कोर्ट में जा रहे हैं कि हमारे सामने कचरा डिपो नहीं होना चाहिये। मंत्री तक एप्रोच करते हैं कि हमारे यहां पर कचरा डिपो मत बनाइये। इसलिये नहीं बनाने देते कि नगर निगम सही ढंग से कचरा उठाता नहीं है। कचरा नहीं उठता इसलिये लोग कचरा डिपो बनाने नहीं देते। मेरा निवेदन है कि कचरा डिपो तब बनेगा जब आप उसको नियमित रूप से उसको उठाओगे, अन्यथा कोई कचरा डिपो नहीं बनाने देगा।
एक दूसरा मेरा निवेदन यह है कि एक एस्केेप चैनल की मैंने बात कही है। एस्केप चैनल की बात कचरा डिपो से जुड़ी हुई है। यदि आप कचरा डिपो उपलब्ध करा देंगे तो वह गंदगी नाले के अंदर नहीं डलेगी। इसलिये मेरा निवेदन है कि उस एस्केप चैनल को एस्कैप चैनल ही रहने दें, उसको नाला नहीं बनने दें। इतना ही मेरा निवेदन था। बहुत बहुत धन्यवाद।
श्री गुलाबचन्द् कटारिया (ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री) – माननीय अध्यक्ष महोदय, माननीय सदस्य ने जो समस्या बताई। मैं यहां से किसी से किसी अधिकारी को भेजकर पिछले दो सालों में इस चैनल की सफाई के लिये क्याी-क्या  प्रयत्न हुआ और क्या उसका परिणाम निकला और आज यह किस स्थिति में है, इसको सुधारने के लिये क्या प्रयत्न हो सकता है, वह निश्चित रूप से सात दिन में रिपोर्ट लेकर आयेंगे।
खाद्य सुरक्षा योजना के तहत गैर-चयनित परिवारों का योजना के तहत चयन
श्रीमती अनिता भदेल (अजमेर दक्षिण) माननीय अध्यक्ष महोदय प्रकिया एवं कार्य संचालन के नियम 295 के तहत विशेष उल्लेनख प्रस्ताव। निवेदन है कि प्रदेश में 02 अक्टूबर, 2013 से खाद्य सुरक्षा बिल के तहत जारी किये गये प्रावधानों को लागू किया गया था, पिछली सरकार द्वारा आनन-फानन में बिना किसी पूर्व योजना के जारी किये गये इस बिल के प्रावधानों से हजारों परिवार जिन्हें ए.पी.एल. की श्रेणी में होने के कारण प्रति माह दस किलो खाद्यान सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा उपलब्ध कराया जाता था, उन्हें उससे वंचित होना पड़ रहा है, जिससे उनमें भारी रोष व्या्प्त है। इस संदर्भ में मैं आपको कुछ सुझाव देना चाहती हूं, जो निम्न प्रकार है –
ऽ शहरी क्षेत्र में निवास करने वाली खाद्य सुरक्षा योजना में अधिसूचित पिछड़ी जातियों यथा भोपा, वागरिया, बंजारा, गाडिया लोहार, सांसी, नट, कंजर, मेव, मीरासी, जागा, वाल्मीकि, सफाईकर्मी, रेबारी, मदारी, अल्लीाशाह, सपेरा, रायसिख, भिश्तीड इत्यादि का सर्वे किया जाकर सूचियां तैयार किया जाना आवश्यक है, ताकि इन्हें खाद्य सुरक्षा के तहत मिलने वाले परिलाभ से वंचित नहीं होना पड़े।
ऽ शहरी क्षेत्र में कच्ची बस्ती का सर्वे करवाया जाकर सूचियां तैयार करवाया जाना आवश्यक है। वर्तमान सूचियों में अनेक परिवारों का नाम नहीं होने से उन्हें इस बिल का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
ऽ खुली मजदूरी करने वाले श्रमिकों को योजना में शामिल करने का स्पष्ट आधार नहीं है। निर्माण श्रमिकों में भी उन्हीं श्रमिकों को मान्यता मिली है, जिनका पंजीकरण श्रम विभाग में पूर्व से किया हुआ है। श्रम विभाग में भी सम्पूर्ण पंजीकृत निर्माण श्रमिकों का कम्यूटराइ डाटा बेस तैयार नहीं है। श्रम विभाग में पदों की कमी व कम्यूटरीकरण के बजट के अभाव में आधा अधूरा काम ही हो पाया है। जिससे न केवल श्रम विभाग परेशान है, अपितु खाद्य एवं नागरिक सुरक्षा विभाग को भी अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
