वर्षा ऋतु में अस्थमा से बचाव पर नया शोध

वर्षा ऋतु में शारीरिक मेटाबोलिज्म या बीएमआर की दर कम रहती है। इस मौसम में वातावरण का तापमान कम ज्यादा होता रहता है तब भी लो बीएमआर की अवस्था बनी रहती है अर्थात शरीर के विभिन्न भागों त्वचा, मूत्र, श्वासनलियों में आने जाने वाली वायु के माध्यम से ऊर्जा एवं जल बाहर निकलता रहता है इससे शरीर का तापमान सामान्य अर्थात 37 डिग्री सेल्सियस बना रहता है। हाल ही में इंग्लैण्ड की प्रसिद्ध पत्रिका मेडिकल रिसर्च एंड इनोवेशन में प्रकाशित वरिष्ठ चिकित्सक डाॅ तरूण सक्सेना के नवीन शोध पत्र ‘अस्थमा ट्रीटमेंट विथ इट्स रिलेशन टू चेन्जेज इन सीजनल मेटाबोलिज्म‘ में वर्षा ऋतु में अस्थमा के कारण और उपचार पर नये तथ्य सामने आये हैं। शोध में वर्षा के मौसम में बीएमआर को कम करने वाले पदार्थाें के सेवन को अस्थमा से बचाव व उपचार में उपयोगी पाया गया है।
डाॅ तरूण सक्सेना ने बताया कि अस्थमा के मरीजों को वर्षा के मौसम में आंवला, गुलकन्द, छाछ, मौसमी फल और पानी का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए। मेटाबोलिज्म बढ़ाने वाले अत्यधिक मिर्च-मसालेदार पदार्थ, गरम तासीर वाले अदरक, काली मिर्च, पिज्जा जैसे पदार्थ और एकाएक बीएमआर को परिवर्तित करने वाले एकदम ठंडे पानी या ठंडे पेय पदार्थाें का सेवन नहीं करना चाहिए। वायरल इन्फेक्शन के बाद होने वाले अस्थमा में मस्तिष्क के स्तर पर बीएमआर को कम करने वाले शंखपुष्पी एवं ब्राह्मी के सीरप अत्यंत लाभदायक हेैें। ऐसे अस्थमा रोग जिन्हें मधुमेह भी है वे शुगर फ्री सीरप का सेवन कर सकते हैं। शोध में यह भी बताया गया है कि मौसम परिवर्तन के साथ होने वाला अस्थमा मुख्यतः मेटाबोलिज्म से संबंधित है जिसमें श्वास नलियों में शीत ऋतु व वसंत ऋतु में ऊर्जा संग्रहण एवं ग्रीष्म, वर्षा व आरंभिक शीत ऋतु में ऊर्जा निकास में व्यवधान या अचानक परिवर्तन आने से श्वास नलियों में अस्थमा के लक्षण उत्पन्न होते हैं। इसलिए अस्थमा रोगियों को अप्रेल से अक्टूबर माह तक प्रातः खुली हवा में घूमना चाहिए ताकि वातावरण के विभिन्न तापमानों से शरीर का सामंजस्य हो सके। ऐसा होने से मौसम परिवर्तन होने पर भी अस्थमा से बचा जा सकेगा।

-डाॅ तरूण सक्सेना
वरिष्ठ चिकित्सक, मित्तल हास्पीटल एण्ड रिसर्च सेन्टर
फोन नं. -01452420698

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