रामकथा में मनाया राम-सीता विवाह उत्सव
ब्यावर, 11 जुलाई। शहर के मोतीमहल गार्डन में आयोजित रसमयी रामकथा में सोमवार को भगवान राम व जानकी का विवाह उत्सव मनाया जाएगा। कथावाचक गोवत्स राधाकृष्ण महाराज ने विवाह प्रसंग सुनाते हुए कहा कि विवाह केवल स्त्री और पुरूष के गृहस्थ जीवन में प्रवेश का ही प्रसंग नहीं है बल्कि जीवन को संपूर्णता देने का अवसर है।
महाराज ने कहा कि घर में पुत्र का होना जितना जरूरी है उससे अधिक पुत्री का होना आवश्यक है। दस महादान में से कन्यादान सर्वश्रेष्ठ दान कहा गया है। राजा जनक में अपनी पुत्री का कन्यादान किया। श्रीराम ने विवाह द्वारा मन के तीनों विकारों काम, क्रोध और लोभ से उत्पन्न समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया है। स्वयंवर में भगवान राम ने अहंकार के प्रतीक धनुष को तोड़ा। यह इस बात का प्रतीक है कि जब दो लोग एक बंधन में बंधते हैं तो सबसे पहले उन्हें अहंकार को तोडऩा चाहिए और फिर प्रेम रुपी बंधन में बंधना चाहिए। विवाह बाद दोनों परिवारों और पति-पत्नी के बीच कभी अहंकार नहीं टकराना चाहिए। अहंकार ही आपसी मनमुटाव का कारण बनता है। कथावाचक ने कहा कि भारतीय संस्कृति में भगवान राम-सीता आदर्श दंपति है। राम ने जहां मर्यादा का पालन करके आदर्श पति और पुरूषोत्तम पद प्राप्त किया वहीं माता सीता ने सारे संसार के समक्ष अपने पतिव्रता धर्म के पालन का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। सभी दंपतियों को राम व सीता से प्रेरणा लेकर अपने दांपत्य को मधुरतम बनाने का संकल्प करना चाहिए। विवाह उत्सव में शामिल सैंकड़ों श्रोता भजनों पर झूम उठे। कथास्थल पर रात्रि में हरिनाम संकीर्तन किया गया।
