विरोध से खत्म हो जाएगा परिवार भाव -डॉ इन्दुशेखर

स्त्री विमर्श पर अकादमी की विचार गोष्ठी रही सार्थक
अजमेर/पुरूष और स्त्री दोनों ही मनुष्य हैं इसलिए उनका समान रूप से सम्मान होना चाहिए। नारी की स्वतंत्रता, अस्मिता और सहभागिता पर हर युग में चर्चा होनी ही चाहिए। उन्होंने पार्वती-शिव के प्र्रेम विवाह का उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में तो वैदिककाल से ही महिला को पुरूषों के समान अधिकार दिये गए हैं। स्त्री विमर्श को सबने अपने अपने अर्थाें में गढ़कर पृथक मायनों में उद्घोषित किया है। कोई भी विमर्श जब विरोध में खड़ा हो जाता है तो वह अपना मूल भाव खोकर भटक जाता है। ये विचार राजस्थान साहित्य अकादमी एवं नाट्यवृंद संस्था के संयुक्त तत्वाधान में रविवार को स्वामी काम्प्लेक्स में ‘वर्तमान परिदृश्य में स्त्री विमर्श‘ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में मुख्य वक्ता अकादमी अध्यक्ष एवं प्रख्यात कवि-समालोचक डॉ इन्दुशेखर ‘तत्पुरूष‘ ने व्यक्त किये। मुक्तिबोध की कविता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यदि हम स्त्री और पुरूष को विरोध में खड़ा कर देंगे तो हमारा परिवार भाव ही खत्म हो जाएगा। अध्यक्षीय उद्बोधन में पद्मश्री डॉ चन्द्रप्रकाश देवल ने कहा कि हमारे समाज में कथनी और करनी में बड़ा अन्तर ही स्त्री की वर्तमान दशा के लिए उत्तरदायी है। हम कहते तो देवी हैं लेकिन व्यवहार में पशु से भी निम्नतर स्तर पर नारी का शोषण करते हैं, उस पर अत्याचार करते हैं। यह निश्चय ही विचारणीय है कि सारी सामाजिक परम्पराओं, रूढ़ियों के निर्वहन से महिलाओं को ही क्यों बांधा जाता है। सारस्वत अतिथि वेदविज्ञ डॉ बद्रीप्रसाद पंचोली ने वेदों के अनेक सूत्रों का उल्लेख करते हुए भारतीय संस्कृति में महिला की महत्ता को अभिव्यक्त किया। विशिष्ट अतिथि नगरनिगम उपायुक्त ज्योति ककवानी ने बताया कि महिलाओं आज के युग में पुरूषों से भी कहीं आगे निकल गयी हैं लेकिन फिर भी सामाजिक सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने समाज में महिला की स्थिति पर चिन्तन प्रत्येक काल में होता रहा है। साहित्य और समाज दोनों स्तर पर महिलाओं के सम्मान के प्रति दृष्टिकोण को बदले जाने की जरूरत है। सह संयोजक गीतकारा डॉ पूनम पाण्डे ने स्त्री की उमंग को उकेरते गीतों की सुमधुर प्रस्तुति दी। डॉ बीना शर्मा ने बताया कि महिला सशक्तिकरण और स्त्री स्वतन्त्रता आन्दोलन से भारतीय महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन हमारा समाज उसे आज भी दोयम दर्जे पर रखने की मानसिकता से उबर नहीं पाया है। कवि रासबिहारी गौड़ ने ‘नाखून की ताकत से चट्टानें तोड़ रही है‘ जैसी संवेदनशील कविताएं सुनाते हुए कहा कि स्त्री पुरूष की विलोम नहीं पूरक है और देह या देवी न समझकर स्त्री को केवल स्त्री के रूप में समझना चाहिए। गोष्ठी का संचालन कर रही डॉ विमलेश शर्मा ने अपने शोध पत्र में बोलो माधवी, सीता पुनि बोली कृतियों और अनामिका की कविता ‘हम भी इन्सान हैं हमें कायदे से पढ़ो‘ को उद्घृत करते हुए समाज में नारी को नेपथ्य में धकेलने की प्रवृत्ति को बदलने की आवश्यकता पर बल दिया। कवि बख्शीश सिंह ने विविध धर्माें में स्त्री चिन्तन के बारे में बताया। डॉ शकुन्तला तँवर ने परिवार और समाज में विविध स्तरों पर महिला की स्थिति पर विवेचन किया। डॉ भारती शर्मा ने अपनी शोध पुस्तक में दर्शाये बिन्दुओं को स्पष्ट किया।
विख्यात गज़लगो सुरेन्द्र चतुर्वेदी ने स्त्री संवेदना को उकेरती गज़ल ‘साथ चूल्हों में पलती रही अर्थियां, लकड़ियां लडकियां लडकियां लकडियां‘ सुनाई और गोविन्द भारद्वाज ने माँ के प्रति भावों को व्यक्त करती मार्मिक कविता सुनाई। मधु खण्डेलवाल ने बच्चे के प्रति माँ के भावों को कविता में उकेरा। इस अवसर पर डॉ चेतना उपाध्याय, डॉ अनन्त भटनागर, डॉ कालिन्द नन्दिनी शर्मा, डॉ ध्वनि मिश्रा, देवदत्त शर्मा, डॉ कमला गोकलानी, प्रदीप गुप्ता, देवदत्त शर्मा, मुन्नी शर्मा इत्यादि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। प्रारंभ में समाजसेवी कंवलप्रकाश किशनानी ने अतिथियों का स्वागत किया और ंअंत में डॉ पूनम पाण्डे ने आभार अभिव्यक्त किया।
-उमेश कुमार चौरसिया
संयोजक व
सदस्य राजस्थान साहित्य अकादमी
9829482601

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