राजमोहन कहते हैं, शायद महात्मा सही नहीं थे

adwani blogब्लॉगों का मेरा दूसरा संग्रह ‘माई टेक‘ शीर्षक से दिसम्बर, 2013 में लोकार्पित हुआ था, जिसमें काफी ब्लॉग सरदार पटेल, उनके द्वारा देसी रियासतों के उल्लेखनीय विलीनीकरण कार्य, और हैदराबाद के निजाम द्वारा भारतीय संघ में शामिल न होने के समझौते पर हस्ताक्षर न करने पर उनके द्वारा अपनाए गए तरीके जिससे निजाम को मुंह की खानी पड़ी, जैसे विषयों पर केंद्रित थे। अधिकांश लोगों को शायद पता नहीं कि प्रधानमंत्री पंडित नेहरु निजाम के विरुध्द सैन्य कार्रवाई करने के पक्ष में कतई नहीं थे; और जम्मू एवं कश्मीर की तरह वह हैदराबाद के मुद्दे को भी संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद को सौंपना चाहते थे!
यदि कोई भी उन प्रारम्भिक वर्षों के इतिहास का विश्लेषण करेगा तो निश्चित ही यह महसूस करेगा कि गांधी ने पण्डित नेहरु के बजाय यदि सरदार पटेल को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रुप में चुना होता तो उन प्रारम्भिक वर्षों का इतिहास कुछ अलग ही होता। राजमोहन गांधी द्वारा लिखित सरदार पटेल की उत्कृष्ट जीवनी इन दिनों पढ़ते हुए मुझे लगा कि राजमोहन ने अपनी प्रस्तावना में जो कहा है वह महत्वपूर्ण है। प्रस्तावना की शुरुआत राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद की इन टिप्पणियों से शुरु होती है कि देश, विशेष रुप से सरकार ने सरदार के साथ न्याय नहीं किया। राजमोहन लिखते हैं:
”स्वतंत्र भारत संस्थान को वैधानिकता और शक्ति, मुख्य तौर पर कहा जाए तो गांधी, नेहरु और पटेल-इन तीनों व्यक्तियों के परिश्रम से मिली। लेकिन नेहरु के मामले में उनके योगदान को चाटुकारितापूर्ण ढंग से स्वीकारा गया है, गांधी के योगदान कर्तव्यपरायणता के साथ परन्तु पटेल के योगदान को स्वीकार करने में कंजूसी बरती गई है। राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद 13 मई, 1959 को अपनी डायरी में लिखते हैं ”कि आज एक ऐसा भारत है जिसके बारे में सोचना और बात करना व्यापक रुप से सरदार पटेल की शासन कुशलता और मजबूत प्रशासन के चलते हैं।” प्रसाद आगे लिखते हैं ”फिर भी हम उन्हें उपेक्षित करने को तत्पर रहते हैं।” 1989 में जवाहरलाल की जन्मशताब्दी के अवसर पर हजारों समारोह, स्मृति में टीवी धारावाहिकों, उत्सव और अनेकों अन्य मंचों के माध्यम से मनाई गई। 31 अक्टूबर, 1975 यानी आपातकाल घोषित होने के चार महीने बाद पटेल की शताब्दी थी जिसे सरकारी तौर और शेष प्रशासनिक तंत्र द्वारा भारत में उपेक्षित किया गया और तब से आधुनिक भारत के उल्लेखनीय इस एक निर्माता के जीवन पर पर्दा डाल दिया गया जो कभी कभार या आंशिक रुप से उठाया जाता है। इस खाई को भरने और वर्तमान पीढ़ी को वल्लभभाई पटेल के जीवन से परिचित कराना मेरा सौभाग्य है। यह किसी एक परिपूर्ण व्यक्ति का जीवन न ही है और न ही मैंने चाहा और नहीं प्रयास किया कि पटेल की कमियों को छिपाऊं परन्तु उनके जीवन को जानने के बाद कुछ लोग कम से कम महसूस कर सकते हैं कि पटेल एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें अच्छे समय में कृतज्ञतापूर्वक याद किया जाएगा और जब हताशा या निराशा प्रतीत होगी तब उन्हें भारत की संभावनाओं के कीर्तिमान के रुप में याद किया जाएगा।
