अशोक गहलोत व वसुन्धरा राजे दोनों ने मिला रखा है हाथ

राजेश टंडन
राजेश टंडन
राजस्थान में पिछले दो दशक में दो ही लोगों का राज रहा है, एक वसुन्धरा राजे और दूसरा अशोक गहलोत। इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि राज भोगने के लिये इन दोनों ने आपस में हाथ मिला रखा है इसके प्रमाण निम्न हैं:-
प्रमाण नं 1:- सन् 1985 में राजे गहलोत की सलाह मशवरे के बाद ही राजस्थान की राजनीति में आईं थीं और उनके दिवंगत भाई स्व. माधव राव सिन्धिया और गहलोत परम मित्र रहे हैं राजे का ससुराल धौलपुर में था लेकिन गहलोत की सलाह के बाद अपना कार्यक्षेत्र झालावाड़ को बनाया और वहां से स्वयं 5 बार सांसद रहीं हैं इस दौरान कांग्रेस ने कभी भी किसी कदावर नेता को टिकिट नहीं दिया और वे आसानी से जीतती चली गईं।
प्रमाण नं. 2:- सिर्फ पिछले चुनाव में उनके पुत्र दुश्यन्त के खिलाफ सी.पी. जोशी के दखल से एक मजबूत उम्मीदवार प्रमोद जैन भाया की पत्नि को टिकिट दिया गया क्यों कि जोशी इस गठबंधन को तोड़ना चाहते थे, राजै को इस चुनाव में पसीने आ गये थे सत्ता में होने की वजह से वे चुनाव जीत पाईं।
प्रमाण नं. 3:- गहलोत ने सन् 2003 से 2008 तक के बीच विपक्ष में रहते हुए विधानसभा के भीतर सिवाय शपथ लेने के एक भी शब्द उच्चारित नहीं किया, राजे के खिलाफ बोलना तो बहुत दूर की बात है। ऐसा ही उन्होंने 2013 से अभी तक की अवधि के दौरान विधानसभा में किया। यह सब विधानसभा के रिकॉर्ड में वैबसाईट पर उपलब्ध है कोई भी आदमी इसे देख सकता है। गहलोत सिर्फ अखबारों में ही बोलते हैं और टी.वी. इन्टरव्यू देते हैं, विधानसभा में कभी भी राजे के खिलाफ नहीं बोलते।
प्रमाण नं. 4:- गहलोत ने सत्ता में आने के बाद राजे के खिलाफ कई जांच आयोग बनाए लेकिन कार्यवाही और सज़ा किसी में भी नहीं हुई सब ठण्डे बस्ते में चले गये, मात्र नूराकुश्ती ही हुई। उधर ठीक ऐसा ही वसुन्धरा राजे ने सत्ता में आने के बाद किया है, जबकि अपनी पार्टी के भीतर दोनों अपने प्रतिद्वन्धियों (महिपाल मदेरणा, रामलाल जाट, डॉ0 हरिसिंह, मास्टर भंवर मेघवाल, प्रमोद जैन भाया, घनश्याम तिवाड़ी, ओम माथुर, चन्द्र राज सिंघवी, नरपत सिंह राजवी) को ठिकाने लगाते रहे और राजनीतिक हाशिये पर भेजते रहे।
प्रमाण नं. 5:- दोनों ने अपने राज के दौरान एक दूसरे को लग्ज़री सरकारी बंगलों की सौगात दी है आज भी सिविल लाईन, जयपुर में दोनों के बंगले एक-दूसरे के सामने मौजूद हैं ।
प्रमाण नं. 6:- दोनों एक दूसरे के निर्वाचन क्षेत्र में कोई दखल नहीं देते।
प्रमाण नं. 7:- राज्य के वरिष्ठ नौकरशाहों जैसे अशोक सिंघवी, ललित पंवार, श्रीमत् पाण्डे, राजीव महर्षि, हरीश मीणा, राम लुभाया, चन्द्र मोहन मीणा, ओ.पी. मीणा, निरंजन आर्य, आरूषि मलिक ये दोनों ही सरकारों में उच्च पदों पर रहे हैं और दोनों के समान ही चहीते रहे हैं, ऐसे कई अधिकारी और भी हैं पर श्रीमत् पाण्डे इसका सबसे बड़ा ज्वलंत उदाहरण हैं। दोनों के जन्म और सत्ता के गणित समीकरण

1. अशोक गहलोत की जन्म तारीख 3 मई है मई वर्ष का पांचवा महीना होता है 3 + 5 को जोड़ो तो अंक 8 बनता है, गहलोत पहली बार मुख्यमंत्री बने वर्ष 1998 में। 1998 का अन्तिम अंक भी 8 होता है।
2. गहलोत दूसरी बार मुख्यमंत्री बने वर्ष 2008 में इस वर्ष का भी अन्तिम अंक 8 होता है।
3. वसुन्धरा राजे का जन्म दिनांक 8 मार्च है मार्च वर्ष का तीसरा महीना होता है 8 – 5 करो तो अंक 3 आता है।
4. राजे पहली बार सी.एम. बनीं सन् 2003 में। जिसका भी अन्तिम अंक 3 आता है, दूसरी बार बनीं वर्ष 2013 में, तो भी अन्तिम अंक 3 ही आता है वर्ष 2018 में चुनाव हैं तो भी अंक आता है 8.
5. वसुन्धरा राजे ने दो मकान जयपुर में सिविल लाईन में ले रखे हैं जिनके अंक हैं 8 व 13 जो सर्वविदित हैं, दोनों ही अनुष्ठान कराते रहते हैं, दोनों ही मन्दिरों में जाते रहते हैं, गुप्त तांन्त्रिक क्रियाएं कराते रहते हैं।
प्रमाण एवं अंकीय समीकरण ये कहते हैं कि दोनों के हाथ मिले हुए हैं, दोनों की ही राजनैतिक महत्वकाशाएं अपने-अपने पुत्रों को आगे बढ़ाने की हैं, और दोनों को ही अपनी सत्ता की परवाह है।

राजेश टंडन, वकील, अजमेर।

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