पूर्व शिक्षा मंत्री एवं विधायक अजमेर उत्तर वासुदेव देवनानी ने कहा कि पिछले एक साल में प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में पौने अठारह हजार मासूम बच्चों की मौतें होने के बाद भी राजस्थान सरकार के चेहरे पर कोई सिकन नजर नहीं आ रही है। प्रदेश की जनता के लिए इतना संवैदनशील मामला होने के बाद भी राजस्थान सरकार बच्चों की मौतों के मामले में कोई जिम्मेदारी लेने के बजाए उनकी गंभीर बीमारियों तथा अभिभावकों व रेफर करने वाले अस्पतालों पर दोष मढ़ने का प्रयास कर रही है।
देवनानी द्वारा राजस्थान विधान सभा में पूछे गये एक अतारांकित प्रश्न के जवाब में सरकार ने सरकारी अस्पतालों में बच्चों की मृत्यु का कारण अधिकांश बच्चों का अत्यंत गंभीर स्थिति में अन्य स्थानों से रेफर होकर भर्ती होना बताया है। इसके अतिरिक्त बच्चों की मौतो के लिए विभिन्न गंभीर बीमारियों, जन्मजात विकृतियों, समय से पूर्व जन्म, अत्यधिक वजन की कमी आदि कारण बताये गये है जबकि सरकार ने किसी भी बच्चे की मौत के लिए चिकित्सकीय उपचार में कमी अथवा अस्पतालों में आवश्यक संसाधन व चिकित्सीय उपकरणों की कमी होना नहीं बताया है।
देवनानी ने सरकार पर इस मामले में संवेदनहीनता का आरोप लगाते हुए कहा कि जनवरी 2019 से 15 जनवरी 2020 तक प्रदेश के मेडिकल काॅलेजों से सम्बन्धित चिकित्सालयों में 13173 बच्चों की मौतें होना यह दर्शाता है कि इन अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्थाएं कितनी चाक-चोबंद है। इसके अलावा प्रदेश के ब्लाॅक स्तरीय सरकारी अस्पतालों में 1642 व जिला स्तरीय अस्पतालों में 3113 बच्चों की मौतें बीते साल हुई है जो कि सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध चिकित्सा व्यवस्थाओं की पोल खोलने के लिए काफी है। उन्होने कहा कि यह तथ्य न केवल चैकाने वाले है बल्कि राजस्थान सरकार की नाकामी को भी दर्शा रहे है। राजस्थान के मुख्यमंत्री एवं चिकित्सा स्वास्थ्य मंत्री में छोडी बहुत भी संवैदना बची है तो वे अपनी जिम्मेदारी स्वीकारें नहीं तो अपने पद से इस्तीफा सौंप दे। मुख्यमंत्री व चिकित्सा मंत्री के गृह जिलों में ही 3537 बच्चों की मौतें हुई है।
आंकड़े खोल रहे सरकारी अस्पतालों की पोल
देवनानी ने कहा कि प्रदेश के चिकित्सा महाविद्यालयों से सम्बंधित अस्पतालों में जहाॅ विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ ही आई.सी.यू. जैसी सुविधाएं होते हुए भी पिछले साल भर में 13173 बच्चों की मौते हुई है। इनमें कोटा में 988, जयपुर में 4519, उदयपुर में 1839, अजमेर में 1494, बीकानेर 1755, जोधपुर में 1901 व झालावाड में 677 बच्चों की मौत हुई है।
देवनानी ने कहा कि सरकार को मासूमों की मौतों की जिम्मैदारी से बचने के स्थान पर सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों व चिकित्सीय स्टाॅफ के रिक्त पदों पर नियुक्ति के साथ ही अस्पतालों में आवश्यक संसाधन व उपकरण उपलब्ध कराने पर ध्यान देना चाहिए ताकि भविष्य में वहाॅ पर भर्ती होने वाले बच्चों की जानें बचाई जा सके।