“लहर और प्रकाश” पर एक साहित्यिक गोष्ठी

prakash jainकाफी समय पश्चात अजमेर के इंडोर स्टेडियम में आयोजित एक अच्छी साहित्यिक गोष्ठी में जाने और वक्ताओं को सुनने का अवसर मिला. गोष्ठी स्वर्गीय प्रकाश जैन की स्मृति में ‘लहर और प्रकाश’ विषय पर आयोजित की गई. आयोजक अजमेर के कुछ साहित्यिक मित्र थे. गोष्ठी का संचालन अनंत भटनागर ने किया तथा प्रमुख वक्ताओं में डा. बीना शर्मा, शकुन्तला तंवर, प्रेमचंद गाँधी, हेतल वर्मा, डा. सी. पी. देवल, नवल भाभडा, राजाराम भादु, अनिल लोढा, हेतु भारद्वाज थे. गोष्ठी का प्रारंभ करते हुए अनंत भटनागर ने कहा कि अजमेर के नाम को लहर के माध्यम से पूरे भारत में फैलने वाले प्रकाश जैन के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तभी हो सकती है जब हम उनके साहित्य पर चर्चा करें.”

डा. बीना शर्मा ने ‘लहर और प्रकाश’ पर अपना आलेख प्रस्तुत करते हुए कहा कि “लहर कहे या प्रकाश कहे, एक ही बात है. लहर और प्रकाश जैन – लहर में उनके प्राण बसते थे. पत्रकारिता एक मिशन थी उनके लिए. छठे और सातवें दशक का साहित्यिक इतिहास उनकी चर्चा के बिना अधूरा है. लहर का पहला अंक जुलाई 1957 में निकला था और साहित्यिक चेतना का प्रतीक् बन गई लहर. … गीत, ग़ज़ल, कहानी, कविता, कहानी के शिल्प के नए प्रयोग पर, साहित्य की हर विधा पर लहर में सामग्री प्रकाशित होती थी. लहर ने साहित्यिक प्रयोग पर खुलकर विचार-विमर्श को आगे बढ़ाया. साहित्य में गुटबंदी की विरोधी रही लहर. प्रकाश जैन अपने  संपादकीय में यह लिखते रहे कि समीक्षक गुटबंदी से ऊपर उठकर लिखें. जनजागरण का हथियार रही लहर. भाषाई विवादों पर संपादकीय लिखकर प्रकाश जैन ने अपनी स्पष्ट बात रखी. लहर ने देश में घटे घटना-चक्रों पर भी पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचा.”

शकुन्तला तंवर ने प्रकाश जैन की अनेक कविताओं को सुनाते हुए कहा कि “प्रकाश जैन एक स्पष्ट वक्ता थे. लहर के द्वारा उनका प्रतिबिंब दूर-दूर तक फैला. ‘बर्फ क्यों नहीं पिघलती’ काव्य संग्रह में और जो उन्होंने लिखा, वे स्थिति आज भी है. आतंक्वाद, प्रेम, वियतनाम और अनेक विषयों पर उन्होंने कविता लिखी. काव्य में पीडा को वे उभारते रहे.”

प्रेमचंद गाँधी ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि “उन्नीस वर्ष की आयु में पहली बार मेरी रचना लहर में छपी. भारतीय साहित्य की आत्मा थे प्रकाश जैन. हिन्दी साहित्य का व्यवस्थित इतिहास यदि कभी लिखा जाएगा तो लहर के योगदान को अवश्य लिखा जाएगा. नई कहानी की शुरुआत लहर के माध्यम से हुई. लेखक लहर को अपनी पत्रिका मानते थे और अपना योगदान देते थे. उनकी कविता में आज की आहटे भी सुनाई पड़ती हैं. पिछली बार भाजपा सरकार ने ‘प्रकाश जैन पत्रकारिता पुरस्कार’ बंद करा दिया था, जो नहीं किया जाना चहिए था. वे बहुत ही गहराई से अपनी बात व्यक्त करते थे.”

