‘तू मिला जिस रोज और निखर जाऊँगा‘

पुस्तकों का हुआ विमोचन और शाम-ए-गज़ल में गूंजे मशहूर कलाम
गोपाल गर्ग और ब्रिजेश माथुर के गज़ल संग्रह का विमोचन किया अतिथियों ने

अजमेर/कला एवं साहित्य के प्रति समर्पित संस्था ‘नाट्यवृंद‘ द्वारा शनिवार 17 अगस्त 2019 को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड स्थित राजीव गांधी सभागार में राष्ट्रीय शाम-ए-गज़ल एवं विमोचन समारोह आयोजित हुआ। कार्यक्रम में गज़लकार गोपाल गर्ग के गज़ल संग्रह ‘तू मिला जिस रोज‘ एवं डाॅ ब्रिजेश माथुर के गज़ल संग्रह ‘और निखर जाऊँगा‘ का विमोचन मुख्य अतिथि डाॅ लक्ष्मीशंकर वाजपेई, अध्यक्ष अशोक रावत, विशिष्ट अतिथि आकाशवाणी जयपुर की केन्द्र निदेशक रेशमा खान व वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ शकुन्तला किरण मित्तल ने किया। संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने कार्यक्रम की रूपरेखा बतायी तथा पूर्व विधायक डाॅ श्रीगोपाल बाहेती ने स्वागत उद्बोधन दिया। डाॅ अनन्त भटनागर ने दोनों लेखकों का परिचय दिया। डाॅ लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, डाॅ आरती कुमारी, सलीम खां फरीद और निरूपमा चतुर्वेदी ने पुस्तकों की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत की। डाॅ बीना माथुर, शशि गर्ग, डाॅ हिमांशु माथुर, डाॅ बिनिका माथुर, संकेत गर्ग, मीनू गर्ग, डाॅ देवाशीष माथुर, आकांक्षा माथुर, गजानन्द पारीक, अनिल गोयल और मधु खण्डेलवाल ने दुशाला ओढ़ाकर सभी अतिथियों का स्वागत किया। संचालन टीवी एंकर माधवी स्टीफन व रवि शर्मा ने किया। फैलेक्स स्टीफन, धीरज माथुर, वर्षा शर्मा, विनय, अनिल माथुर आदि का सहयोग रहा।
देश के नामचीन शायरों से हुई महफिल रोशन
शाम-ए-गज़ल में देशभर से नामचीन शायर ने खूबसूरत गज़लों से महफिल को रोशन किया। मुख्य अतिथि आकाशवाणी दिल्ली के पूर्व महानिदेशक डाॅ लक्ष्मीशंकर वाजपेई ने ‘चिरागों से कहो महफूज रक्खे अपनी अपनी लौ, उलझना है उन्हें कुछ सरफिरी हवाओं से‘ और अध्यक्षता कर रहे गज़ल के सरताज आगरा के अशोक रावत ने ‘एक दिन मजबूरियां अपनी गिना देगा मुझे, जानता हूँ वो कहाँ दगा देगा मुझे‘ गज़लें सुनायीं तो सभागार तालियों से गूंज गया। जयपुर के लोकेश कुमार सिंह साहिल की ‘तू तो इन्सान है सन्दल का कोई पेड़ नहीं, तूने किस तौर से साँपों को संभाला होगा‘ सुनाकर मानवीय फितरत को उजागर किया और दिल्ली से आयीं ममता किरण ने ‘फोन से खुशबू कहाँ वो लाएगा, वो जो आती थी तुम्हारी चिट्ठियों से‘ के जरिये आधुनिक हालात पर तंज कसा। मुशायरे का संचालन करते हुए बिहार से आयीं डाॅ आरती कुमारी की ‘तेरे हमराह यूं चलना नहीं आता मुझको वक्त के साथ बदलना नहीं आता मुझको‘ गज़ल खूब जमीं। प्रख्यात गज़लगो सीकर के सलीम खां फरीद ने ‘सारे घर को जोड़ रहे हैं केवल मुझको छोड़ रहे हैं‘ गज़ल सुनाकर शाम-ए-गज़ल को नयी ऊँचाइयां दी। अजमेर के गोपाल गर्ग ने मधुर कंठ से एक ही बारिश के पानी का मुकद्दर देखिये, जो बहा पानी रहा बाकी किनारा हो गया‘ और डाॅ ब्रिजेश माथुर ने ‘रात गुजरी दिन सुहाने आ गए आप आए शादियाने आ गए‘ गुनगुनायी तो श्रोता झूग उठे। निरूपमा चतुर्वेदी की गज़ल ‘खिताबों की नहीं चाहत मेरी मंजिल नहीं शोहरत, मुहब्बत की शमां दिल में जला कर देख लेती हूँ‘ और जयपुर के इकराम राजस्थानी के शेर ‘उनका धंधा दियासलाई का और अपनी दुकान कागज़ की‘ ने खूब वाहवाही लूटी।

-उमेश कुमार चौरसिया
संयोजक 9829482601

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