ऽ जिन पात्र परिवारों का डाटा बेस उपलब्ध नहीं है उनमें जैसे – रिक्शा चालक, स्ट्रीट वैन्डकर, घरेलू श्रमिक, कचरा बीनने वाले परिवार शामिल हैं। जब कभी रिक्शा  चालक परिवार अपने आपको खाद्य सुरक्षा योजना के तहत चयनित कराना चाहे तो उसे यह प्रमाण पत्र देने को कोई तैयार नहीं है कि वह रिक्शात चालक है। प्रमाण पत्र के अभाव में व विभाग की उदासीनता के कारण उपरोक्त परिवार मिलने वाले लाभ से वंचित हो रहे हैं। इसी प्रकार बीड़ी श्रमिक भी योजना में पात्र होते हुए उपरोक्त योजना का लाभ इसलिये नहीं उठा पा रहे हैं क्योंकि उनका भी डाटा बेस तैयार नहीं है।
अतः मेरा सरकार से आग्रह है कि नगर निकाय स्तर पर एक खाद्य सुरक्षा संबंधी सेल/हेल्पलाइन डेस्क खोली जाये जो इस योजना में चयनित से पात्र वंचित परिवारों का नाम जोड़ने एवं सील लगाने का कार्य नियमित रूप से कर सके। इस योजना के पात्र परिवारों का डाटा बेस तैयार करवाया जाना आवश्ययक है। जिसमें सोफ्टवेयर स्तर पर डी-डूप्लीकेशन की पहचान का प्रावधान हो, ताकि दोहरे चयनकरण को रोका जा सके। ऑन लाइन डाटा फीडिंग हेतु प्रति एन्ट्री दर अनुसार बजट उपलब्ध कराया जाना चाहिए। वर्तमान में कार्यरत ऑन लाइन डाटा बेस का सोफ्टवेयर ठीक प्रकार से कार्यरत नहीं है। डाटा फीडिंग में अनेक प्रकार की कठिनाइयां आ रही हैं यथा बीपीएल, स्टेनट बीपीएल के वर्तमान ऑन लाइन से डाटा से लिंक नहीं हो रहा है।
खाद्य सुरक्षा का खाद्यान्न राशन टिकटों के माध्यम से कराया जाना उचित होगा, ताकि खाद्यान्न का परिवर्तन नहीं हो। राशन टिकटों के संग्रहण एवं मिलान के लिये तहसील स्तर पर पर्याप्त स्टााफ होना आवश्यक है।
अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का अनुमोदन
श्रीमती अनिता भदेल (अजमेर दक्षिण) सभापति महोदय, जैसा अभी माननीय सदस्य बोल रहे थे कि हमारे कार्यक्रम और नीतियां इस प्रकार की रहेंगी कि हम इस विकास दर को जो 3 प्रतिशत से हम 8 प्रतिशत लेकर गये, 8 प्रतिशत से आप वापिस इन 5 सालों में 5 प्रतिशत पर ले आये। हम उस 5 प्रतिशत को बढ़ाकर 12 प्रतिशत तक ले जाने की बात करते हैं। जब हम संपूर्ण राजस्थान प्रदेश की बात करते हैं और शासन की समीक्षा करते हैं तो सिर्फ 5 सालों की समीक्षा नहीं होनी चाहिए। समीक्षा शुरूआत से होनी चाहिए कि आपने शुरूआत कहां से की थी और कहां आपने लाकर के छोड़ा है। जब आपकी नीतियां स्पष्ट नहीं होती हैं। जब आप अंतर नहीं कर पाते अपनी इच्छाओं में और आवश्यककताओं में।
तब यह सारे प्रश्न खड़े होते हैं जिन प्रश्नों को अभी आपने उठाया है। मैं निवेदन करना चाहती हूं कि हमने हजारों करोड़ रुपये पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से खर्च किए। मैं बताना चाहती हूं आपके माध्यम से सदन को कि हमने प्रथम पंचवर्षीय योजना से लेकर बारहवीं पंचवर्षीय योजना तक अब तक 2,05,181.29 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इतना खर्चा करने के बावजूद हम राजस्थान के सुदूर जिलों में बैठे हुए लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं करवा पाये क्योंकि हमने आवश्यकताओं और इच्छाओं में अन्तर नहीं किया। हमारी आवश्यकता क्या है, हमारी आवश्यकता स्वच्छ पेयजल है लेकिन हमने उसको नहीं माना। हमने यहां मेट्रो खड़ी कर दी हजारों करोड़ रुपये लगाकर, कुछ छोटे लोगों की इच्छो को पूरा करने के लिए, अपनी फोटो खिंचवाने के लिए।