हेतल वर्मा ने अपने संस्मरण सुनाए और कहा कि “प्रकाश जैन एक खुद्दार और वामपंथी कवि थे.” डा. सी. पी. देवल ने कहा, “प्रकाश जैन एक आकर्षण हुआ करते थे और लहर का हर अंक भी एक आकर्षण हुआ करता था. नई प्रतिभा को पहचानने की कूवत थी उनमें. उन्हें लगता था जो नया है और जो अच्छा है, वह् सामने आना चाहिए. ता उम्र वे फक्क़ड रहे.” . प्रकाश जैन के पुत्र एस. के. जैन और आलोक जैन ने भी अपने संस्मरण सुनाते हुए प्रकाश जैन के जीवन पर पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “फक्क़ड स्वभाव था उनका. जुनून उनमें देखने को मिलता था. जुनून और मक़सद लेकर चलने वाले थे प्रकाश जैन.” नवल भाभडा ने कहा, “अजमेर और राजस्थान की पहचान थी लहर. .. अन्धेरे की नदी में प्रकाश की एक लहर थी, उनका संपूर्ण साहित्यिक जीवन.” साहित्यिक आलोचक राजाराम भादु ने कहा, “राजनीतिक और सांस्कृतिक लडाई में अजमेर का योगदान काफी रहा है. हिन्दी में लघु पत्रिका आंदोलन में लहर का प्रकाशन और संपादक की अंतर्दृष्टि में प्रकाश जैन के लेखन को भुलाया नहीं जा सकता. प्रकाश जी किसी गुट में नहीं रहे. आधुनिक और नवीन विचार लाने में उनका योगदान रहा.”

अनिल लोढा ने प्रकाश जैन से संबंधित अपने संस्मरण सुनाए और उनकी कविताओं का पाठ किया. अनिल लोढा ने अपनी प्रतिबद्धता का वचन दिया कि वे कोशिश करेंगे कि प्रकाश जैन का कविता संग्रह ‘बर्फ क्यों नहीं पिघलती’ का पुन: प्रकाशन हो. उन्होंने सुझाव दिया कि गाँधी भवन में प्रकाश जैन की पुस्तकों और लहर की प्रतियों की उपलब्धता के लिए एक जगह होनी चाहिए. उनकी रचनाओं के लिए एक वेबसाइट भी बननी चाहिए ताकि अधिक से अधिक लोग उनके साहित्य योगदान को जान सकें. अनिल लोढा ने कहा कि “मुझे गर्व हुआ जब मैंने लहर के पिछले अंकों को पढ़ा. मैंने जो भी कविता लिखना चालू किया, उसपर उनका प्रभाव था. रवि गर्ग छापते थे लहर को बावजूद इसके कि कई बार उन्हें देर से भुगतान मिलता था. मैं इस अवसर पर रवि गर्ग के योगदान को भी बताना चाहता हूँ और मुझे खुशी है कि रवि गर्ग आज इस गोष्ठी में उपस्थित हैं. प्रकाश जैन अपनी पत्रिका के लिए रचनाओं के चयन में बहुत ही सावधानी बरतते थे. उन्होंने कई बार प्रतिष्ठित लेखकों की रचनाये भी लौटा दी थी. अपने भीतर की कायरता तोड़ने का साहस प्रकाश जैन में था और उन्होंने अपनी जिन्दगी को अपने साहित्यिक लक्ष्य ‘लहर’ के प्रकाशन और अभि्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जिया. उन्होंने आपातकाल के दौरान भी व्यवस्था के खिलाफ  साहित्यिक रचनाओं को लिखा.”

केशव राम सिंघल
केशव राम सिंघल

हेतु भारद्वाज ने प्रकाश जैन को याद करते हुए अपने संस्मरण सुनाये और कहा कि मणि मधुकर, राजकमल चौधरी और अनेक लेखकों की लम्बी कविताएँ भी लहर में छपी. प्रकाश जैन अपने संपादकीय में स्पष्ट बात लिखते थे. एक मिशन के रूप में उन्होंने लहर को छापा. गोष्ठी के अन्तिम भाग में कुछ सुझाव आए कि अजमेर में प्रकाश जैन के नाम से कोई मार्ग होना चाहिए, राजस्थान सरकार को प्रकाश जैन के नाम से पुरस्कार फिर से चालू करना चाहिए और प्रकाश जैन के साहित्य पर चर्चा के लिए एक बड़े आयोजन की जरूरत है.

– केशव राम सिंघल

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