वृद्धजनों का सम्मान नहीं होना शर्मनाक-राठौड़

एमडीएस यूनिवर्सिटी में एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते मुख्य वक्ता राठौड़ एवं उपस्थित शिक्षाविद्।
एमडीएस यूनिवर्सिटी में एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते मुख्य वक्ता राठौड़ एवं उपस्थित शिक्षाविद्।

अजमेर (बलवीर सिंह): राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक और शिक्षाविद् हनुमानसिंह राठौड़ ने कहा कि समाज और घर परिवार में वृद्धजनों का सम्मान नहीं होना बेहद ही शर्मनाक है। जिस भारतीय संस्कृति में अतिथि को भी देवता माना गया है उसी समाज में वृद्धजनों का सम्मान न करना चिंता का विषय है।
मंगलवार को महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय में वृद्धजन और मानवाधिकार विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए राठौड़ ने कहा कि यदि किसी घर में वृद्धजन का सम्मान नहीं होता है तो यह भी मानवाधिकार का हनन है। उन्होंने कहा कि घर परिवार के वृद्धजन को सम्मान दिलवाने के लिए सरकार को कानून बनाना पड़े इससे बुरी बात हो ही नहीं सकती। जो वृद्धजन अपने परिवार के लिए पूरा जीवन खपा देता है आखिर में उसी की उपेक्षा हो तो यह शोभा नहीं देता। उन्होंने कहा कि जिस घर में वृद्ध का सम्मान होता है वह घर स्वर्ग के समान है और जिस घर में वृद्ध का सम्मान नहीं है वह नरक के समान है। आज वृद्धजनों को वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। वृद्धजन यदि शारीरिक दृष्टि से कमजोर हो गए है तो इसका यह मतलब नहीं है कि उनकी समाज में कोई उपयोगिता नहीं है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि पश्चिमी संस्कृति के चलते हमारा समाज भोगवादी बनता जा रहा है। आज जरूरत इस बात की है कि हम भारतीय संस्कृति के अनुरुप अपने बच्चों को शिक्षा दे। शिक्षा की शुरूआत घर से ही होनी चाहिए। इसके साथ ही स्कूल और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में भी हमारी संस्कृति के अनुरुप नैतिक शिक्षा ही जानी चाहिए। इंटरनेट और टीवी की संस्कृति के चलते युवा अपने माता-पिता से दूर होता जा रहा है। विज्ञान की दृष्टि से इंटरनेट का उपयोग होना चाहिए लेकिन यदि इंटरनेट से हम अपना नुकसान कर रहे है तो ऐसे विज्ञान की कोई उपयोगिता नहीं है।
संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कैलाश सोढाणी ने कहा कि सेवानिवृत्त वरिष्ठ नागरिक को तो अनेक सुविधाएं उपलब्ध होती है लेकिन असंगठित क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिक को अपने जीवन के लिए कठोर संघर्ष करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि घर परिवार के युवा सदस्यों को बुजुर्ग सदस्यों का सम्मान करना चाहिए। हमें वरिष्ठ नागरिकों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। संगोष्ठी में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टिज के प्रदेश उपाध्यक्ष डी.एल. त्रिपाठी ने केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली सहायता और योजना के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना चाहिए।
विजय सिंह पथिक श्रमजीवी महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अनन्त भटनागर ने कहा कि वृद्धजनों के मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए अधिकार एवं संस्कार दोनों की जरूरत है। उन्होंने युवाओं की बार-बार वृद्धाश्रम जाकर सेवा करने के लिए प्रेरित किया। गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता रामस्वरूप ने पाश्चात्य अप संस्कृति के प्रभाव की निन्दा करते हुए कहा कि भारतीय संस्कारों के शिक्षण से वृद्धों का संरक्षण किया जा सकता है। पुष्कर से आए सामाजिक कार्यकर्ता व विचारक जनार्दन शर्मा ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह उठाते हुए कहा कि शिक्षा के साथ नैतिक मूल्यों को भी समाहित किया जाना चाहिए। प्रो. रीटा मेहरा ने कहा कि कानूनों से ऊपर उठकर समाज में मानवाधिकार चेतना जाग्रत करनी चाहिए। कार्यक्रम के प्रारम्भ में संगोष्ठी के आयोजक प्रो. एसएन सिंह ने विषय प्र्रवर्तन करते हुए समाज में वृद्धजनों के प्रति बढ़ती संवेदनहीनता का चित्रण प्रस्तुत किया। उद्घाटन सत्र का संचालन जितेन्द्र पुरोहित ने किया तथा रामावतार टांक ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सेमीनार के द्वितीय सत्र की अध्यक्षता रामस्वरूप जी ने की।

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