दयानंद का स्वराज चिंतन राष्ट्र के लिए एक क्रांतिकारी आयाम था

’दयानंद शोध पीठ के तत्वावधान में एक दिवसीय संगोष्ठी आयोजित
अजमेर ।गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार में वेद विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर रुपकिशोर शास्त्री ने कहा कि दयानंद सरस्वती का स्वराज चिंतन आर्य समाज ही नहीं अपितु राष्ट्र के लिए क्रांतिकारी आयाम था। मंगलवार को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में दयानंद शोध पीठ के तत्वावधान में स्वराज सभागार मे महर्षि दयानंद सरस्वती का स्वराज चिंतन विशषक एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बतौर अध्यक्ष संबोधित करते हुए शास्त्री ने कहा कि दयानंद ने वेदो के आधार पर देश के नागरिकों को स्वराज के प्रति उत्साहित व प्रेरित किया था। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद का स्वराज चिंतन अमर है, जो आज भी प्रासंगिक है ।उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती ने देश के लिए आत्म चिंतन तथा आत्म बलिदान का उदाहरण प्रस्तुत किया है ।दयानंद का स्वराज्य चिंतन अविस्मरणीय है जो आज भी देश के हर नागरिक को प्रेरित करता है। शास्त्री ने अपने उदबोधन में कार्ल मार्क्स, काका हाथरसी के साथ ही 19 वी सदी के विभिन्न विद्वानों द्वारा दयानंद के चिंतन पर प्रकाश डाला । उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि आचार्य सोमदेव शास्त्री अध्यक्ष वैदिक मिशन मुम्बई ने दयानंद के व्यक्तित्व कृतित्व पर विवेचन प्रस्तुत किया । दयानंद शोध पीठ के निदेशक प्रोफेसर प्रवीण माथुर ने स्वागत उद्बोधन के साथ ही संगोष्ठी के विस्तृत रुपरेखा प्रस्तुति की । समारोह के आरम्भ में अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन किया गया। संगोष्ठी में प्रदेश के विभिन्न प्रांतो से आए वेदिक विद्वानों ने अपने विचार रखे। संगोष्ठी के कुल 2 सत्र हुए प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ सोमदेव शास्त्री, अध्यक्ष वेदिक मिशन मुंबई ने की तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में लंबोदर मिश्र पूर्व निदेशक शोध विभाग जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय थे । सत्र के सारस्वत अतिथि स्वामी विश्वंग़ परिव्राजक थे । इस सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में पंडित राम स्वरूप रक्षक ने संबोधित किया। सत्र का संचालन डॉ. अर्चना विनोद ने किया। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता आचार्य सत्यजीत रोजड़ ने की तथा सारस्वत अतिथि के रूप में प्रो रूप किशोर शास्त्री मौजूद रहे। विशिष्ट अतिथि ऋषि उद्यान अजमेर के आचार्य विद्या देव थे ।
डॉ. अर्चना विनोद ने कहा कि यदि वर्तमान अतीत से सुन्दर नहीं है तो वर्तमान को चिन्तन करना होगा कि क्या वास्तव में स्वराज्य प्राप्त हो गया है। यदि मात्र अंग्रेजों की दासता से मुक्त होना ही स्वराज्य चिन्तन होता तो आज विद्धान यहां एकत्रित ना होते। अभी भी देष बंटा हुआ है आने वाले समय में देखने में आने वाला है। महर्षि का यही चिन्तन था। महर्षि ये सब देख रहे थे। शीघ्र व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एक सूत्र में बांधने की आवष्यकता है। हम आज अधिक गुलाम हैं हम पर अपना राज नहीं। हममें राष्ट्रीयता का भाव नहीं। बाहर से बड़े शत्रु भीतर मौजूद हैं महर्षि बार-बार प्रयास करते रहे हम श्रेष्ठ हैं हम दीन हीन नहीं है मानसिक गुलामी से बाहर निकालने का ‘‘बागी दयानन्द‘‘ पृ. 9, 10
इस राष्ट्र में शक्ति है पर सोयी हुई है सोए राष्ट्र को जाग्रत करो, साहस करो और उसके सामर्थ्य को पहचान कराओं व्यक्ति से व्यक्ति जुड़े। प्रत्येक हृदय में प्रेम एकता हो बस एक लक्ष्य राष्ट्र और ईष्वर का दीपक जलेगा यही महर्षि का स्वराज्य है।
कैसे रक्षा करेगा भारत, स्वार्थ में लिप्त भारत, चारित्र से पतित भारत, अपनी इस पूर्वजों की तपोभूमि को। हमारा अनुभव है, जब-जब राष्ट्रीय चरित्र को अभाव हुआ, राष्ट्र का अपमान हुआ है। इतिहास उठा के देख लीजिए। महर्षि राष्ट्र के प्रति निष्ठा व श्रद्धा आए ये चाहते थे। क्योंकि कोई भी समाज शस्त्र उठाने वालों में राष्ट्रीयता का भाव न जगा पाए ये षिक्षक की असफलता है। मां के चरित्र से व्यक्ति का निर्माण होता है षिक्षक के चरित्र से राष्ट्र का निर्माण होता है। महर्षि ने देखा कि धर्म जाति में बंटा देष जिसमें राष्ट्र भावना का अभाव है जिसके चलते देष गुलाम है। महर्षि ने स्वराज्य के चिंतन को कार्यरूप दिया गुरूकुल खोला ताकि षिक्षक में चरित्र निर्माण हो, राष्ट्रीयता का भाव बने आने वाले कल के लिये। मानसिक गुलामी षिक्षक ही दूर कर सकता है। धर्म प्रसार हो एकता का भाव बने। हर षिक्षक गुरू बने प्रेरित हो। और निर्दोष भाव से जुट जाए बढ़ाने में राष्ट्र के चरित्र को।
आचार्य सत्यजित ने अपने ओजस्वी व्याख्यान में महर्षि दयानन्द के स्वराज्य राज को भारतीयों के लिए अति उŸाम बताया। उन्होंने स्वदेषी को भी महत्वपूर्ण बताया। आर्यों के लिए चक्रवर्ती राज-षासन सब देष का अपना-अपना होगा, इस व्यवस्था में स्वराज्य की कल्पना की जा सकती है। आचार्य ने आर्य का अर्थ श्रेष्ठ बताया। वेद ने आर्यों को जो भूमि देने का उल्लेख है उसका तात्पर्य पूरी पृथ्वी से है ना कि केवल भारत देष से है। आर्यों के लिए पूरा संसार है। उन्होंने महर्षि दयानन्द को श्रेष्ठों का पूजक बताया। आचार्य ने कहा कि स्वराज्य की परिकल्पना में श्रेष्ठता समाहित है।
सत्र का संचालन आचार्य कर्मवीर व आचार्य सोमदेव ने संयुक्त रूप से किया। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में खाद्य एवं पोषण विभाग में प्रोफेसर रितु माथुर ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया।

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