माननीय सभापति महोदय, जब रिफाइनरी का एमओयू हस्ताक्षर हुआ था उन दिनों खूब सारे चैनल पर विज्ञापन आए थे। माननीय प्रद्युम्नस सिंह जी से भी मैं निवेदन करना चाहती हूं कि आप बहुत वरिष्ठ हैं, बहुत ज्ञानी हैं, इतना जबर्दस्त वह विज्ञापन चला टीवी चैनलों पर, इतना जबर्दस्त प्रचार प्रसार उसका हुआ है, जितना पैसा उसके प्रचार प्रसार में लगा है परन्तु केन्द्रो में बैठी हुई सरकार के शहजादेजी बार-बार यह बात कहते हैं कि भ्रम पैदा किया, लोगों को गुमराह किया, लोगों को गलत बयानी दी इस कारण से यह जनादेश भारतीय जनता पार्टी को मिला है। यह बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है राजस्थान की जनता की सोच पर। आपने इतना बड़ा प्रश्नचिन्ह़ लगा दिया प्रदेश की जनता पर कि वह गुमराह हो गई। गुमराह तो आपने किया, पाँच सालों तक इस तरह के विज्ञापन दिखा-दिखा कर, आपने सच बात बताई? आपने यह नहीं बताया, आपने यह नहीं बताया कि हमें कितना करोड़ रुपया कर्जा देना पड़ेगा बिना ब्याज के और यदि उतना क्रूड ऑयल नहीं निकला तो अनुपात में उसका ज्यादा बढ़ जायेगा, यह आपने नहीं किया स्परष्ट। गुमराह किसने किया? सरकार आपकी थी, हम तो विपक्ष में बैठे थे, गुमराह करने का अधिकार आपको था, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, दैनिक नवज्योति, कोई सा भी अख़बार उठाकर देखो, 6 महीने से लगातार इतने विज्ञापन, इतनी योजनाओं के विज्ञापन कि शायद वह विज्ञापन देने वाले माननीय अशोक गहलोतजी को भी पता नहीं होगा कि मेरे राज्य में इतनी सारी योजनाएं चल रही हैं जन कल्याण की और उन योजनाओं में कितने लोग कवर होते थे, एक, दो, तीन, चार और योजनाओं के इतने बड़े-बड़े विज्ञापन की आदमी भ्रमित हो जाये कि वास्तव में यह मेरे प्रदेश की योजनाएं हैं क्या? यदि मेरे प्रदेश की योजनाएं हैं तो फिर मुझे इसका लाभ क्यों नहीं मिल रहा? कहां गया मेरा लाभ, मेरा हिस्सा  कहां गया? कहीं भ्रष्टाचार में तो नहीं चला गया, कहीं बीच में तो किसी ने दलाली के रूप में तो नहीं ले लिया और इसलिए उन्होने शंका आप पर की, हम पर शंका नहीं की। यदि हम पर शंका की होती तो इतना बड़ा जनादेश यह राजस्थान प्रदेश की जनता ने नहीं दिया होता।
आपने अपनी संस्कृति के कारण से, अपने कल्चर के कारण से, 50 सालों में इस प्रदेश को कहां लाकर खड़ा किया? कर्जे का प्रदेश, भूख का प्रदेश, भ्रष्टाचार का प्रदेश। पहले तो इस राजस्थान प्रदेश के लोग फांसी पर झूलते थे अपने प्रदेश की सभ्यता, आन बान के लिए और अब कहां जाते हैं? अब जाते हैं जेल। अब वह मुद्दे का सामना कर रहे हैं एण्टी करप्शन का। आज रोज आये दिन हम देखते हैं कि आज फलाना एईएन चला गया, आज कोई एक्सएईएन चला गया, आज तहसीलदार गिरफ्तार हो गया, आज पटवारी गिरफ्तार हो गया। आदर्श कहां से सीखें, कहां से सीखें आदर्श? यह नेताओं ने इस प्रकार की स्थिति पैदा की है कांग्रेस और कांग्रेस से जुड़े हुए कल्चखर के लोगों ने इस प्रकार की स्थिति पैदा की है कि आज हर व्याक्ति बिना संस्का र के, बिना मूल्यों के जिस ओर इस प्रदेश को ले जा रहे हैं वह बहुत भयावह स्थिति है, आज हमको उसको सम्भालने की जरूरत है, नहीं तो इतनी जबर्दस्त मारकाट मचने वाली है कि हम कितनी भी चाहे कानून व्यावस्था क्यों न अपना लें, हम कितनी भी अच्छीप कानून व्यवस्था क्यों न दे दें, इसको हम रोक नहीं पायेंगे इसलिए मेरा निवेदन है माननीय सभापति महोदय आपके माध्यम से सरकार से कि वह आने वाले पाँच साल में जिस प्रकार का माननीय राज्य पाल महोदया के द्वारा यह डाक्यूमेंट हमारे पास आया है उससे स्पष्ट इंगित होता है कि अब राजस्थान प्रदेश का चारों दिशाओं में विकास होगा। अब राजस्थान प्रदेश में कहीं भेदभाव नहीं नहीं होगा, कहीं उच्च वर्ग, निम्न वर्ग की बात नहीं कही जायेगी।