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री को चुनते समय क्या गांधी ने पटेल के साथ अन्याय किया या नहीं, यह प्रश्न समय-समय पर उठता रहता है। इसका उत्तर मेरी जांच से इन पृष्ठों पर रहस्योद्धाटित रुप में मिलेगा। लेकिन कुछ लोगों के मतानुसार महात्मा द्वारा वल्लभभाई के प्रति न्याय न किया जाना ही उनके जीवन के बारे में मेरे इसे लिखने हेतु एक कारण है। यदि कोई एक गलती या पाप हो गया है तो कुछ प्रायश्चित महात्मा के पोते द्वारा करना उचित ही होगा। इसके अलावा, मैं अपने राष्ट्र के एक संस्थापक के प्रति एक नागरिक के कर्तव्य का पालन करना चाहता हूं।
मैं अपना एक निजी सम्पर्क उदृत करने से रोक नहीं पा रहा भले ही यह हल्के किस्म का है और तब का है जब मैं 14 वर्ष का था। 1949 में किसी समय, अपने माता-पिता के साथ मुझे याद है कि मैं 1, औरंगजेब रोड-नई दिल्ली में सरदार का निवास-गया वहां मैंने किसी तरह पाया कि मैं लॉन में उनके साथ अकेला बैठा था। हम आमने-सामने की कुर्सियों पर बैठे और करीब 6 फीट दूर थे। वह मुझे देखकर अपने होठों तथा आंखों से मुस्करा रहे थे – हंसी-मजाक और मुझे परख रहे थे। मैं असहज महसूस कर रहा था और उन पर से अपनी आंखें हटाना चाहता था लेकिन नहीं कर पाया-मेरा अनुमान है कि इसमें मेरी ऐंठ आड़े आयी। तब मुझे और निकटता से उनकी आंखों में देखने को मिला और मैंने उनमें स्नेह पाया। उसी क्षण से मैं जानता हूं कि लौह पुरुष के पास एक स्नेही ह्दय था।
गांधीजी के पौत्र, राजमोहन ने वास्तव में खुलकर यह कहा है कि संभवतया गांधीजी प्रधानमंत्री पद के लिए किए गए निर्णय में सही नहीं थे और, इसलिए उनके एक पौत्र द्वारा एक किस्म का प्रायश्चित करना बनता है, और इससे न केवल उनकी महानता और उदारता प्रकट होती है अपितु इससे इस सामान्य मत की भी पुष्टि होती है कि सरदार ज्यादा उपयुक्त पसंद होते।
टेलपीस (पश्च्यलेख)
महात्माजी की हत्या को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरूध्द कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे घृणित अभियान को राजमोहन गांधी की पुस्तक प्रभावी ढंग से झुठलाती है।
पृष्ठ 272 पर लेखक ने 27.02.1948 को सरदार पटेल द्वारा जवाहरलाल नेहरू को लिखे को उदृत किया है जो निम्न है:
”बापू हत्याकाण्ड में चल रही जांच की प्रगति की रिपोर्ट मैं स्वयं प्रतिदिन ले रहा हूं। शाम का मेरा अधिकांश समय संजीवी (इंटेलीजेंस के मुखिया और दिल्ली पुलिस के आई.जी.) के साथ पूरे दिन की प्रगति और उठने वाले मुद्दों पर निर्देश देने में लग रहा है।
सभी आरोपियों ने लम्बे और विस्तृत बयान दिये हैं इन बयानों से साफ होता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ किसी भी रुप में इसमें शामिल नहीं था।
लालकृष्ण आडवाणी
नई दिल्ली

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