‘मनु से लक्ष्मी’ का नाट्य मंचन

DSC_0520 BBDSC_0555 BBऑल सेन्ट सी. सै. स्कूल में वार्षिक नाटक ‘‘मनु से लक्ष्मी’’ का मंचन किया गया। शाला के 144 विद्यार्थियों द्वारा यह मंचन तीन मंचों और विशेष प्रकाश प्रभावों के साथ शाला प्रांगण में अभूतपूर्व प्रर्दशन किया गया।
‘मनु से लक्ष्मी’ झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के व्यक्तित्व, शूरवीरता, संघर्ष और देशभक्ति के अभूतपूर्व प्रदर्शन की गाथा है। जिसमें उनके बचपन से लेकर शहीद होने तक की गाथा को समेटा गया है। किस तरह उन्हें झांसी के राजगुरु पूरे भारत का भ्रमण करने के बाद बिठूर से चुना और झांसी की रानी बनाने का सपना देखा। उनकी दूरदर्शिता और उनकी शिक्षा से उन्होंने किस तरह रानी को भारत में ब्रिटिश हुकुमत से आजादी के लिए तैयार किया, उनमें किस तरह वह गुण और सीख का प्रवाह किया जिससे वे इस काबिल बन सकी कि वे अंग्रेजी हुकुमत के समाने एक वीर योद्धा के रुप में सामना कर सके। उनमें गुरु ने किस तरह संघर्ष की ललक का रोपण किया कि मुश्किल समय में वे देश के सामने सभी चीजों को गौण कर सही निर्णय ले सके।
मुख्य अतिथि राजस्थानी साहित्यकार पद्मश्री चन्द्रप्रकाश देवल थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व महापौर धमेन्द्र गहलोत ने की।
शाला निदेशक पीयूष कुमार ने सभी का आभार व्यक्त किया।
नाटक का निर्देशन एवं परिकल्पना राजेन्द्र सिंह ने की है। उनके अनुसार स्कूलों में इस तरह की सकारात्मक सीख वाले उत्सवों और कार्यक्रमों का बहुत ही महत्व है। जिस प्रकार रानी लक्ष्मीबाई ने अपने गुरु की सीख का दृढता पूर्वक पालन किया और पूरे विश्व में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखवाया है उसी तरह की सीख हम इस नाटक के माध्यम से अपने विद्यार्थियों को देना चाहते है। इस नाटक के द्वारा इसमें प्रतिभागी अभिनेता ना केवल स्वयं के व्यक्तित्व विकास और सीख से रुबरु होगें बल्कि वे पूरी शाला के विद्यार्थीयों और अतिथियों को भी अपने अभिनय के द्वारा संदेश प्रदान करेगें।
नाटक में एक स्थान पर राजगुरु कहते है कि यह सच है कि मैंने तालीम दी है कि देश के लिए मर मिटों पर मैंने साथ ही यह भी कहा कि आग के शोलों में फांद जाओं मगर हाथ में पानी का फव्वारा लेकर, सैलाब में कूद जाओं लेकिन पहले तैरना सीख लो और मौत से हरगिज ना डरो लेकिन चींटी की मौत नहीं शेर की मौत मरा कि मरने के बाद मौत का अफसोस ना रहे।
नाटक में रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेज अफसर को यह जवाब देती है कि कैप्टन! तुम्हारे जनरल ने हमसे मुलाकात की उम्मीद जाहिर की है, जाकर उनसे कह देना कि हम उन्हें निराश नहीं करेगें। हम उनसे मुलाकात करने आयेगें और जरुर आयेगे और उन चौदह सरदारों के साथ आएंगे जिन्हें उन्होंने याद फरमाया है, बल्कि हमारे साथ वो सब भी होगें जिन्हें वो शायद भूल गए है। हमने मुलाकात की जगह भी तय की है और वो जगह लड़ाई का मैदान होगी। ये बात भी उनसे जाकर कह देना उन्होंने लोहे के चने चबाने की कोशिश की है उनके दांत बाहर ना निकल आएं।
नाटक ने अपने जोशिले संवादों और मनमोहक संगीत-नृत्यों के साथ सभी दर्शकों के मन पर अमिट छाप छोड़ी। सभी पात्रों के साथ विद्यार्थी अपनी सम्पूर्ण शक्ति एवं भाव भंगिमाओं से इस नाटक को मंच पर उतनी ही वीरता और संकल्प के साथ अभिनीत किया कि वे अपने पात्रों में रच बस गये हों। फिर वो रानी लक्ष्मीबाई का अपनी सेना के साथियों को उद्बोधन हो या अंग्रेज अफसरों की औरतों और बच्चों को बचाने की भरसक कोशिश। या राजगुरु की अपनी मातृभूमि के लिए दृढसंकल्प हो या सदाशिव की गद्दारी करने की कुटिलता। अंग्रेजों की धूर्तता या गौस खान का अपनी रानी के प्रति समर्पण। सभी पात्रों को अपनी उम्दा अभिनय से उस वक्त की यादों प्रर्दशित किया गया। आर्कषक वेशभूषा और सेट ने नाटक की समसामायिक परिदृश्यों को अभिमंचित करने में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया।
नाटक में अधिक से अधिक विद्यार्थियों की भागीदारी रहे इसलिए तीन रानी लक्ष्मीबाई के रुप रखे गये है। जिससे रानी के अलग अलग भावों को विभिन्न वेशभूषा, उम्र और भावों के साथ प्रर्दशित किया जा सके।
नये एवं पुराने गीतों को आज के परिप्रेक्ष्य में रानी लक्ष्मीबाई के व्यक्तित्व से तारतम्यता बिठाई है जिससे नाटक मेें सभी प्रर्दशनकारी कलाओं का समावेश हो सके।
नाटक में कक्षा नर्सरी से सीनियर कक्षाओं के विद्यार्थियों ने मुख्य पात्रों का निर्वाह किया जिनमें मुख्य अनन्त, दीक्षा, पल्लव, नीर श्री, प्रतीक, वरुण, नितेश, गर्वित, मयूर, दीपिका, नम्रता, खुशी, निपुन, जयदीप, रितेश, तरुण, नमन, अमन, जतिन, सन्दीप, जितेन्द्र, लोकेश, तरुण, प्रशान्त आदि थे।

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