नौजवान, उनकी सोच, तालीम और देश की जिम्मेदारियों का अहसास

dargaah deewanअजमेर। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के वंशज एवं वशानुगत सज्जादानशीन दीवान सैयद जैनुल आबेदीन अली खान ने षुक्रवार को अजमेर स्थित ख्वाजा मॉडल स्कूल के छात्रों को भारतीय नौजवान उनकी सोच तालीम और देष की जिम्मेदारियों का अहसास विषय पर व्याख्यान दिया। कार्यक्रम को दरगाह नाजिम अषफाक हुसैन एवं स्कूल के प्रिन्सीपल ने भी सम्बोधित किया। व्याख्यान में दीवान साहब की तकरीर के अंष निम्नाुसार हैः-
इससे पहले के मैं अपनी बात को आरम्भ करूं, नौजवानों के ताअल्लुक से मेरे जहन में जो उनकी तसवीर है, उसे आप के सामने पेश करना चाहता हूं, मैं समझता हूं की नौजवान है, जिसमें खौफे-खुदा, हो बुजुर्गों से मोहब्बत, अताअत और अजमत का जज्बा हो, देश से वफादारी और हुकुमत की ताबेदारी का शउर हो, सरगर्म अतकवादी कार्यवाईयों, साजिशों हड़तालों और पार्टीबाजी से दुर रहता हैे, जिन्दा दिली और मुस्कुराहट जिसकी फितरत हो। स्कूल या कॉलेज के लिए नेक नामी का कारण हो, इस बात का ख्याल रखे के वो एक भारतवंषी है और दुनिया में उसे एक मिसाल बनकर रहना है। अपने माता-पिता और खानदान की उम्मीदों पर पूरा उतरता हो और सबसे अहम अपने उस्ताद/गुरू की इज्जत और उनका सम्मान करने की सलाहियत रखता हो। सिकन्दर से किसी ने यह पूछा के तुम अपने पिता पर गुरू को क्यों तरजीह देते हो। सिकन्दर ने कहा पिता तो मुझे आसमान से जमीन पर ले आया अर्थात् मेरी पैदाईश का जनक बना, लेकिन मेरे गुरू अरस्तु ने मुझे जमीन से उठाकर आसमान पर पहुंचा दिया।
नौजवानी उम्र की वो मंजिल है, जहां चारो तरफ ख्वाब बिखरे रहते है, इस बात की उम्मीद हर नौजवान रखता है, के उसकी जिन्दगी में सिर्फ अच्छाई हो और एक रोशन मुस्तकबिल आंखों के सामने तैरता रहता हो।यह वो उम्र है, जब कोई चीज ना मुमकिन नहीं लगती हर चीज पहुंच के अन्दर ही लगती है। बचपन से जवानी का सफर तय करने के बाद नौजवान खुद को समझता है, दरयाफत करता है, के मुझ में क्या सलाहियते है और उसे अपनी शख्सियत का अंदाजा हो जाता है।
यकीनन शिक्षा नौजवानों का जेवर और उसी पूंजी है, जिसकी मदद से वो सोसायटी मे बदलाव लाता है, जो इंसानियत की सेवा करने में मददगार साबित होती है। जाहिर है तालिम का बुनियादी मकसद ना सिर्फ विभिन्न साईंसों की मालूमात हासिल करना है, बल्कि उससे अपनी तकनीकि सलाहियत में इजाफा भी करना है। शिक्षा नौजवानों को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तरिका पुख्ता करती है। नौजवानों को परवाज के लिए पर अता करती है, ताकि वो नौजवानों से एक पुख्ता इन्सान में तब्दील हो। यह वही वक्त है, जब वो अपनी पेशेवाराना मंजिल का रूख तय करता है। तालीम उड़ान के लिए पर देने के अलावा उड़ज्ञन के रूख और मैदान को तय करने में भी मदद देती है और यही मनाजिल आगे चलकर नए और तरक्की याफता समाज को बनाने का कारण बनती है। तालीम नौजवानों के सामाजिक बेदारी पैदा करती है और सामाजिक उन्नति का कारण बनती है। यह समाज के रोशन बतारीफ पहलुओं को उजागर करती है और नौजवानों को वो समझ अता करती है। जिसके कारण वो समाज के मसाईल हल करने के काबिल हो जाते है, लिहाजा यह आवश्यक है कि नौजवानों के अच्छे कामों कि न सिर्फ प्रशंसा बल्कि सदा उनकी हिम्मत अफजाई करनी चाहिए, तालीम उन्हें यह सिखाती है कि क्या सही है और क्या गलत और उनमें खराब चीजों से इनकार की वजह पैदा हो जाती है। शिक्षा उनमें फैसले लेने की शक्ति देती है और उन्हें वो शक्ति देती है, जिससे वो गलतियों के तसलीम करने शख्सियत में सुधार पैदा करने उन्हे उठने और उठकर तरक्कियों की परवाज के लायक हो जाते है, अगर में मुख्तसर कई तो तालीम नौजवानों को आदमी से इन्सान बना देती है, अंग्रेजी की एक कहावत है के –
“Education Produce human beings out of raw individuals”