अभी धौलपुर से आने वाले माननीय सदस्य पूछ रहे थे कि ‘सुराज’  क्याा है? ‘गुड गवर्नेंस’ क्या है? जहां तक मेरी समझ में आता है मैं आपको बताना चाहूंगी कि गुड गवर्नेंस वह चीज है जिसमें आपने कानून में दिया कोई लाभ दिया वह लाभ बिना सिफारिश के, बिना जैक, चौक के आम आदमी तक यूं का यूं पहुंच जाये। परन्तु वह गुड गवर्नेंस देने में आप पूरी तरह फेल रहे। उदाहरण मैं आपको देना चाहूंगी कि आपने कहा कि हम 10 लाख आवास बनायेंगे और बीपीएल और जो आवास विहीन लोग हैं उनको हम दस लाख आवास बनाकर देंगे, पाँच साल पूरे हो गये, दस लाख आवास नहीं बने, दुर्भाग्य यह रहा कि उन लोगों ने जिनका चयन हुआ उनको प्रथम किश्त मिल गई, 25 हजार रुपये की, प्रथम किश्त मिल गई, किश्तु मिलने के बाद आपके एईएन, जेईएन के भ्रष्टाचार के कारण से कि मुझे कुछ पैसा दे तो दूसरा चौक जारी करू और उस कारण से वह दूसरा चौक जारी नहीं हुआ। जो उस टूटी-फूटी झोंपड़ी में रहने वाले बीपीएल परिवार था वह सड़क पर आ गया, अब उसका आधा-अधूरा मकान है, उसकी आधी ईंटें हैं, छत उसके ऊपर है नहीं इसलिए उस बीपीएल परिवार ने आपको बहुत कोसा और कोसकर यह कहा कि हमारे हक का पैसा आपने ले लिया इसलिए अब आपको चुनाव में बर्दाश्त नहीं करेंगे।
आपने डिजीटल टेबलेट योजना लागू की, पहले बच्चों को मालूम नहीं होता था कि भ्रष्टाचार नाम की कोई चीज भी है लेकिन आपने उस भ्रष्टाचार की बात उसके कान तक पड़ गई और जो छह हजार रुपयो का आपने पीसी टेबलेट उसको दिया, इतनी घटिया क्वा़लिटी का था तो बच्चे भी समझ गये कि सरकार बहुत भ्रष्ट है और जब वोट देने की बारी आई तो उन्हों ने अपने माता पिता को कहा कि सरकार ने कोई बख्शने की जरूरत नहीं है इसलिए अब बालक जो आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले हैं वह भी इस बात को समझ गये, यह होती है गुड गवर्नेंस।
गुड गवर्नेंस का मतलब, खाद्य सुरक्षा का बिल आप लेकर आये। मैंने अभी थोड़ी देर पहले यह बात कही थी, आप खाद्य सुरक्षा का बिल लेकर आये, आनन-फानन में 2 अक्टूबर को जारी करेंगे हम ताकि हमको लाभ मिले, सब चीजें वोटों की खातिर, कुछ तो छोड़ो, वोटों से मत तौलो हर चीज को, हर चीज को वोटों से तौलने के कारण से यह आज स्थिति पैदा हुई है। आपने 2 अक्टूबर को खाद्य सुरक्षा बिल लागू किया, बहुत जल्दबाजी में अभी मैंने दो-तीन दिन पहले सुना था, राहुल गांधी कह रहे थे कि हमने तीन चीजें दी हैं, उनको जनता तक लेकर जाओ। हमने खाद्य सुरक्षा का बिल दिया, हम शिक्षा का अधिकार कानून लेकर आये, कानून बनाने या देने से बात नहीं बनती है। विवेकानन्दजी ने एक बात कही है कि जिस देश में ज्यादा कानून होते हैं, आप समझ जाइये कि उस देश में कानून का पालन नहीं हो रहा है। आप कानून का पालन करना सिखाइये, आपको कानून बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
आपने शिक्षा का अधिकार कानून दिया लेकिन उसके लिए कोई पैसे का प्रोविजन किया क्या ? आपने नए स्कूल खोले, नए अध्यापक लगाये क्या? आपने स्कूलों की बिल्डिंग दी क्या? गांवों का विद्यार्थी आज साइन्स सब्जेक्ट नहीं पढ़ सकता, क्योंकि उसके स्कूल में साइन्स् है ही नहीं। विद्यालय खुल भी जाएं तो अध्यापिक नहीं है, अध्यापक हैं तो लेब नहीं है। कॉमर्स की पढ़ाई वह कर नहीं सकता क्योंकि टीचर नहीं है तो ऐसे कानून का क्या फायदा? जिस कानून की पूर्ति हम नहीं कर सके। मैंने अभी आपको बताया, आपने बहुत सारी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को खाद्य सुरक्षा बिल के दायरे में कवर किया लेकिन उसकी भी सूची आपके प्रशासन के पास नहीं है। आप कचरा बीनने वाले को खाद्य सुरक्षा कानून में कवर करेंगे, कचरा बीनने वाला कह रहा है कि मेरे इस राशन कार्ड पर आप सील लगा दो खाद्य सुरक्षा की लेकिन तहसीलदार नहीं लगा रहा है, वह एसडीओ नहीं लगा रहा है इसलिए नहीं लगा रहा है कि प्रमाणपत्र लाओ, कैसे आपको कचरा बीनने वाला हम मान लें तो कुछ न कुछ तो आपको तय करना पड़ेगा, बिना तैयारी के साथ आप आनन फानन में कुछ भी लाद दो, आपके पास मैन पावर नहीं, बिल की मंशा को पूरा करने के लिए आपके पास लोग नहीं तो उस कानून का पालन कौन करायेगा? इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि यह सब चीजें आपको ध्यान में रखनी चाहिए तब आप गुड गवर्नेंस कह सकेंगे कि यह गुड गवर्नेंस है।
