मदस विवि के पर्यावरण विज्ञान विभाग में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

IMG_3592जून 27/ अजमेर म.द.स. विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग व वन विभाग, राजस्थान सरकार के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला ‘स्टेट वाइल्ड लाइफ एक्शन प्लान (2017-2031) पर थी। कार्यशाला का विधिवत शुभारंभ सरस्वती मां के समक्ष दीप प्रज्जवलन व माल्यार्पण के साथ हुआ ततश्चात् विश्वविद्यालय कुलगीत के द्वारा कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।
कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे अतिरिक्त प्रधान वन संरक्षक, राजस्थान सरकार डॉ. जी.वी. रेड्डी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कैलाश सोडानी, द्वारा की गई । श्री समीर कुमार दुबे, मुख्य वन संरक्षक, तथा पूर्व कुलपति प्रो. के.सी. शर्मा समारोह के विशिष्ट अतिथि थे। अजमेर तथा राजस्थान के चार जिलों से पधारे जिला वन अधिकारी मौजूद थे।
विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रवीण माथुर ने वन्य जीवों के संरक्षण के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने अजमेर संभाग के वन्य जीवों के संरक्षण हेतु ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के वन्यजीवों की सुरक्षा व उनके भविष्य का रोड़मेप तैयार करने की आवश्यकता बताई ताकि वन्यजीवों की विलुप्त होती प्रजातियों को तुरंत प्रभाव से बचाया जा सके।
उन्होंने विकास के नाम पर वन्यजीवों का विनाश व घटते वन क्षेत्र पर भी सवाल उठाया और इस प्रकार के विकास पर गहरी चिंता व्यक्त की। वन्यजीवों के प्रति संवेदनहीनता व उनके भविष्य को लेकर नई योजना बनाने की अहम, जरूरत बताई ताकि प्रकृति का संतुलन बना रहे व पर्यावरण को ठीक रखा जा सके। उन्होंने वन्यजीव जन्तु संरक्षण अधिनियम, 1972 की भी चर्चा की ओर इसे पूर्णरूप व सहीरूप से लागू करने की बात कही। उन्होंने अजमेर संभाग में भी वन्यजीवों की घटती प्रजातियों पर भी चिंता व्यक्त की। विशेषतः सोकलिया क्षेत्र में गोडावन (राज. राज्य पक्षी) की घटती संख्या पर भी चिंता जताई एवं खरमौर की प्रजाति को बचाने के प्रयासों की भी चर्चा की।
विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. के.सी. शर्मा ने भी राजस्थान को जैवविविधता बाहुल्य क्षेत्र बताया तथा यहाँ पाई जाने वाली पेड़-पौधों की 89 प्रजातियों के औषधीय गुणों की भी चर्चा की। परन्तु साथ में बदलते वातावरण से नष्ट होती प्रजातियों पर भी गहरी चिंता व्यक्त की।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कैलाश सोडानी ने इस कार्यशाला को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया क्योंकि इसमें थ्योरी व प्रेक्टीकल का सटीक मिश्रण है जो आज की आवश्यकता है उन्होने शहरों में वनक्षेत्र का एक बड़ा भू-भाग होना जरूरी बताया ताकि शहरी प्रदूषण से बचा जा सके। उन्होंने यातायात के भी प्रकृति-मित्र साधनों के प्रयोग की आवश्यकता बताई ताकि पर्यावरण के बिगड़ते स्वरूप को ठीक किया जा सके। उन्होंने विश्व के दूसरे देशों जेसे-हंगरी, की तरह स्वच्छ देश बनाने का आह्वान किया और इसे प्रत्येक नागरिक का प्रथम दायित्व बताया।
