रामायण पुनरावलोकन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ

बीकानेर 17 जनवरी। महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय में रामायण पुनरावलोकन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ आज विश्वविद्यालय के वशिष्ठ भवन में हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कोटा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. पी.के.दशोरा, विशिष्ट अतिथि इतिहासकार प्रो. नन्द किशोर आचार्य एवं प्रो. देव कोठारी रहे तथा अध्यक्षता कुलपति प्रो. भगीरथ सिंह ने की। इस अवसर पर अपने उद्बोधन में श्री हनुमान सिंह ने कहा कि “रामायण मात्र एक ग्रंथ ही नहीं है अपितु एक परम्परा हैं जिसने भारत राष्ट्र को शताब्दियों से संगठित रखा है। रामायण के 300 से भी अधिक संस्करण होने के बावजूद भी मूलभाव एक ही है। रामकथा एवं लोक गाथाओं के अतिरिक्त, रामायण के 1000 से भी अधिक संस्करण है। ए.के. रामानुजन द्वारा उल्लेखित 300 रामायण के संस्करणों में रामायण के कुछ सर्व प्रचलित संस्करण ही सम्मिलित है। रामायण का अध्ययन प्रत्येक विषय के विद्यार्थी को करना चाहिये।“
मुख्य अतिथि कोटा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. पी.के.दशोरा ने कहा कि रामायण का सम्बन्ध किसी धर्म विशेष से न होकर सम्पूर्ण दक्षिण एशियाई संस्कृति से है। रामायण में जीवन के विविध पक्षों यथा राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, साहित्यिक का बखूबी चित्रण किया है। रामायण के पात्र एवम् स्थान कुछ भी हो, संदेश सार्वभौमिक है। रामायण भारत राष्ट्र की दूसरी भाषा है।” समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवम् संस्कृति अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. देव कोठारी एवम् भारतीय सूचना प्रोद्योगिकी संस्थान के पूर्व आचार्य डॉ. नन्द किशोर आचार्य थे।
इससे पूर्व संगोष्ठी के निदेशक एवम् अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. एस. के. अग्रवाल ने संगोष्ठी की विषय वस्तु को प्रतिपादित करते हुए कहा कि रामायण एक ग्रन्थ नहीं अपितु परम्परा है। रामायण का मूल्याकंन धृतराष्ट्र सिन्ड्रोम से प्रभावित रहा है – चाहे व फिर सीता की अग्नि परीक्षा हो या राम का वनगमन। एक साहित्य का मूल्यांकन तथ्यों से नहीं अपितु इसमें निहित सत्य से होता है। रामायण यूरोपियन साहित्य से अलग है क्योंकि समय, स्थान के परिपेक्ष्य में रामायण महाकाव्य परिवर्तित होता रहा है।
उद्घाटन सत्र् की अध्यक्षता करते हुए महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. भगीरथ सिंह ने कहा कि रामयण का संदेश केवल भारत एवम भारतीयों के लिए ही नहीं है अपितु सम्पूर्ण मानवता के लिए हैं। रामायण-महाभारत जैसे साहित्यिक ग्रंथ भारतीय राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर है। माननीय मूल्यों के संवर्द्वन हेतु इन ग्रंथों की शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिये।
स्वागत भाषण अंग्रेजी विभाग में सहायक आचार्य डॉ. सीमा शर्मा ने दिया। इस अवसार पर संगोष्ठी की स्मारिका एवम पूर्व में हुई संगोष्ठी की प्रोसिडिंग्स का विमोचन किया गया। इसके पश्चात् राजस्थानी भाषा, साहित्य एवम् संस्कृति अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. देव कोठारी ने भीलों के जन जीवन में रामकथा पर व्याख्यान दिया। प्रो. कोठारी ने बताया कि जनजातीय जीवन शान्तिप्रद रहा है। अतः मीलों की रामकथा में वह सब कुछ टाला गया है जिससे जनजीवन की शान्ति भंग होने का खतरा रहता है। व्याख्यान की अध्यक्षता प्रो. बी.एल. भादानी ने की एवम् उपाध्यक्ष वर्धमान महावीर कोटा विश्वविद्यालय के डॉ. क्षमता चौधरी थी। दूसरा व्याख्यान प्रो. नन्द किशोर आचार्य का हुआ। इसकी अध्यक्षता प्रो. राजुल भार्गव ने की एवम् उपाध्यक्ष डॉ. विनीता शुक्ला थी।

अपरान्ह सत्र् में संगोष्ठी में दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्रो. एस.पी. शुक्ला एवम् प्रो. कुसुमलता, गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गाँधी नगर के प्रो. बालाजी रंगनाथन, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर की प्रो. राजुल भार्गव एवं डॉ. गौरव बिस्सा का पेनल डिस्कसन में भाग लिया। इसमें मॉडरेटर का कार्य इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के पूर्व वाइस चांसलर प्रो. अनूप बेनीवाल ने कियो। मीडिया संबंधी समस्त कार्य डूंगर कॉलेज के सह आचार्य डॉ. राजेन्द्र पुरोहित ने सम्पादित किया।

संगोष्ठी निदेशक प्रो. अग्रवाल ने बताया कि 18 जनवरी को करीब 100 पत्रों का वाचन होगा एवम् करीब पांच पेनल डिस्कसन होंगे। समापन समारोह 18 जनवरी को अपरान्ह 1ः00 बजे होगा। समारोह के मुख्यवक्ता संवित सोमगिरी जी महाराज होंगे। विशिष्ट अतिथि इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली के पूर्व कुलपति प्रो. अनूप बेनीवाल होंगे। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. भगीरथ सिंह करेंगे। समारोह में रिपोर्ट का प्रस्तुतीकरण सेमिनार निदेशक प्रो. एस. के. अग्रवाल द्वारा किया जायेगा।

प्रो. एस. के. अग्रवाल विभागाध्यक्ष (अंग्रेजी)एवं
निदेश्ंाक संगोष्ठी

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