आपने बहुत सारी दवाइयां निःशुल्क देने की बात कही। दवाइयों की क्वालिटी पर प्रश्न चिन्ह् लगा। सभापति महोदय, मैं आपको एक निवेदन करना चाहूंगी कि सरकार ने दवाइयां दीं, चूंकि सामाजिक जीवन में जीते हैं तो कई बार बहुत सारी समस्याएं हमें भी फेस करनी पड़ती हैं। एक बहुत गरीब व्यक्ति मेरे पास आया और मुझे कहा कि मुझे कैंसर की दवाई निःशुल्क नहीं मिल रही है इसलिए मैडम आप चिट्ठी लिख कर दो। मैंनें उसको कहा कि कैंसर की तो निःशुल्क ही होनी चाहिए। मैंने कहा कि बुखार, उल्टी -दस्तरू की दवाइयां निःशुल्क सरकार दे रही है तो कैंसर, हार्ट और किड़नी की दवाइयां भी निःशुल्क होनी चाहिए, सारा उपचार आपका निःशुल्क होना चाहिए। तब उसने कहा कि वो तो आप मुख्यी मंत्री सहायता कोष की चिट्ठी लिखकर दोगे तभी होगा अन्यथा नहीं होगा। मतलब, आप आदमी की सोच तो देखो, बुखार यदि उसको आ जाएगा तो एक दिन मजदूरी की छुट्टी करके दवाई ले लेगा और उसका बुखार ठीक हो जाएगा लेकिन उसको यदि कैंसर होता है, हार्ट की कोई प्राब्लम होती है या किडनी की कोई प्राब्लसम होती है तो फाइनेंशियली रूप से उसका पूरा घर बर्बाद हो जाता है इसलिए उसको जरूरत है निःशुल्क दवाई की। वह काम करने के लायक होता नहीं है और कैंसर होने से व्यक्ति आधा तो वैसे ही मर जाता है जब पता लगता है कि उसको कैंसर है, हार्ट की प्राब्लाम होने से वह भारी काम कर नहीं सकता। अगर घर के मुखिया को यदि ये बीमारी हो गई तो आप समझ जाइये कि उसका पूरा परिवार बर्बाद है, फिर उस परिवार को कोई नहीं बचा सकता। वो कर्जा भी ले लेता है और कर्जा उसकी आने वाली पीढ़ी चुका नहीं सकती। यदि वो व्यक्ति बच गया तो ठीक है और मर गया तो उसका कर्जा चुकाते-चुकाते आने वाली पीढ़ियां भी मर जाएंगी इसलिए इन बीमारियों के कारण से उसकी सात पीढ़ियां बर्बाद होती हैं। उन बीमारियों का निःशुल्क उपचार होना चाहिए, उसके संसाधन प्रदेश में होने चाहिए, अलग-अलग जिला मुख्या्लयों पर होना चाहिए। सारा का सारा बर्डन आज हमारे एस.एम.एस. हास्पिटल पर है और वहां लाइन लगी पड़ी है, आपका सौवें नम्बर पर नाम है। हार्ट का आपको एस.एम.एस. हास्पिटल में आपरेशन करवाना है तो सौवें नम्बर पर चले जाइये जब तक तो उसकी राम नाम सत्य हो जाएगी, जब तक तो वो खुद ही पहुंच जाएगा।
मैं आपको चिकित्सा के सम्बन्ध में निवेदन कर रही थी। मैं आपसे एक और निवेदन करना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि हमारी सरकार प्रेक्टिकल हो और प्रेक्टिकल काम करे। एक कहावत अभी नई-नई बनी है कि जब पनघट थे तब नालियां नहीं थीं और अब पनघट नहीं हैं तो नालियां बन गई हैं। हम किसी भी काम में चले जाएं, जयपुर के पास के ही किसी गांव में चले जाएं तो जैसे ही गांव में एंटर होते हैं तो कीचड़ और दोनों तरफ पानी ही पानी है। अभी-अभी सब चुनावों में गये हैं, गांव-गांव, ढाणी-ढाणी फांकी है सबने। मेरे आपसे इतना निवेदन है कि गांव का स्वच्छता का हम ध्यान रखें। हम शहरों में बहुत विकास करते हैं। जैसे मैंने अपनी शुरूआत ही अपनी इस बात से की है कि हम आवश्यकता और इच्छुकता में अन्तर करना सीखें। हम सारा का सारा विकास सिर्फ जयपुर में ही कर लें, ऐसी हमारी नीतियां नहीं होनी चाहिए, ऐसी हमारी नीतियां नहीं बननी चाहिए। इसलिए मैं आपसे निवेदन करना चाहती हूं कि गांव की स्वच्छता के लिए इस डाकूमेंट में एक बात कही है कि हम ग्रामीण गौरव पथ का निर्माण करेंगे। यह बहुत अच्छी बात है इसको पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा कि वास्ताव में हमने गांव की बात सोची है। मेरा निवेदन है कि गांवों में गन्दगी सबसे ज्यांदा पानी के कारण से हो रही है तो हम पानी की निकासी की व्यवस्था यदि ठीक कर लेंगे तो हमें ज्यादा सड़कें बनाने की आवश्यककता नहीं होगी, ज्यादा सड़क पर पैसा खर्च करने की आवश्यककता नहीं होगी।
