केकड़ी:– 17 मार्च।संतों का क्या मान और क्या अपमान वह तो हर हाल में एकरस रहते हैं।जिस इंसान के दिल, दिमाग में घृणा होगी तो वह सब से नफरत ही करेगा, और जिस इंसान के दिल , दिमाग में प्रेम होगा वह सबसे प्यार से मीठा व्यवहार ही करेगा। हमें मिर्च सा नहीं फूलों सा कोमल व्यवहार करना है।उक्त उद्गार बहन संगीता ने अजमेर रोड स्थित सन्त निरंकारी सत्संग भवनपर आयोजित सत्संग के दौरान व्यक्त किए।
मीडिया सहायक राम चंद टहलानी के अनुसार बहन संगीता ने कहा कि हम आशिक है तेरे (परमात्मा) के नाम के,तो क्यों है झगड़े रहीम और राम के।
आज दुनिया गिराने में,बर्बाद करने में विश्वास करती है जब गलत संगत से इंसान भटक जाता है तो फिर विनाश ही विनाश है, भिन्न- भिन्न फूलों का गुलदस्ता सबको भाता है ठीक उसी प्रकार प्यार, नम्रता, सहनशीलता,एकता परमात्मा को अच्छी लगती है मिलजुल कर रहने में ताकत है।जिस इंसान ने अपने जीवन में सद्गुरु को पहल दी है उसके हर काम सदगुरु आप स्वयं करते हैं, इंसान एक कदम बढ़ाता है तो सतगुरु दस कदम आगे बढ़ाते हैं भक्त कभी भी परमात्मा से,सद्गुरु से अधिकार नहीं मांगते हैं, सद्गुरु परमात्मा स्वयं कृपा कर अपने भक्तों को व्यापक बनाते हैं उसे किसी प्रकार की कठिनाई नहीं आने देते हैं।
जिस प्रकार काटों के बीच रहकर फूल अपनी सुंदरता नहीं खोता है ठीक उसी प्रकार भक्त भी दुनिया के मायाजाल में रहता है पर उस में उलझे नहीं है तो ही वह हर हाल में आनंदित रह पाता है,जो पत्थर चोट नहीं सह पाया वह कंकर हो जाता है और जो पत्थर चोट सह जाता है वह शंकर हो जाता है,ऐसे ही जो इंसान दुनिया के थपेड़े सह जाता है वह निखर जाता है जो नहीं सह पाता तो वह बिखर जाता है। इसलिए अपने सतगुरु पर,परमात्मा पर पक्का विश्वास होना चाहिए,कभी डोलायमान नहीं होना चाहिए क्योंकि आज इंसान अपनी बुराईयां दूसरों पर थोपने में पीछे नहीं रहता है।
सत्संग के दौरान सिल्की , आशा,नरेश,उमेश,पूजा ,चांदनी,अंजू,चेतन,दिव्या ,विवेक,भगवान आदि ने गीत, विचार,भजन प्रस्तुत किए संचालन की अशोक रंगवानी ने किया।