देवनानी ने कहा कि पष्चिम के रेगिस्तान से भारत को लूटने व कब्जा करनके के लिए आने वाले मजहबी हमलावरों व लुटेरों का वार सबसे पहले सिंध की वीरभूमि को ही झेलना पड़ता था। महाराजा दाहरसेन इसी सिंध के राजा थे। उन्होंने युद्धभूमि में ऐसे विदेषी आक्रांताओं का रास्ता रोकते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
देवनानी ने कहा कि सिंध के बिना हिन्द अधूरा है। सिंध एक प्रान्त ही नहीं बल्कि हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है।