पश्चिम क्षेत्रीय कुलपति सम्मेलन

img_5044महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर एवं भारतीय विश्वविद्यालय संघ नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय पश्चिम क्षेत्रीय कुलपति सम्मेलन में दिनांक 8 अक्टूबर को चतुर्थ तकनीकी सत्र सम्पन्न हुअजिसका विषय था ‘परीक्षा प्रणाली’’ इस सत्र की अध्यक्षता एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. शशिकला वंजारी ने की। इस सत्र में तीन वक्ता ने अपने विचार व्यक्त किये। प्रो. कुमकुम गर्ग, प्रो. एन.पी. कौशिक एवं प्रो. देवेन्द्र पाठक। इसमें खुली पुस्तक मूल्यांकन में समस्याओं को सुलझाना, विश्लेषण तुलना करना, आलोचनात्मक विचार विमर्श करना तथा निर्णय लेना जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई। इसको खुले वैब मूल्यांकन तक पहुँचाना भी उचित होगा परन्तु छात्रों की संख्या अत्यधिक होने से इस प्रणाली के क्रियान्वयन पर कठिनाई हो सकती है। परीक्षा केन्द्र की सुरक्षा, उत्तर पुस्तकों की सुरक्षा, मूल्यांकन प्रणाली में समानता इत्यादि विषयों पर भी सभी वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। समापन समारोह में मुख्य अतिथि श्री सी.आर. चौधरी, मंत्री उपभोक्ता मामलात खाद्य एवं आपूर्ति भारत सरकार थे। सर्वप्रथम प्रो. आशीष भटनागर द्वारा दो दिवसीय सम्मेलन का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया जिसमें समस्त सत्रों की, विषय तथा वक्ताओं की जानकारी दी गई। तत्पश्चात् भारतीय विश्वविद्यालय संघ के महासचिव प्रो. फुरकान कमर ने अपने उद्बोधन में कहा कि जिस प्रकार भारत के छात्र पूरे विश्व में भारत का नाम रौशन कर रहे हैं वह इस बात का द्योतक है कि हमारी शिक्षा प्रणाली कितनी सुदृढ़ और बहुआयामी है। ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा चरितार्थ करना विश्वविद्यालयों का उद्ेश्य बने। विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कम संख्या चिंता का विषय है, इससे शिक्षा नीति एवं शिक्षा की गुणवत्ता दोनों पर ही विपरीत प्रभाव पड़ता है। छात्र विश्वविद्यालय का केन्द्र होना चाहिए। नए ज्ञान का विस्तार, नए ज्ञान का सृजन, वर्तमान ज्ञान से नए आयाम जोड़ना यह प्रत्येक शिक्षा विद् का उद्देश्य होना चाहिए। प्रो. कमर ने कहा कि भारत में इतनी प्रतिभा विद्यमान है कि वह पुनः विश्व गुरू बने। प्रो. डी.एस. चौहान अध्यक्ष भारतीय विश्वविद्यालय संघ ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिक्षा में कई नई चुनौतियां हैं। अब वर्तमान में शिक्षा की स्थिति एक बहुत बड़े पेड़ के समान है जिसकी अनदेखी माली के रूप में सरकार द्वारा हो रही है। नतीजा यह है कि बड़े वृक्ष से जैसे फल आने चाहिए वो नहीं आ पा रहे। शिक्षा का भारतीयकरण भी अत्यन्त आवश्यक है। भारत के नागरिक ‘‘राकेश’’-राहू, केतु, शनि के जाल में फंसे हैं। विद्या में वह शक्ति है जिससे पूरा देश अमर हो सकता है। विद्वानों में अहम् शून्यता आवश्यक है, शिक्षक का विनम्र होना भी आवश्यक है। स्कूल व विश्वविद्यालय कैसा भी हो, शिक्षकों द्वारा दिया गया ज्ञान हमेशा श्रेष्ठ होना चाहिए। श्री सी.आर. चौधरी ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिक्षा में सुधार लाने के लिए परीक्षा प्रणाली में सुधार तथा मूल्यांकन पद्धति में सुधार लाना आवश्यक है। निजी क्षेत्र में विश्वविद्यालयों के कारण छात्रों का पंजीयन बढ़ा है। श्रेष्ठ शिक्षा, श्रेष्ठ शोध एवं प्रशिक्षण तथा श्रेष्ठ रोजगार इन तीनों बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए। भरर्ती पर सरकार की अनदेखी दुर्भाग्यपूर्ण है। शिक्षकों का वेतन एवं उनको दी जाने वाली सुविधाएं ऐसी हों कि वह अपनी नौकरी में पूर्ण रूचि के साथ कार्य करे। शोध पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि परीक्षा की प्रणाली केवल याददाश्त पर आधारित नहीं होना चाहिए। सतत् मूल्यांकन प्रक्रिया से मूल्यांकन कराया जाना उचित है। अध्यक्षीय उद्बोधन महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी ने दिया। उन्होंने समस्त कुलपतियों का आभार प्रकट करते हुए कि शिक्षकों की कमी एवं स्वायत्ता की कमी यह दो सर्वाधिक चिन्ता के विषय हैं। उन्होंने प्रोफेसर को अपनी स्वायत्ता का लाभ उठाने के लिए अपनी कलम का प्रयोग करने का आह्वान किया। कार्यक्रम के अंत में भारतीय विश्वविद्यालय संघ के संयुक्त सचिव डॉ. सेम्पसन डेविड ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. दीपिका उपाध्याय ने किया।

प्रो. बी.पी. सारस्वत
नोडल अधिकारी
पश्चिम क्षेत्रीय कुलपति सम्मेलन
महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर

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