हम तो मर ही जाते..गर तुम नहीं होते

*किशनगढ।कोरोना वायरस के चलते संकट की घडी में शहर के राजनीतिक धुरंधरों के बीच ‘एक अनार,सौ बीमार’वाली कहावत बखूबी चरितार्थ हो रही है।’भूख’ और ‘जरुरत मंद’ पर सब टारगेट कर रहे हैं।राजनीति का पहिया इसके चारों ओर घूम रहा है।इन दो समस्याओं को जीत लेने पर ‘कोरोना’ अपने आप में कोई समस्या नहीं है।लगता है शहर के राजनीतिज्ञों को मुद्दत बाद राजनीति करने का कोई मुद्दा मिला है।वरना शहर की राजनीति को बरसों से जुकाम लगा था,जहां सारा समय अपनी नाक पोंछने में ही जाया हो रहा था।’कोरोना’ के बाद अब यहां के राजनीति प्रेमियों को खुलकर सांस आने लगी है।शहर की सांसे थम सी ग ई है..बस और बस चारों ओर सन्नाटा छाया है।ऐसे में राजनीति के जांबाजों का दिमाक शांत माहौल में अशांत रहने लगा है।एक ‘जरुरत मंद’ के मिल जाने भर की देर है..उस पर सभी इस कदर टूट पडते हैं,लगने लगता है ‘भूखा’ जरुरत मंद नहीं ‘भूखे’ राजनीतिक हैं।*
*’कोरोना’ वायरस से उपजी इस संकट की घडी में खाने के पैकट और रसद सामग्री के किट के अलावा भी बहुतेरे मुद्दे हैं,पर समझ नहीं पड रहा ‘गुड’ पर ही मक्खियां क्यूं❓भिनभिना रही है।छोटे बडे सभी नेता अपने तमाम बजट को ‘भूख’ और ‘रसद’ पर लुटाने को क्यूं❓आतुर बैठे हैं।इस मुद्दे पर जमकर राजनीति हो रही है।मौका लगते ही एक दूजै की टांग खिंचाई रोजाना का किस्सा बन गया है।कोई अपना आज सकोरने में लगा है तो कोई कल के उलझे धागों को सुलझाने में लगा है।सबके पास अपनी गणित के बनाये सवाल हैं,ऐसे में अपना पर्चा कहीं लीक नहीं हो जाय..सब इसी में लगे हैं।गली मौहल्लों के जो नेता नगर परिषद के सभागार में ‘बजट’ को लेकर छिल मार कब्बडी करते एक दूसरे की टांग खिचाई से बाज नहीं आते देखे गये..वे भी खुशी खुशी अपना बजट कुर्बान करते दिखाई दे रहे हैं।इसे ‘कोरोना’ का चमत्कार समझें या आने वाले चुनाव में “कोनै रोनूं पडै” की राजनीति।अभी वजन अपनी जेब पर तो पड नहीं रहा,सरकारी खजाने पर पड रहा है।अपनी थोडी मशक्कत से हवन का पुण्य हमें मिल जाय तो क्या बुरा है।*
*बहरहाल बडा दिलचस्प माहौल है।लॉक डाऊन के दौरान शहरवासियों का अच्छा टाईम पास हो जाता है..राजनीति के शूर वीरों की कला बाजियां देखते..अन्यथा शहर में ‘कोरोना’ के बजाय ‘डिप्रेशन’ के मरीजों की संख्या क ई गुना अधिक बढ जाती।इसके लिए शहर के नेताओं का साधुवाद।राम कसम हम तो मर ही जाते..गर तुम नहीं होते..!!*
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