जयपुर में राज्य स्तरीय समारोह के लिए रिहर्सल शुरू
अजमेर। राजस्थान दिवस 2015 के तहत जयपुर में होने वाले राज्य स्तरीय समारोह में अजमेर की झांकी भी शामिल होगी। अजमेर की झांकी हैरिटेज सिटी के रंगों में रंगी है । इस झांकी में अजमेर का हैरिटेज स्वरूप दर्शाया गया है। झांकी को ”अद्भुत अजमेर” नाम दिया गया है।
जयपुर में आगामी तीस मार्च को होने वाले राज्यस्तरीय समारोह के लिए प्रदेश की विभिन्न जिलों से आई झांकियों की रिहर्सल आज शुरू हुई । अजमेर की झांकी को हैरिटेज सिटी थीम पर तैयार किया गया है। इस झांकी में अजमेर का प्राचीन महत्व दर्शाया गया है। झांकी में बताया गया कि अजमेर विश्व की प्राचीनतम पर्वत श्रंखलाओं में शामिल अरावली की गोद में बसा है । यह सिर्फ शहर नहीं बल्कि एक पूरा इतिहास है जो सैकड़ों वर्षों से भारत की राजनीतिक, ऐतिहासिक और आर्थिक तकदीर के बनने और बिगडऩे का केन्द्र और साक्षी रहा। अजमेर की धरती के महत्व का वर्णन वेद पुराणों व महाभारत से लेकर चौहानों, मुगलों, अ्रग्रेजों की सत्ता से लेकर भारत की आजादी की लड़ाई तक में मिलता है। अजमेर के इसी हेरिटेज वैभव को दर्शाती है यह झांकी ” अद्भुत् अजमेर”।
जगतपिता बह्म्रा ने पुष्कर से ही सृष्टि की रचना की और इस स्थान को तीर्र्थाें का गुरू कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक पंचतीर्थ स्थान पुष्कर सरोवर में ही होता है। इन पांच दिनों में सभी 33 करोड़ देवी- देवता पुष्कर में ही निवास करते है। महाभारत में पाण्डवों की आश्रयस्थली रही पंचकुण्ड भी यहीं है। भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के दौरान उनके पिता दशरथ के निधन की जानकारी भी उन्हें यही पर मिली और मध्य पुष्कर के पास गया कुण्ड पर उन्होंने अपने पिता के पिण्डदान करने का भी उल्लेख वेद पुराण में मिलता है।
सातवीं शताब्दी में चौहान राजा अजयपाल द्वारा स्थापना के साथ अजमेर ने अपना नया राजनीतिक सफर शुरू किया जो सत्ता के शीर्ष स्थानों तक पंहुचने के बाद आज तक अनवरत जारी है।
सातवीं से बारहवीं शताब्दी तक चौहान राजाओं के शासन में अजमेर खूब फला-फूला। उस समय के समृद्घ शहरों में इसकी गिनती की जाती थी। इसका वर्णन चन्द्रवरदाई की ‘पृथ्वीराज रासो’ और जयानक की ‘पृथ्वीराज विजय’ कृतियों में भी मिलता है। अजमेर उस समय भारत और शेष विश्व के मध्य होने वाले व्यापार के ‘गोल्डन रूट’ का महत्वपूर्ण पड़ाव था।
वर्ष 1192 में मोहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज चौहान की पराजय के साथ ही भारत में मुस्लिम सत्ता का आगमन हुआ जो आगामी छह शताब्दियों तक अनवरत जारी रहा। बारहवीं शताब्दी के अंत में ही सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने भी अजमेर की पाक सरजमीं को अपना बनाया और चिश्ती सिलसिले की शुरूआत की। ख्वाजा साहब की दरगाह पर बादशाह अकबर, शाहजहां और जहांगीर से
लेकर तकरीबन हर प्रमुख मुगल सूबेदार ने सिर झुकाया। बादशाह अकबर नंगे पैर दरगाह जियारत करने आए। उन्होंने अजमेर में किला स्थापित किया और इसे प्रमुख सूबे की राजधानी बनाया।
देश में अंग्रेजी सत्ता की शुरूआत भी यहीं से हुई जब 10 जनवरी 1610 को जहांगीर ने अंग्रेजी व्यापारिक प्रतिनिधि सर टॉमस रो को भारत में व्यापार करने का परवाना दिया। अजमेर के नसीराबाद से ही पूरे राजपुताना प्रान्त में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का श्रीगणेश हुआ।
अजमेर की इसी ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को सहेजती है यह झांकी ” अद्भुत् अजमेर”। झांकी में ख्वाजा साहब की दरगाह, तीर्थराज पुष्कर, जगतपिता ब्रह्मा मन्दिर, क्लॉक टावर, आनासागर, फॉयसागर, अढ़ाई दिन का झोपड़ा, मेयो कॉलेज, दादाबाड़ी, चश्मा-ए-नूर, तारागढ़ दुर्ग, चामुण्डा माता मन्दिर, सोनीजी की नसियां, दयानन्द स्मारक, ऋषि उद्यान, किंग एडवर्ड मेमोरियल, दाहरसेन स्मारक, नारेली तीर्थ एवं पृथ्वीराज चौहान स्मारक सहित अन्य धरोहरों को शामिल किया गया है।
अजमेर का महत्व इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है।
”अजमेरा के मायने, दो चीज सरनाम!
ख्वाजा साहब की दरगाह कहिये, पुष्कर का अस्नान!!