पाठ्यक्रम से विद्यार्थी के शरीर, मन और बुद्धि का समुचित विकास हो

वासुदेव देवनानी
वासुदेव देवनानी

अजमेर, 5 अप्रैल।  शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने कहा है कि शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया है। शिक्षक, शिक्षार्थी एवं पाठ्यक्रम ही इसकी प्रमुख कडि़यां हैं। यह सोचे जाने की जरूरत है कि इन तीनो का प्रभावी संतुलन शिक्षा में कैसे हो। उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम विष्लेषण के साथ ही यह भी देखे जाने की जरूरत है कि विद्यार्थियों को कैसे मानवीयता का पाठ पढाया जाए और नैतिक संस्कार सिखाए जाए। उन्हांेने कहा कि पाठ्यक्रम इस तरह से बने कि विद्यार्थी के शरीर, मन और बुद्धि का समुचित विकास हो। इसीलिए हमने विद्यालयों में सूर्य नमस्कार, चरित्र निर्माण की षिक्षा की पहल की है। उन्होंने कहा कि सूर्य से सभी ऊर्जा लेते हैं। यह अपने आप मेंयोग है।

श्री देवनानी आज यहां एचसीएम, रीपा में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘विद्यालय षिक्षण के पाठ्यक्रम का विष्लेषण: दषा एवं दिषा’ के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राज्य के विद्यालयों में पाठ्यसामग्री के अंतर्गत कुछ पूरक पाठ हमने जोड़े हैं। इसके अंतर्गत वीर सावरकर, महाराणा प्रताप, सूरजमल और हेमू कालाणी जैसे प्रेरक व्यक्तित्वों के बारे में पढ़ाया जाएगा। उन्होंने बताया कि राज्य के विद्यालयों मंे प्रत्येक शनिवार को नैतिक षिक्षा के लिए कालांष निर्धारित किया गया है। इसके अलावा प्रार्थना सभा में भी अब प्रेरक जीवनियों, आदर्ष सूक्तियों राष्ट्र गीत, राष्ट्रगान आदि से ओत-प्रोत षिक्षा विद्यार्थियों को दी जाएगी।
शिक्षा राज्य मंत्री ने कहा कि अंको की होड़ में विद्यालयों में रट्टू तोता बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह विडम्बना है कि पिछले वर्षों में विद्यार्थियों को अच्छे नागरिक बनाए जाने, संस्कारवान पीढ़ी तैयार करने आदि पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। उन्होंने विद्यालयों में षिक्षा को आईक्यू, ईक्यू और एसक्यू यानी बुद्धिमता, संवेदनषीलता और अध्यात्म से जोड़ते हुए उसे परिष्कृत व्यक्ति तैयार करने वाली बनाए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विद्यालयों का वातावरण भी प्रेरणा देने वाला हो। हमने विद्यालयों की दिवारों पर प्रेरणा देने वाले वाक्यों को लिखवाने की पहल की है। हम प्रयास कर रहे हैं कि पाठ्यक्रम इस तरह से तैयार हो कि विद्यार्थी की प्रतिभा का उसमें पूरा उपयोग हो तथा उससे मानवीय चरित्र का विकास हो।
इससे पहले संघ लोक सेवा आयोग की पूर्व सदस्य डाॅ. प्रकाषवती शर्मा ने कहा कि बालमन में प्रेरणा देने वाली बातें गहरे से अंकित होती है। उन्होंने कहा कि मनुष्य में प्रकृति के अतिक्रमण की क्षमता है। पशु से मनुष्य बनना ही संस्कृति है। उन्हांेने कहा कि षिक्षा मंे ऐसा पाठ्यक्रम बने जिससे संतुलित व्यक्तित्व का निर्माण देष की भावी पीढ़ी का हो।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में षिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव श्री अतुलभाई कोठारी ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद देष की शिक्षा नीतियों में निष्चित दिषा का अभाव रहा है। इसीलिए पाठ्यक्रम में व्याप्त विकृतियों एवं विसंगतियों के विरूद्ध 2004 से शिक्षा बचाओ आंदोलन चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत देष की भाषा, संस्कृति, धर्म, महापुरूषों, परम्पराओं एवं व्यवस्थाओं को अपमानित करने के जो षडयंत्र चल रहे हैं, उन्हें बेनकाब करने के लिये सार्थक प्रयास किये जा रहे हैं। उन्हांेने कहा कि चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास के अंतर्गत पाठ्यक्रम में पर्यावरण षिक्षा, वैदिक गणित मातृभाषा में षिक्षण जैसे प्रयासों से देष की सम्पूर्ण षिक्षा में आधारभूत परिवर्तन की जरूरत है। इससे पहले आयोजन अध्यक्ष श्री एस.एस. बिस्सा ने षिक्षा में पाठ्यक्रम बदलाव के साथ ही विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण के लिए तैयार किए जाने पर जोर दिया। उन्हांेने दो दिन की राष्ट्रीय संगोष्ठी में आए सुझावों को महत्वपूर्ण बताया। आयोजन सचिव श्री सूर्यप्रताप सिंह राजावत ने संगोष्ठी में उपस्थित गणमान्यजनों का आभार जताया।
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