माननीय सभापति महोदय, एक निवेदन और करना चाहूंगी। हाउसिंग बोर्ड द्वारा हम बहुत सारे आवासों का निर्माण करने वाले हैं। हमें पुराने अनुभवों से कुछ सीखना चाहिए। सभापति महोदय, मैं आपको निवेदन करना चाहती हूं कि 30 साल पहले अजमेर में हाउसिंग बोर्ड की एक स्कीेम ज्वाला प्रसाद नगर के नाम से बनी। यह 30 साल पहले की बात है, आज की बात नहीं है। उस ज्वाला प्रसाद नगर में सीवरेज लाइनें डलीं। सीवरेज लाइन डल गई और घर बन गये, घरों में लोग रहने लग गये पर आज तक वहां पानी की व्यडवस्था नहीं कर पाये। उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि वो सीवरेज लाइनें ब्लॉक हो गई, बंद हो गई और मैला पूरी सड़क के ऊपर से बहने लगा। ये ए.सी. रूम में जो अधिकारी बैठते हैं ये प्रेक्टिकल नहीं हैं, प्रेक्टिकल तो हम लोग हैं। इसलिए हमें इनको चलाना है, हमें इनको बताना है कि आपको ऐसे डाकूमेंट बनाकर लाने हैं। सीवरेज लाइनें ब्लॉक हो गईं, लोग परेशान हो गये। पानी के बिना सीवर लाइन कैसे साफ रह सकती है? इसलिए मेरा निवेदन है कि जो भी हाउसिंग बोर्ड की स्कीेम बने उसमें आप पूरी व्यवस्था करें कि सबसे पहले आदमी को पानी की आवश्यकता होती है तो आप पानी की लाइन डालने का सबसे पहले काम करें, पानी कैसे लेकर आयेंगे वो काम करें, तब आप किसी स्कीम को लागू करें। अन्यथा सब लोग मकान बनाकर खड़े कर देते हैं, पानी होता नहीं है, लोग खरीदकर बैठ जाते हैं, लोग कब्जा प्राप्त कर लेते हैं फिर किसी का दरवाजा टूट रहा है, किसी का खिड़की टूट रही है जिससे हमारी स्कीमें फेल होती हैं। इसलिए मेरा निवेदन है कि कोई भी स्कीम लागू करने से पहले यदि आप इन छोटी-छोटी चीजों का ध्यान रखेंगे तो ठीक होगा।
मैं निवेदन करना चाहती हूं कि हम जब गाड़िया लुहारों के आवास की बात करते हैं तो कई बार हम उनको कम वर्ग गज का बहुत छोटा सा मकान देते हैं। गाड़िया लुहार की प्रकृति क्या  है, हमें उसकी सामाजिक प्रकृति को, सामाजिक पृष्ठ भूमि को देखकर उसको आवास देना होगा। गाड़िया लुहार लोहे के साथ-साथ पशुपालन का काम भी करता है। इसलिए यदि वो पशुपालन का काम करता है तो जहां भी हम उसकी कॉलोनी बनायें, उसको हम पशुओं के पालने की व्यावस्था के साथ कॉलोनी देंगे तब ठीक रहेगा नहीं तो आप कहीं भी चले जाइये जहां गाड़िया लुहारों की बस्ती है, वहां कॉलोनी में दस मकान हैं और दस उन्हों ने सड़क पर बना लिये तो आपको आने-जाने की जगह नहीं मिलेगी। फिर आप जाओगे तो वो फिर डिमाण्डस करेंगे कि हमें और मकान चाहिए। उसके पशु को बांधने के लिए जगह नहीं है तो लोगों को आने-जाने का रास्ताए नहीं मिलेगा क्योंकि उसने रास्तें में पशु बाँध रखे हैं। इसलिए आप कोई भी स्कीम बनाते समय उस वर्ग की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को ध्याान में रखकर आपको स्कीम बनानी पड़ेगी तब हम उसमें सक्सेस हो पायेंगे।