तकनीकी सत्र में श्री जी.वी. रेड्डी, अतिरिक्त प्रधान संरक्षक, वन विभाग, राजस्थान सरकार ने राष्ट्रीय जीव जन्तु संरक्षण योजना बनाने पर जोर दिया और साथ में इस संवेदना को भी व्यक्त किया कि यह केवल सामुदायिक व आम आदमी के सहयोग से ही संभव है। उन्होंने पूरे राजस्थान व मुख्यतः चार जिलों भीलवाड़ा, टोंक, नागौर व अजमेर में वन्य जीवों के संरक्षण संबंधी योजना पर चर्चा की तथा यहां पाई जाने वाली जैवविविधता पर भी व्यापक चर्चा की। उन्होंने इसे हमारी सभ्यता व संस्कृति का अभिन्न अंग बताया। उन्होंने अरावली क्षेत्र को जैवविविधता बाहुल्य क्षेत्र बताया और आम आदमी तक इसके संरक्षण संबंधी अभियान चालने की जरूरत बताया। उन्होंने वन्य जीवों के संरक्षण हेतु लिखित दिशा-निर्देश को भी जरूरी बताया। इस कार्यशाला को सिर्फ एक कार्यशाला ना कहकर, वन्यजीव संरक्षण के भविष्य की नींव बताया। उन्होंने सभी जिला वन अधिकारियों को पर्यावरण विज्ञान विभाग के साथ सहयोग कर वन क्षेत्र व वन्यजीवों के संरक्षण की योजना बनाने के लिए कहा ताकि इस कार्यशाला का सही उद्देश्य हासिल हो सके।
अजमेर संभाग के मुख्य वन संरक्षक श्री समीर कुमार दुबे ने वन्यजीव संरक्षण योजना को जमीनी हकीकत पर लाने की जरूरत बताया। उन्होंने कहा कि यदि वन्यजीव विलुप्त होते गये तो प्रकृति के चक्र की अहम् कड़ी टूट जाएगी और वह दिन दूर नहीं जब मानवजाति को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे। अतः हम सबको मिलकर वन्यजीव व वनक्षेत्र को बचाना व बढ़ाना होगा तभी इस कार्यशाला का उद्देश्य पूरा हो सकेगा।
विभिन्न जिलों से आए जिला वन अधिकारियों ने भी अपने-अपने क्षेत्रों की वन्यजीवों संबंधी जानकारियाँ दी व उन्हें बचाने के प्रयासों का जिक्र किया। भीलवाड़ा के श्री नवनीत ठाकुर, सहायक वन संरक्षक ने क्षेत्र में पाये जाने वाले वन्यजीवों का जिक्र किया व 2011 से 2016 तक 7 पैंथर की अज्ञात कारणों से मृत्यु का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि आर्गेनॉफॉस्फेट कीटनाशक से मोरों की मृत्यु अधिक हुई।
अजमेर जिला वन अधिकारी, श्री अजय चित्तौड़ा ने परिस्थितिकी तंत्र को व्यवस्थित रखने के लिए आवासीय स्थलों की आवश्यकता पर बल दिया साथ में आम आदमी को वन्य जीवों की शिक्षा देने की बात कही।
उन्होंने प्रकृति के बढ़ते विनाश को सबसे बड़ा आर्थिक नुकसान भी बतया। बदलते वातावरण, टूटते पारिस्थितिकी तंत्र और घटती जैवविविधता, भविष्य की चिंता है जिन्हें तुरंत ठीक करने की आवश्यकता है।
इस कड़ी में डॉ. मनोज माथुर, वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. महेन्द्र सिंह कछावा, डॉ. विवेक शर्मा, गजनफ़र अली जैदी ने अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यशाला में अश्विनी कुमार, संगीता पाटन, फिरोज खान, पारूल सेन, मोनिका कुमावत व सुचिता यादव तथा विश्वविद्यालय व दूसरे महाविद्यालयों के व्याख्याता व छात्र मौजूद थे।

प्रो. प्रवीण माथुर
विभागाध्यक्ष
पर्यावरण विज्ञान विभाग एवं कार्यशाला संयोजक
महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर

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