आईये अब उन विशेषताओं पर गौर करे, जिससे एक नौजवान बहतरीन शहरी बनता है। सबसे पहले देश के सम्बन्ध में नौजवानों की वफादारी व नमक हलाली जरूरी है, इसके बाद नौजवान को आदतन देश के कानून की पाबंदी करनी चाहिए, भारत एक जमहूरी मुल्क है और उसके कानून देशवासीयों की मर्जी को दर्षाता है, लेहाजा उसकी पाबंदी में कोई गलती नहीं होने चाहिए, उसके बाद करो की अदायगी नौजवान की जिम्मेदारी है, क्योंकि मुल्क की तरक्की के लिए साधन उन्हें करेां के द्वारा ही पैदा होते है।
नौजवान के अपने स्वार्थ पर देशवासियों के लाभ को तरजीह देनी चाहिए। वो तालीम का सही इस्तेमाल अवामी नुमाईंदों को तामीर करने की ताकत देता है, वोट का गलत इस्तेमाल गलत नुमाईन्दो के द्वारा गलत सरकार गठित होने की वजह बनता है, अदादो शुमार के मुताबिक भारत नौजवानों का देश है, लेहाजा उनकी यह जिम्मेदारी है के वो वोट का सही इस्तेमाल करें। यह आम सोच है के भारत में वर्क कल्चर नहीं है, काम न सिर्फ सोशल फण्ड पैदा करता है, बल्कि देश की आर्थिक उन्नति का भी कारण बनता है, कुछ देशों में जिसमें रूस भी शामिल है, काम को कानूनी फर्ज माना गया है। काम न करने वाले सोसायटी के नासूर है, लिहाजा नौजवानों को काम करने से कभी परहेज नहीं करना चाहिए, सामाजिक रवादारी नौजवान की सबसे अहम खुसुसियत हैं जो मुल्क में अमन व शान्ति का कारण बनती है, इसी तरह जुल्म व ज्यादती को रोकना ना सिर्फ अवाम को न्याय दिलाने के बराबर है, बल्कि जालिम के जुल्म से निजात दिलाना अल्लाह की इबादत है।
आज के इस दौर मं नौजवान को चाहिये कि दुनिया की तालीम तो हासिल करे ही लैकिन साथ में उसका यह फर्ज बनता है कि अपने अपने धर्म के अनुसार धार्मिक षिक्षा भी पूर्ण रूप से हासिल करे। क्योंकि दहषतगर्दी के इस दौर में धार्मिक षिक्षा का उल्म होना जरूरी है क्योंकि किसी भी धर्म में आतंकवाद का कोई स्थान नहीं है ना ही एक दुसरे के प्रति द्ववैष्ता और घृणा के लिये कोई जगह है खास तौर पर इस्लाम में सिद्धांतिक रूप आतंकवाद घृण, छल कपट लालच, की कोई जगह नहीं है बल्कि मोहब्बत अमन चैन का पैगाम देता है। मैं बहैसिय गरीब नवाज की औलाद एवं उनका सज्जादानशीन होने के बारगोह इलाही में दस्त बटुआ हूं, के अल्लातआला मुल्क के नौजवानों की दिली मुरादों को पुरा करते हुए उनके खानदान को खुशहाली अता फरमाते हुए उन्हें अपने अपने धर्मों की सही शिक्षाओं का पालन करने की ताफीक अता फरमाते हुए उनके भविष्य को उज्जवल करे और उनके द्वारा मुल्क में आमने सामने की फिजा कायम करते हुए देश के तरक्की के रास्ते पर गामजन करें, आमीन

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