माननीय सभापति महोदय, एक निवेदन और करना चाहूंगी। इस डाकूमेंट में एक बहुत अच्छी बात लिखी है, उसके पैरा नम्बर मुझे याद नहीं है। उसमें लिखा है कि हम गौ-पालन के लिए गौ मंत्रालय की स्थापना करेंगे। अभी-अभी यह बात भी कही गई थी कि हम दुग्धक उत्पारदन में इस प्रदेश को आगे की ओर लेकर जाएंगे, इसका उत्पादन हम डबल करेंगे। मैं आपके माध्यम से सरकार के मंत्रियों को, माननीय मुख्यमंत्री जी का इस बात के लिए बहुत-बहुत आभार व्यक्त करना चाहूंगी कि उन्होंने यह बात कही है। पिछली बार सरकार में, पूरे प्रदेशभर के साधु-सन्तों को गौशालाओं के अनुदान के लिए यहां आकर के धरना देना पडा, ज्ञापन देना पडा उसके बावजूद भी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी और गायों के लिए जो अनुदान बंद किया उसी का यह परिणाम है कि गाय माता ने आपको श्राप दिया है और वह श्राप इस रूप में आपके सामने खड़ा हुआ है कि आप इस चीज से उबर नहीं सकते।
माननीय सभापति महोदय, अब मैं एक निवेदन और करना चाहती हूं। वह निवेदन यह है कि कई बार हम पर्यटन स्थलों के विकास की बात करते हैं और वह इकानॉमी को भी बहुत ज्यादा प्रभावित करता है, हमारा प्रदेश ही इस प्रकार का है कि यहां पर्यटन की बहुत बड़ी संभावनाएं हैं और उनसे हमें इकानॉमी भी प्राप्त हो सकती हैं लेकिन पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इन्फ्रास्क्चर भी मजबूत होना जरूरी है उस पर्यटन स्थल तक आप पहुंच जाएं, आपकी पहुंच आसान हो जाए, उसके लिए आपको सड़क और परिवहन के साधन उपलब्ध कराने बहुत जरूरी है इसलिए मैं यह निवेदन करना चाहूंगी कि आप पर्यटन स्थलों को तो डवलप करें पर इसके साथ साथ हम जितने भी हमारे तीर्थ स्थल हैं, चाहे वह किसी भी धर्म से संबंध रखते हों, मैं एक धर्म में नहीं बांधना चाहती, जिस भी धर्म से संबंध रखते हों, जितने भी हमारे तीर्थ स्थल हैं उन तीर्थ स्थलों को डवलप करने का भी काम करना पड़ेगा क्योंकि मैं एक निवेदन करना चाहती हूं इसके साथ में, पर्यटन स्थल पर जब आदमी जाता है तो घूम फिर कर, मौज मस्ती करके वहां से लौट जाता है। जब तीर्थ स्थल पर आदमी जाता है तो वहां से वह संस्कार लेकर आता है, वह वहां ईश्वर से प्रार्थना करके आता है कि मेरा परिवार, मेरा आस-पड़ोस मैं खुशहाल रहूं, मैं कभी भी अपने जीवन में, अपने जीवन की न्यूनता में नहीं आने दूं, मैं हमेशा सच बना रहूं, इस प्रकार का संस्कार वह वहां से लेकर जाता है इसलिए मेरा निवेदन है कि हम पर्यटन स्थलों के डवलपमेंट के साथ साथ तीर्थ स्थलों के डवलपमेंट की भी बात करेंगे तो इस राजस्थान में हम बार बार कह रहे हैं कि हमारा रेवेन्यु घट रहा है, हम पूंजीगत इन्वेस्टमेंट नहीं कर पा रहे हैं तो मैं निवेदन करना चाहती हूं कि सब लोगों में निराशा का भाव है क्योंकि बेरोजगार, जो युवा पीढ़ी है, वह बेरोजगारी के कारण से परेशान हैं, जो महिला है वह असुरक्षा के कारण से परेशान है, परिवार के मुखिया को अपना परिवार चलाने में परेशानी आ रही है क्योंकि महंगाई बहुत ज्यादा है इसलिए इस महंगाई पर नियंत्रण हम कैसे करें। ये एक बहुत बड़ा प्रश्न है। जब हम चुनाव में गये थे तो ये बात हम कह कर गये थे कि हम महंगाई को कम करेंगे और हमारे इस डाक्यूमेंट में भी यह बात लिखी हुई है कि हम महंगाई कम करेंगे। महंगाई कम करने का सबसे बड़ा और एक अच्छा तरीका है कि हम जितने भी हमारे मार्केटिंग के सैल्स हैं, उसमें हम नियंत्रण करें, हम कालाबाजारी को रोकें और हम पीडीएउस सिस्टम द्वारा जितने ज्यादा लोगों को कवर करेंगे, उतने ज्यादा हम महंगाई को कम कर पाएंगे। आम आदमी आज बहुत ज्यादा त्रस्त है और न केवल खाद्य वस्तुओं से त्रस्त है, उसको स्कूल में फीस ज्यादा देनी पड़ रही है, उसके बच्चों के ट्रांसपोर्टेशन की फीस ज्यादा है और बाकी की और भी उसको कपड़ा सस्ता नहीं मिल रहा है, उसको घर की अन्य चीजें सस्ती नहीं मिल रही हैं इसलिए पूरी, ऑल ऑवर महंगाई कम करने की जरूरत है, केवल एक रुपया किलो गेहूं देने से महंगाई कम होने वाली नहीं है। पिछली सरकार से इसको बहुत ज्यादा प्रचारित किया कि हम एक रुपया किलो गेहूं दे रहे हैं। एक रुपया किलो गेहूं तो दे रहे हो लेकिन आपने सिलेण्डर बारह सौ रुपये कर दिया। पहले तो आप यह कह रहे थे, सरकार यह कहती थी बार बार कि आंखों को धुएं से बचाने के लिए आप चूल्हे का उपयोग कम करो, लकड़ी का उपयोग करो, गैस का उपयोग ज्यादा करो लेकिन मुझे समझ में नहीं आता कि सरकार नीति नहीं बनाती, दूर दृष्टि नहीं है उनके अन्दर, पहले तो आपने चूल्हे से हटा दिया महिलाओं को, आप उन्हें गैस पर ले आए, अब गैस पर आपने सब्सिडी खत्म कर दी, आपको सब्सिडी बैंक में मिलेगी डाइरेक्ट और वह एक साल बाद में मिलेगी, दो साल बाद में मिलेगी। आज आपको गैस खरीदने के लिए, चुल्हा खरीदने के लिए आपके पास 1200 रूपये होने चाहिए। अगर आपके पास 1200 रूपये नहीं है तो गैस का सिलेण्डर नहीं मिल सकता, सब्सिडी आपको मिलेगी इसकी गारंटी भी नहीं है कि छह महीने बाद सब्सिडी मिलेगी, एक साल बाद सब्सिडी मिलेगी, कब बैंक में आएगी, किसको शिकायत करें, यह भी पता नहीं है। इसलिए मेरा निवेदन है कि सिर्फ खाद्यान्न की वस्तुसओं को सस्ता करने से काम नहीं चलेगा, हमें शिक्षा को भी सस्ती करना पड़ेगा, हमें दूसरी चीजों को भी सस्ताह करना पड़ेगा, हमें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने पड़ेंगे और यह तभी संभव है जब हम सारे लीकेज को बंद कर दें। जितने रेवेन्यूर के लीकेज हैं उन पर हम पैबंद लगा दें। हमारी रेवेन्यू हमने पिछली बार बढ़ाकर दिखायी है, इसी गवर्नमेंट को, इसी कांग्रेस को हमने दिखाया था जब पांच साल पहले अशोक गहलोत जी भीख का कटोरा मांगते हुए थक गये, लेकिन 5 साल में वापस इस राजस्थान को खड़ा किया था। हमारी जन्मे और मृत्यु दर कम हो गई थी, जन्म दर पर हमने कंट्रोल किया और हमारी शिशु मृत्यु दर कम हो गई थी, लेकिन वह इंडेक्स वापस बढ गया और वह इंडेक्स बढ़ने का परिणाम यह रहा कि हमारा प्रदेश वापस बीमारू श्रेणी में आ गया है। इसलिए मेरा आपसे यह निवेदन है।
अंत में मैं अपनी बात समाप्तह करते हुए एक बात और कहना चाहूंगी। माननीय सभापति महोदय, मैं निवेदन करना चाहूंगी यह अभिभाषण अंधेरे से प्रकाश की ओर बढ़ाने वाला है, यह दसों दिशाओं में राजस्थान को आगे बढ़ाने वाला है और हिम्मत के साथ में, स्वाभिमान के साथ राजस्थान की जनता उठ खड़ी हुई है हमारे साथ में। इसलिए उस जनता को साथ लेकर हम निवेदन करना चाहते हैं हमारे प्रदेश के लोग, ऐसा नहीं है हमारे प्रदेश में गरीबी है, भुखमरी है, हमारे प्रदेश के लोग बाहर जाकर व्यापार करते हैं और वहां से धन कमाकर चाहते हैं कि मेरे गांव में हॉस्पिटल खुले, मेरे गांव में स्कूल खुलें। इसलिए निवेदन करना चाहती हूं ‘’हिम्मत कीमत होय, बिन हिम्मत कीमत नहीं। हिम्मत से कीमत बनती है, आदर करे ना कोई, रद्द कागदयों सजा दिया।‘’ मैं निवेदन करना चाहती हूं कि अगर हिम्मत है तो हमारा सभी आदर करेंगे, हम हिम्मत के साथ में इस राजस्थान को खड़ा करेंगे और आज यह जो इंडेक्स् जो झोटवाड़ा से आने वाले विधायक महोदय ने बताया है उस इंडेक्स में पाँच सालों में उत्तोरोत्तर वृद्धि होगी। अभी माननीय धौलपुर से आने वाले माननीय सदस्य कह रहे थे आपने 15 लाख नौकरियां दी नहीं। यह तो अभिभाषण है, जब कोई आदमी पिक्चर देखने जाता है तो ट्रेलर के समय कहे कि मुझे पूरी पिक्चभर दिखा दो। ट्रेलर के समय पिक्च र थोड़े ही दिखायी जाती है, पिक्चर के लिए पाँच साल इंतजार करो और पाँच साल पूरे होने के बाद जब पूरी पिक्चर पर्दे पर आ जाएगी तब आपको पता पड़ेगा हमने क्या किया है।
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